सुप्रीम कोर्ट ने वनतारा को दी क्लीन चिट

कोर्ट ने कहा कि वनतारा द्वारा लाए गए जानवर वैध परमिट और प्रक्रियाओं के तहत ही आए हैं और इनसे जुड़े सारे दस्तावेज सही पाए गए
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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Summary
  • सुप्रीम कोर्ट ने वनतारा को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है, यह निर्णय एसआईटी की विस्तृत जांच रिपोर्ट के आधार पर लिया गया।

  • रिपोर्ट में वनतारा के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को निराधार पाया गया

  • कोर्ट ने वनतारा की सुविधाओं और प्रक्रियाओं की सराहना की।

  • कोर्ट ने कहा कि वनतारा द्वारा लाए गए जानवर वैध परमिट और प्रक्रियाओं के तहत ही आए हैं और इनसे जुड़े सारे दस्तावेज सही पाए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितम्बर को दिए अपने फैसले में ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर और राधे कृष्णा टेंपल एलिफेंट ट्रस्ट (वनतारा) को क्लीन चिट दे दी है। यह फैसला विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया है।

रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने कहा कि वनतारा के खिलाफ लगाए गए सभी गंभीर आरोप निराधार हैं। गौरतलब है कि एसआईटी ने 12 सितंबर को अपनी विस्तृत रिपोर्ट के साथ संक्षिप्त विवरण और सहायक दस्तावेज भी अदालत में दाखिल कर दिए हैं। इसमें केंद्रीय व राज्य एजेंसियों, नियामक और प्रवर्तन संस्थाओं की मदद से की गई जांच के निष्कर्ष भी शामिल थे।

एसआईटी ने जांच के दौरान केवल जानवरों की खरीद, तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग ही नहीं, बल्कि जानवरों की देखभाल, पालन-पोषण, संरक्षण और प्रजनन, जलवायु और स्थान संबंधी मुद्दों, साथ ही वित्तीय और व्यापारिक अनियमितताओं तक सभी आरोपों की पड़ताल की।

रिपोर्ट में कहा गया कि एसआईटी ने केंद्रीय और राज्य सरकार की कई एजेंसियों की मदद से सभी रिपोर्ट, हलफनामे और साइट विजीट की समीक्षा की, विशेषज्ञों से राय ली और पक्षकारों को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया।

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा कि एसआईटी ने केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो, सीबीआई, ईडी, डीआरआई और अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर पूरी पड़ताल की और पाया कि वंतारा ने किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया है। इसमें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 से लेकर प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 तक सभी कानून शामिल थे।

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एसआईटी रिपोर्ट से वंतारा की बेगुनाही साबित

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईटी ने कई केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के समन्वय में गहन जांच के बाद स्पष्ट किया है कि वंतारा ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, चिड़ियाघर नियम 2009, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के दिशानिर्देश, कस्टम्स एक्ट 1962, विदेशी व्यापार अधिनियम 1992, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999, मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम 2002, भारतीय न्याय संहिता 2023 या विलुप्त प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित कन्वेंशन का कोई उल्लंघन नहीं किया है।

अदालत का यह भी कहना है कि वंतारा द्वारा विभिन्न परिस्थितियों से जानवरों को बचाकर रेस्क्यू सेंटर में रखना, संरक्षण और प्रजनन कार्यक्रम चलाना सभी कानूनी मंजूरी, प्रक्रियाओं और दस्तावेजों के अनुसार किया गया। कोर्ट ने कहा कि वंतारा द्वारा लाए गए जानवर वैध परमिट और प्रक्रियाओं के तहत ही आए हैं और इनसे जुड़े सारे दस्तावेज सही पाए गए।

कई बार की गई जांचों में भी किसी तरह की अवैध गतिविधि नहीं मिली।

एसआईटी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जानवरों के आयात की मंजूरी कई स्तरों पर जांच और नियमों के पालन के बाद ही दी जाती है, जिसे कई सरकारी एजेंसियां नियंत्रित और लागू करती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वंतारा के खिलाफ समय-समय पर दर्ज की गई कई शिकायतों और याचिकाओं की बार-बार जांचों में कभी भी किसी कानून के उल्लंघन का प्रमाण नहीं मिला। इसलिए जानवरों की तस्करी या मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आरोपों में कोई ठोस आधार नहीं है।

एसआईटी ने विशेषज्ञों की राय लेने के बाद पाया कि वंतारा में जानवरों के संरक्षण और देखभाल के मानक निर्धारित मानकों से बेहतर हैं और यहां मृत्यु दर विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय औसत के अनुरूप है।

अंतरराष्ट्रीय मानकों से बेहतर वंतारा की सुविधाएं

सुप्रीम कोर्ट ने वंतारा की सुविधाओं की सराहना करते हुए कहा कि कुछ मामलों में यह जानवरों की देखभाल, पशु चिकित्सा सेवा और कल्याण के तय मानकों के साथ-साथ केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा निर्धारित कानूनी मानकों से भी बेहतर है।

स्वतंत्र संगठन जैसे ग्लोबल ह्यूमन सोसाइटी ने साइट का निरीक्षण और ऑडिट करने के बाद प्रमाणित किया कि वंतारा की सुविधाएं न केवल मानकों पर खरी उतरती हैं, बल्कि कई मामलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर से भी बेहतर हैं। वंतारा को इसके लिए ‘ग्लोबल ह्यूमेन सर्टिफाइड सील ऑफ अप्रूवल’ दिया गया है, जो जानवरों के कल्याण और संरक्षण के मानकों का स्वतंत्र सत्यापन प्रदान करता है।

केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण और गुजरात के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन द्वारा समय-समय पर की गई निरीक्षण और सीआईटीईएस द्वारा किए गए मूल्यांकन ने वंतारा की गुणवत्ता और देखभाल की पुष्टि की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जानवरों के कल्याण में किसी भी प्रकार की कमी के आरोप निराधार हैं। कार्बन क्रेडिट, जल संसाधनों के दुरुपयोग या वित्तीय गड़बड़ी के आरोपों को एसआईटी ने भी सीबीआई, डीआरआई और ईडी से प्राप्त जानकारी के आधार पर बेबुनियाद पाया है।

एसआईटी ने प्रवर्तन निदेशालय के उप-निदेशक से विशेषज्ञ राय ली, जिन्होंने स्पष्ट किया कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।

वंतारा पहले भी कई बार न्यायिक जांचों के अधीन रहा है और अधिकांश स्तरों/फोरम पर आरोप खारिज किए गए। ऐसे में अदालत का मानना है कि पुराने अधिकारिक फैसलों के बावजूद बार-बार अटकलों या शिकायतों का सिलसिला जारी रखना पूरी तरह गलत और न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

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