संरक्षित क्षेत्रों के बाहर बढ़ रहा है तेंदुए का अनुकूलन

पश्चिम बंगाल के चाय बागानों और उनके बीच स्थित मिश्रित भूमि उपयोग क्षेत्र के करीब 400 वर्ग किलोमीटर के दायरे में यह अध्ययन किया गया है।
Photo : Ramki Sreenivasan
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पश्चिम बंगाल के चाय बागान, कृषि भूमि और इनके बीच फैले वन क्षेत्रों के छोटे-छोटे टुकड़ों समेत मानवीय उपयोग वाले विभिन्न इलाकों में तेंदुओं का अनुकूलन बढ़ रहा है और तेंदुए बड़ी संख्या में पालतू पशुओं को अपना शिकार बना रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों के एक ताजा अध्ययन में यह बात उभरकर आई है।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि तेंदुए द्वारा शिकार किए जाने वाले जीवों में सबसे अधिक गाय, बैल और बकरी जैसे पालतू जीव होते हैं। जबकि, वन्यजीवों में रीसस मकाक का शिकार उसकी उपलब्धता के अनुपात में अधिक किया गया है। 

तेंदुए के मल के 70 नमूनों का परीक्षण करके उसके द्वारा किए गए शिकार की पहचान की गई है। अधिक शिकार किए जाने वाले जीवों का पता लगाने के लिए वहां मौजूद शिकार की उपलब्धता और तेंदुए द्वारा उपयोग किए गए शिकार की तुलना की गई है।

पश्चिम बंगाल के चाय बागानों और उनके बीच स्थित मिश्रित भूमि उपयोग क्षेत्र के करीब 400 वर्ग किलोमीटर के दायरे में यह अध्ययन किया गया है, जहां आबादी अधिक है।

बेंगलूरू स्थित वाइल्ड लाइफ कन्जर्वेशन सोसायटी, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस, फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल रिसर्च एडवोकेसी ऐंड लर्निंग और पश्चिम बंगाल के वन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन में पश्चिम बंगाल में तेंदुए द्वारा पालतू पशुओं के शिकार और उनके आहार में शामिल घटकों की पहचान की गई है।

प्रमुख शोधकर्ता अरित्रा क्षेत्री के अनुसार “इस अध्ययन में संरक्षित क्षेत्र के बाहर चाय बागानों में तेंदुए की अनुकूलनशीलता और वहां उपलब्ध उनके शिकार संसाधनों के उपयोग पर प्रकाश डाला गया है। अध्ययन क्षेत्र में तेंदुए के शिकार में शामिल वन्यजीवों की अपेक्षा पालतू पशुओं की संख्या छह गुना अधिक पाई गई है। इसका तात्पर्य है कि अपने शिकार के चयन में वन्यजीवों या फिर पालतू पशुओं को तरजीह देने के बजाय तेंदुए सबसे ज्यादा उन्हीं जीवों को अपना शिकार बना रहे हैं, जो अधिक संख्या में उस इलाके में मौजूद रहते हैं।”

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार मानवीय क्षेत्रों में अधिक भोजन की उपलब्धता के कारण तेंदुए जैसे मांसाहारी जीव चाय बागानों और अन्य गैर-वन-क्षेत्रों में डटे रहते हैं। मानवीय इलाकों में बड़े मांसाहारी जीवों की घुसपैठ को देखते हुए दुनिया भर में संरक्षण तथा प्रबंधन प्रयासों के लिए समस्याएं खड़ी हो रही हैं। तेंदुए जैसे मांसाहारी जीवों के शिकार में मारे गए पशुधन के नुकसान से त्रस्त स्थानीय लोगों के गुस्से से इन वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बेहतर तालमेल स्थापित करना जरूरी है।

मानवीय तथा वन्यजीवों के टकराव और उनकी सामाजिक पारिस्थितिकी पर केंद्रित है यह अध्ययन भारत के दीर्घकालीन शोध का हिस्सा है, जिसमें चाय बागान क्षेत्रों में तेंदुए के आहार, शिकार की उपलब्धता और आहार चयन संबंधी पहलुओं की पड़ताल की गई है।

अध्ययनकर्ताओं में अरित्रा क्षेत्री के अलावा श्रीनिवास वैद्यनाथन और डॉ विद्या आत्रेय शामिल थे। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, रफोर्ड फाउंडेशन और आइडिया वाइल्ड द्वारा अनुदान प्राप्त यह अध्ययन शोध पत्रिका ट्रॉपिकल कन्जर्वेशन साइंस में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

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