संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने शुक्रवार को जानकारी दी है कि भारत सरकार द्वारा गन्ना उत्पादों से इथेनॉल बनाने पर लगाई रोक को हटाने के बाद अंतराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतों पर असर पड़ा है। आशंका जताई जा रही है कि इसकी वजह से भारत से होने वाला चीनी का निर्यात घट सकता है।
बता दें पिछले साल चीनी उत्पादन में कमी की आशंका और चीनी की कीमतों में संभावित वृद्धि को देखते हुए भारत सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिए चीनी के डायवर्जन पर रोक लगा दी थी।
हालांकि इसके साथ एफएओ ने वैश्विक बाजार में चीनी की बढ़ती कीमतों के लिए ब्राजील में फसलों की खराब स्थिति को भी जिम्मेवार माना है। बता दें कि अगस्त में शुष्क मौसम और आग लगने की घटनाओं के चलते उत्पादन में गिरावट आने का अंदेशा है।
खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी चीनी मूल्य सूचकांक के ताजा रुझानों से पता चला है सितंबर में यह 125.7 अंक दर्ज किया गया, जोकि अगस्त की तुलना में कीमतों में आई 10.4 फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है। हालांकि पिछले वर्ष सितम्बर 2023 की तुलना में देखें तो यह करीब 23 फीसदी कम है।
एफएओ द्वारा जारी खाद्य मूल्य सूचकांक के मुताबिक सितंबर में चीनी ही नहीं अन्य खाद्य उत्पादों की कीमतों में भी उछाल देखा गया। इस दौरान यह कीमतें पिछले 18 महीनों में सबसे तेजी से बढ़ी हैं।
सितम्बर में यदि खाद्य मूल्य सूचकांक को देखें तो वो अगस्त के मुकाबले तीन फीसदी बढ़कर 124.4 अंकों तक पहुंच गया। वहीं पिछले साल सितम्बर 2023 की तुलना में देखें तो यह 2.1 फीसदी अधिक रहा। मतलब की खाद्य उत्पादों की बढ़ती कीमतें आम आदमी की जेब पर भारी रही। देखा जाए तो यह इंडेक्स मार्च 2022 के बाद से महीने-दर-महीने होने वाली सबसे बड़ी वृद्धि को दर्शाता है। मार्च 2022 में यह इंडेक्स 160.3 अंकों के साथ शिखर पर पहुंच गया था।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एफएओ का खाद्य मूल्य सूचकांक यानी फूड प्राइस इंडेक्स अंतराष्ट्रीय स्तर पर हर महीने खाद्य कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव को ट्रैक करता है।
इसी तरह अनाज की कीमतों में भी तीन फीसदी का उछाल आया है। सितम्बर के दौरान अनाज मूल्य सूचकांक औसतन 113.5 अंक रहा, जो अगस्त 2024 की तुलना में तीन फीसदी अधिक है। हालांकि सितंबर 2023 से तुलना करें तो यह 10.2 फीसदी कम रहा।
अनाज से लेकर दूध तक खाद्य कीमतों में चौतरफा देखी गई वृद्धि
इस दौरान गेहूं और मक्के की कीमतों में वृद्धि हुई है। इसके लिए काफी हद तक मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियां जिम्मेवार रही। कनाडा और यूरोप में ज्यादा बारिश के चलते फसलों की कटाई में देरी हुई, इसने पैदावार को भी प्रभावित किया। हालांकि साथ ही काला सागर क्षेत्र से सस्ती दर पर आपूर्ति ने कीमतों में वृद्धि को सीमित कर दिया। इसके साथ ही सितम्बर में मक्के की कीमतों में भी वृद्धि दर्ज की गई। ब्राजील और अमेरिका में पानी का स्तर घटने से इसे ले जाना मुश्किल हो गया।
इसी तरह सितम्बर में जौ की कीमतों में वृद्धि हुई, वहीं ज्वार की कीमतों में गिरावट देखी गई। इस बीच, चावल की कीमतों में भी हल्की नरमी देखी गई क्योंकि खरीद और बेच उतनी नहीं थी। रुझानों के मुताबिक सितम्बर में चावल मूल्य सूचकांक में 0.7 फीसदी की गिरावट देखी गई।
इसी तरह सितम्बर के दौरान खाद्य तेल की कीमतों में भी उछाल दर्ज किया गया, जब वनस्पति तेल मूल्य सूचकांक पिछले महीनों की तुलना में 4.6 फीसदी की वृद्धि के साथ 142.4 अंक तक पहुंच गया। इस तरह यह 2023 की शुरूआत से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।
इस वृद्धि की मुख्य वजह पाम, सोया, सूरजमुखी और रेपसीड तेल की कीमतों में हुई वृद्धि रही। पाम तेल की कीमतें लगातार चौथे महीने बढ़ीं क्योंकि उत्पादन उम्मीद से कम था, साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया में मौसमी गिरावट ने इसपर असर डाला। वहीं अमेरिका में सोयाबीन की अपेक्षा से कम पेराई के चलते सोया तेल की कीमतों में भी वृद्धि हुई। सूरजमुखी और रेपसीड तेल की कीमतों में भी मामूली वृद्धि देखी गई, क्योंकि 2024-25 के सीजन में इसकी आपूर्ति घटने का अंदेशा है।
इसी तरह डेयरी मूल्य सूचकांक में भी सितंबर के दौरान 3.8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। सितंबर में डेयरी मूल्य सूचकांक औसतन 136.3 अंक रहा, जो सितम्बर 2023 की तुलना में 21.7 फीसदी अधिक है। यह वृद्धि सभी डेयरी उत्पादों, विशेष रूप से दूध पाउडर की ऊंची कीमतों के कारण हुई, जो एशिया में मजबूत मांग के कारण बढ़ी। भले ही ओशिनिया में अधिक दूध का उत्पादन हो रहा है, लेकिन बहुत ज्यादा निर्यात न होने के कारण स्किम मिल्क पाउडर की कीमतें बढ़ीं।
इसके साथ ही पश्चिमी यूरोप में भी इसकी ऊंची मांग थी। पश्चिमी यूरोप में मांग बढ़ने और दूध की सीमित आपूर्ति के चलते मक्खन की कीमतों में लगातार ग्यारहवें महीने उछाल देखा गया। इसकी वजह से पनीर की कीमतें भी उछाल दर्ज किया गया।
सितंबर में मांस मूल्य सूचकांक औसतन 119.6 अंक रहा, जो अगस्त की तुलना में 0.4 फीसदी अधिक है। वहीं पिछले साल सितम्बर 2023 की तुलना में इसमें 4.8 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है।
खाद्य कीमतों में आता उछाल लोगों की जेब को भारी पड़ सकता है, क्योंकि आम लोग पहले ही बढ़ती महंगाई की मार से जूझ रहे हैं।
डाउन टू अर्थ ने अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी है कि खाद्य-पदार्थों की कीमतें, उनकी आपूर्ति में आने वाली बाधाओं की वजह से ज्यादा बढ़ रही हैं और इन बाधाओं का बड़ा कारण खराब मौसम और चरम मौसमी घटनाएं हैं। मतलब की अब जलवायु परिवर्तन, फसलों के उत्पादन के साथ उसकी आपूर्ति पर भी असर डाल रहा है। इसने भारत में खाद्य-पदार्थों की कीमतें बढ़ने को ‘लाइलाज’ बीमारी बना दिया है।