वन्यजीवों के व्यापार से उनकी आबादी में आई औसतन 62 फीसदी की गिरावट

अंतराष्ट्रीय स्तर पर हर साल 10 करोड़ पौधों और जानवरों की तस्करी की जाती है| वन्यजीवों का यह व्यापार हर साल तकरीबन 145,418 करोड़ रुपए का है
वन्यजीवों के व्यापार से उनकी आबादी में आई औसतन 62 फीसदी की गिरावट
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वन्यजीवों के वैध और अवैध व्यापार से उनकी आबादी में औसतन 62 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं व्यापार के चलते पहले से ही विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी प्रजातियों पर खतरा कहीं और बढ़ गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार व्यापार के चलते उनकी आबादी में औसतन 80 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। कुछ मामलों में तो प्रजातियां स्थानीय स्तर पर गायब ही हो चुकी हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि वन्यजीवों का यह व्यापार उन जीवों के लिए बहुत घातक है, इसके बावजूद इसपर बहुत सीमित अध्ययन किए गए हैं।

दुनिया भर में वन्यजीवों और जैवविविधता की तस्करी एक बड़ा व्यापार है। अनुमान है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर साल 10 करोड़ पौधों और जानवरों की तस्करी की जाती है। आमतौर पर इनकी तस्करी पारंपरिक दवाओं के निर्माण, लक्जरी खाद्य पदार्थों और जीवों को पालतु बनाने के लिए की जाती है। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो वन्यजीवन का यह व्यापार तकरीबन 145,418 करोड़ रुपए (2,000 करोड़ डॉलर) प्रतिवर्ष तक का है। यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्युशन में प्रकाशित हुआ है।

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता डेविड एडवर्ड्स के अनुसार ”पारंपरिक दवाओं, लक्जरी खाद्य पदार्थों और जानवरों को पालतू बनाने के लिए हजारों प्रजातियों का व्यापार किया जाता है। लेकिन यह व्यापार बड़े पैमाने पर वन्यजीवन को किस तरह प्रभावित करता है इस बारे में अब तक जानकारी नहीं थी। इस शोध से पता चला है कि अधिकांशतः जिन प्रजातियों का व्यापार किया गया उनमें आई कमी चौंकाने वाली थी। यही नहीं उनमें से कई प्रजातियां तो स्थानीय स्तर पर विलुप्त हो रही हैं। ट्रैपिंग के चलते उन प्रजातियों में भारी गिरावट दर्ज की गई है जिनपर विलुप्त होने का खतरा ज्यादा है या फिर जिनका पालतू बनाने के लिए कारोबार किया जाता है।”

इससे पहले 2019 में जर्नल साइंस में छपे एक शोध से पता चला है कि जमीन पर पाए जाने वाली 31,500 से ज्यादा पक्षियों, स्तनपायी, उभयचर, और सरीसृप प्रजातियां में से 24 फीसदी का व्यापार किया जाता है।

संरक्षित क्षेत्रों में भी दर्ज की गई है 56 फीसदी की गिरावट

शोधकर्ताओं को यह भी पता चला है कि वन्यजीवों का व्यापार प्रजातियों को किस तरह से प्रभावित कर रहा है, इसकी समझ विकसित देशों में बहुत कम है। यही वजह है कि आमतौर पर जिन प्रजातियों का व्यापार किया जा रहा है उनके विलुप्त होने में इसका बहुत बड़ा हाथ है। 

वन्यजीवों का व्यापार किस तरह जीवों की आबादी पर असर डाल रहा है इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण अफ्रीकी हाथी हैं, जिनके हाथी दांत व्यापार के कारण इनकी आबादी में गिरावट आई है। इसी तरह एशिया और अफ्रीका में पैंगोलिन प्रजातियों की आबादी पर भी उनके व्यापार के चलते असर पड़ा है। हालांकि दुनिया भर में वन्यजीव व्यापार और उसके प्रबंधन के लिए कई नीतियां बनाई गई हैं, लेकिन व्यापक शोध की कमी के चलते यह नीतियां कितनी कारगर हैं इस बारे में ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। ऐसे में यह नीतियां प्रजातियों की सुरक्षा का दावा नहीं कर सकती हैं।

संरक्षित क्षेत्रों में भी वन्यजीवों की आबादी में आई 56 फीसदी की गिरावट इस बात का सबूत है कि वहां कुछ तो गलत है। ऐसे में यह शोध खतरे में पड़ी प्रजातियों की सुरक्षा और व्यापार प्रबंधन के लिए बेहतर उपायों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

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