

अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि अगर दुनिया पौधों पर आधारित आहार की ओर बढ़े, तो 2030 तक खेती में कुल मजदूरी की जरूरत पांच से 28 फीसदी तक घट सकती है।
इसका मतलब है कि कृषि क्षेत्रों में करीब 1.8 से 10.6 करोड़ तक नौकरियां घट सकती है।
इससे जहां पशुपालन में काम करने वालों की संख्या घटेगी, वहीं दूसरी ओर फलों, सब्जियों और दालों की खेती में 1.8 से 5.6 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत पड़ सकती है।
कुल मिलाकर, इससे दुनिया की कृषि लागत में हर साल 29,000 से 99,500 करोड़ डॉलर की बचत होगी, जो वैश्विक जीडीपी के करीब 0.2 से 0.6 फीसदी के बराबर है।
शोधकर्ताओं ने यह भी चेताया है कि अगर यह बदलाव बिना किसी तैयारी के किया गया, तो इससे लाखों किसानों और मजदूरों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है।
अगर दुनिया भर में लोग पौधों पर आधारित खानपान की ओर बढ़ें, यानी मांस की जगह फल, सब्जियां, दालें और मेवे ज्यादा खाएं तो इससे खेती-किसानी की पूरी तस्वीर तरह बदल सकती है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि खानपान में इस बदलाव से 2030 तक कृषि में मजदूरी की जरूरत 28 फीसदी तक घट सकती है, जो करीब 10.6 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर होगी।
इस बारे में जारी रिसर्च रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि इससे जहां पशुपालन से जुड़े कृषि मजदूरों की संख्या घटेगी, वहीं दूसरी ओर फलों, सब्जियों और दालों की खेती में लगे किसानों के लिए करीब 5.6 करोड़ नए रोजगार पैदा हो सकते हैं।
दुनिया का खाद्य तंत्र आज जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता को हो रहे नुकसान के साथ-साथ खराब खानपान से जुड़ी बीमारियों की बड़ी वजह बन गया है। यही वजह है कि इसमें बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। इसी दिशा में, दुनिया भर की सरकारें और आम लोग मिलकर पौधों पर आधारित आहार को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे, ताकि इंसानों की सेहत भी बेहतर हो और धरती पर बढ़ता बोझ भी कम हो सके।
खानपान में बदलाव सिर्फ सेहत नहीं, रोजगार का भी सवाल
लेकिन खान-पान केवल स्वाद या स्वास्थ्य का मामला ही नहीं है, यह दुनिया भर में करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी से भी जुड़ा है। मांस और डेयरी उद्योग में दुनिया के लाखों लोग काम करते हैं। ऐसे में अगर खानपान में बदलाव आता है, तो इससे खेती और रोजगार दोनों पर असर पड़ेगा।
इस असर को समझने के लिए लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 179 देशों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है, ताकि यह समझा जा सके कि अगर लोग फ्लेक्सिटेरियन (यानी थोड़ा मांस, ज्यादा पौधे), शाकाहार या वीगन आहार अपनाते हैं, तो इससे कृषि क्षेत्र में मजदूरी पर कितना प्रभाव पड़ेगा।
इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि अगर दुनिया पौधों पर आधारित आहार की ओर बढ़े, तो 2030 तक खेती में कुल मजदूरी की जरूरत पांच से 28 फीसदी तक घट सकती है। इसका मतलब है कि कृषि क्षेत्रों में करीब 1.8 से 10.6 करोड़ तक नौकरियां घट सकती है।
कहां घटेगा, कहां बढ़ेगा रोजगार
हालांकि इससे जहां पशुपालन में काम करने वालों की संख्या घटेगी, वहीं दूसरी ओर फलों, सब्जियों और दालों की खेती में 1.8 से 5.6 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत पड़ सकती है। कुल मिलाकर, इससे दुनिया की कृषि लागत में हर साल 29,000 से 99,500 करोड़ डॉलर की बचत होगी, जो वैश्विक जीडीपी के करीब 0.2 से 0.6 फीसदी के बराबर है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक जिन देशों में कृषि पशुपालन पर आधारित है, वहां काम की मांग में सबसे तेज गिरावट देखने को मिलेगी। वहीं, कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में फल, सब्जी, दाल और मेवा उत्पादन के लिए करोड़ों नए रोजगार पैदा हो सकते हैं।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर मार्को स्प्रिंगमैन का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “खानपान में बदलाव केवल हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण को ही नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की जीविका को भी प्रभावित करता है। मांस-आधारित आहार से दूर जाना पशुपालन में मौकों को कम कर देगा, लेकिन इससे बागवानी और खाद्य सेवाओं में नए अवसर खुलेंगे।" हालांकि उनके मुताबिक इसके लिए योजनाबद्ध नीतियां और राजनीतिक समर्थन बेहद जरूरी हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर देशों ने इस बदलाव को सोच-समझकर अपनाया, जैसे किसानों को दोबारा प्रशिक्षण देना, नई फसलों में निवेश करना और ग्रामीण समुदायों को सहयोग देना, तो यह बदलाव धरती के साथ-साथ इंसान के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है।
साथ ही शोधकर्ताओं ने यह भी चेताया है कि अगर यह बदलाव बिना किसी तैयारी के किया गया, तो इससे लाखों किसानों और मजदूरों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है।
इसलिए सरकारों को चाहिए कि वे ऐसी नीतियां और योजनाएं बनाएं, जिनसे यह बदलाव सबके लिए आसान और न्यायपूर्ण हो। ताकि बदलते खाद्य तंत्र में किसी की रोजी-रोटी न छिने, बल्कि नए अवसर पैदा हों। इसके लिए लोगों को प्रशिक्षण के साथ नए काम दिए जा सकते हैं और बागवानी जैसे कामों में अधिक निवेश किया जा सकता है।