वन्यजीवों के संरक्षण के लिए केवल राष्ट्रीय उद्यान और संरक्षित क्षेत्र घोषित करना ही काफी नहीं है। इसके लिए प्रजातियों और उनके आवास को ध्यान में रखकर इन उद्यानों का उचित प्रबंधन करने की जरुरत है। इस बारे में एक्सेटर और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि संरक्षित क्षेत्र हमेशा जैव विविधता को बढ़ावा नहीं देते हैं।
अध्ययन के मुताबिक संरक्षित क्षेत्रों जैसे राष्ट्रीय उद्यानों का वन्यजीवों पर "मिश्रित प्रभाव" पड़ता है। ऐसे में प्रजातियों और उनके आवासों की रक्षा के लिए पार्कों का उचित प्रबंधन काफी महत्वपूर्ण है और ऐसा न करने पर उद्यानों के अप्रभावी होने की आशंका अधिक रहती है।
यह अध्ययन 20 अप्रैल 2020 को अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ था। इसमें शोधकर्ताओं ने जलपक्षियों पर ध्यान केंद्रित किया है। इनके संरक्षण को समझने के लिए उन्होंने एक दो नहीं बल्कि 68 देशों के 1,506 संरक्षित क्षेत्रों में जलपक्षियों की 27,055 प्रजातियों पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच की है। इससे जुड़े शोध दल में वेटलैंड्स इंटरनेशनल, बांगोर, क्वींसलैंड, कोपेनहेगन और कॉर्नेल विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता शामिल थे।
साथ ही यह शोध दुनिया भर में कई हजारों स्वयंसेवकों के प्रयासों पर भी आधारित है, जो जलपक्षियों की आबादी से जुड़े आंकड़े एकत्र कर रहे हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने संरक्षित क्षेत्र घोषित किए जाने से पहले और बाद के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया है। साथ ही संरक्षित क्षेत्रों के अंदर और बाहर जलपक्षियों की आबादी से जुड़े रुझानों की तुलना की है।
गौरतलब है कि अगले महीने, दुनियाभर के नेता अगले दशक के लिए वैश्विक संरक्षण प्रयासों का एजेंडा निर्धारित करने के लिए चीन में एकत्रित होंगे। जोकि 2030 तक धरती के 30 फीसदी हिस्से को संरक्षित करने के लिए किए जा रहे प्रयासों को दर्शाता है, जिसके लिए कई देश राजी हैं।
संरक्षित क्षेत्रों की संख्या ही नहीं गुणवत्ता भी रखती है मायने
हालांकि अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि जैव विविधता को बचाने के लिए केवल संरक्षित क्षेत्र घोषित करना ही काफी नहीं है, यह जैव विविधता के संरक्षण की गारंटी नहीं देगा। उनका तर्क है कि इसके लिए केवल संरक्षित क्षेत्रों की संख्या बढ़ाना ही काफी नहीं, इसके साथ की गुणवत्ता के लिए भी मापदंड और लक्ष्य निर्धारित करने की जरुरत है।
इस बारे में एक्सेटर विश्वविद्यालय और शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता हन्ना एस वाउचोप का कहना है, "हम जानते हैं कि संरक्षित क्षेत्र आवासों को होने वाले नुकसान विशेष रूप से जंगलों की कटाई को रोक सकते हैं।
हालांकि इसके बावजूद इस बारे में हमारी समझ काफी कम है कि यह संरक्षित क्षेत्र वन्यजीवों की मदद कैसे करते हैं। इस बारे में हमारे अध्ययन से पता चला है कि जहां कई संरक्षित क्षेत्र इस मामले में बहुत अच्छी तरह काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कई अन्य सकारात्मक प्रभाव डालने में असफल रहे हैं।
ऐसे में उनके अनुसार हमें वैश्विक स्तर पर कुल संरक्षित क्षेत्र पर पूरी तरह से ध्यान देने की जगह, यह सुनिश्चित करने पर अधिक ध्यान देने की जरुरत है कि जैव विविधता को फायदा पहुंचाने के क्षेत्रों को ठीक तरह से प्रबंधन किया जाए।
डॉक्टर वाउचोप का कहना है कि हम यह नहीं कह रहे की संरक्षित क्षेत्र फायदा नहीं पहुंचा रहे। लेकिन मुद्दा यह है कि उनके प्रभाव अलग-अलग हो सकते हैं। साथ ही सबसे बड़ी बात यह है कि क्या उनका प्रबंधन प्रजातियों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। उनके अनुसार ऐसे में हम उचित प्रबंधन के बिना संरक्षित क्षेत्रों के काम करने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। साथ ही यह भी प्रतीत होता है कि बड़े संरक्षित क्षेत्र छोटे क्षेत्रों की तुलना में बेहतर होते हैं।
वहीं इस बारे में अध्ययन से जुड़ी एक अन्य शोधकर्ता प्रोफेसर जूलिया जोन्स ने बताया कि, "जैव विविधता के नुकसान को धीमा करने के लिए हमें इस बात को बेहतर समझने की आवश्यकता है कि संरक्षण के कौन से उपाय काम करते हैं, और कौन से नहीं।