अनोखी विशेषता वाले कछुओं और मगरमच्छों के विलुप्त होने की आशंका सबसे ज्यादा: अध्ययन

कुछ प्रजातियां बीज फैलाने में अहम भूमिका निभाते हैं, कुछ बिल बनाकर अन्य प्रजातियों के लिए आवास बनाते हैं और अन्य शिकारी होते हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, हरि मोहन मीणा, बटागुर ढोंगोका
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ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए नए शोध से पता चला है कि कछुए और मगरमच्छ दुनिया के सबसे लुप्तप्राय जीवों के समूहों में से एक हैं, जिनकी दुनिया भर में लगभग आधी प्रजातियां खतरे में हैं।

ये प्रजातियां आमतौर पर अपने पारिस्थितिक तंत्र के भीतर अत्यधिक विशिष्ट भूमिकाएं निभाती हैं जो कि इनके गायब होने पर अन्य प्रजातियों द्वारा नहीं निभाई जा सकती हैं। वे कई अन्य प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि कौन सी प्रजातियां सबसे अधिक संकटग्रस्त हैं और उन्हें बचाने के लिए संरक्षण प्रयासों की तत्काल जरूरत क्यों है, इस पर अधिक समझ बनाना अहम है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में, एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दुनिया भर में कछुओं और मगरमच्छों की जंगली आबादी के लिए सबसे बड़े खतरों का पता लगाया है।

शोधकर्ताओं ने लंबा जीवन जीने संबंधी विभिन्न रणनीतियों के साथ प्रजातियों पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करते हुए, मानवजनित खतरों के चलते विलुप्त होने का अनुकरण करने के लिए मॉडल का उपयोग किया। जीने की रणनीति यह है कि कैसे एक जीव अपने संसाधनों और ऊर्जा को अपने अस्तित्व, प्रजनन और विकास के बीच विभाजित करता है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और शोधकर्ता रॉब सालगुएरो-गोमेज ने कहा कि, यह एक महत्वपूर्ण खोज यह है, कि खतरे सभी प्रजातियों को समान रूप से प्रभावित नहीं करते हैं, वे विशेष जीवन इतिहास की रणनीतियों को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, कछुओं और मगरमच्छों की खपत की दर मुख्य रूप से समुद्री कछुओं जैसे सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाली प्रजातियों को प्रभावित करती है।

अध्ययन के परिणाम इस ओर इशारा करते हैं कि यदि वर्तमान में आईयूसीएन में कछुओं और मगरमच्छों की सभी प्रजातियों को गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में मूल्यांकन किया गया है, जिनमें से विलुप्त होने वाले 13 फीसदी अनोखे जीव गायब हो जाएंगे।

दुनिया भर में कछुओं और मगरमच्छों की सभी प्रजातियों के लिए रहने की जगहों का नुकसान मुख्य खतरा था। जलवायु परिवर्तन और दुनिया भर में  व्यापार भी प्रमुख खतरे थे जिन्होंने सभी प्रजातियों पर असर डाला।

लंबे समय तक जीने वाले अनोखी प्रजातियां भी विशेष रूप से लगातार स्थानीय रूप से खाने के लिए उपयोग किए जाने, बीमारियों और प्रदूषण से प्रभावित पाई गई।

विशेष रूप से आक्रामक प्रजातियों और बीमारियों के खतरों के प्रति संवेदनशील पाई गई। उदाहरण के लिए, सुमात्रा में, 'फाल्स घड़ियाल' (टॉमिस्टोमा श्लेगेली) के लिए बहुत बड़ा खतरा वहां के जंगली सुअरों (सुस स्क्रोफा) से है जो इनके अंडों को चट कर जाते हैं।

प्रदूषण संबंधी खतरे विशेष रूप से उच्च प्रजनन वाली प्रजातियों से जुड़े थे, जैसे मीठे पानी के कछुए और खारे पानी के मगरमच्छ। उदाहरण के लिए, तीन-धारीदार छत वाला कछुआ (बटागुर ढोंगोका) प्रमुख हाइड्रोलॉजिकल परियोजनाओं और नदी के प्रवाह और घोंसले बनाने को लेकर समुद्र के तटों और जल प्रदूषण और उससे पड़ने वाले प्रभावों से प्रभावित होते हैं।

लंबे समय तक जीने वाली प्रजातियों के लिए स्थानीय आधार पर उनकी खपत बहुत बड़े खतरों के रूप में पाया गया। उदाहरण के लिए, लंबे समय तक रहने वाले एशियाई विशालकाय कछुआ (मनोरिया एमिस) को स्थानीय शिकारियों द्वारा आम तौर इसके मांस के लिए मार दिया जाता है, साथ ही पूर्वी एशिया में खाने तथा व्यापार के लिए इन्हें एकत्र किया जाता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, अनोखे इतिहास वाले कछुए और मगरमच्छ लुप्त होने के सबसे अधिक खतरे में हैं, क्योंकि इनमें से कई पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ बीज फैलाने वाले प्रभावी होते हैं, कुछ बिल बनाकर अन्य प्रजातियों के लिए आवास बनाते हैं और अन्य शिकारी होते हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।

लाखों वर्षों से ये कार्य करने के बाद, वे उन अनोखे और विविध रणनीतियों से अटूट रूप से जुड़े हुए हैं जो प्रजातियों ने विकसित की हैं। इनमें से कई प्रजातियां अत्यधिक करिश्माई भी हैं, जैसे कि 'स्पर-थिघेड कछुआ', जो अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागरीय बेसिन और यूरोप के पूर्व में पैदा होता है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ रॉबर्टो रोड्रिगेज ने कहा सरीसृपों के इन समूहों के लिए मुख्य खतरा रहने की जहगों का नुकसान और विखंडन है, जो विशेष रूप से  उत्तरी गोलार्ध में रहने वाली प्रजातियों में आम है। आर्द्रभूमि का लुप्त होना, बढ़ता शहरीकरण, बढ़ती कृषि जिसका पहले से ही भारी प्रभाव हैं, हो सकता है इन प्रजातियों और लंबे समय तक उनके बने रहने की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

सह-अध्ययनकर्ता डॉ मौली ग्रेस ने कहा जीवित जानवरों या उनके अंगों के लगातार व्यापार से दुनिया भर में इन सरीसृपों को खतरा है। कछुओं को पकड़ना और उनकी तस्करी करना उन्हें कैद में रखना आम है और मगरमच्छ की त्वचा का व्यावसायिक रूप से बड़ा व्यापार होता है। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान में लुटेरा मगरमच्छ अभी भी उनकी खाल के लिए उनका अवैध रूप से शिकार किया जाता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, इस अध्ययन के परिणाम प्रभावी संरक्षण योजनाओं की तत्काल जरूरत पर प्रकाश डालते हैं जो प्रजातियों की रक्षा करते हैं, लेकिन उनका अनोखा जीवन इतिहास और विविधताएं भी हैं। इन अत्यधिक संकटग्रस्त समूहों के लिए संरक्षण नीतियों को शामिल करना वर्तमान और भविष्य के खतरों के सामने संरक्षण प्रयासों को प्राथमिकता देने में मदद करने का एक बहुत अच्छा तरीका हो सकता है।

शोधकर्ता कहते हैं कि कछुओं और मगरमच्छों के नुकसान के बारे में चिंता करने वाले लोगों को उनसे बने उत्पादों को खरीदने से बचना चाहिए और विशेष रूप से कछुओं और कछुओं के लिए, उन्हें पालतू जानवर नहीं मानना चाहिए। इसके अलावा, वे उन संगठनों का समर्थन कर सकते हैं जो अपने आवासों और जंगली आबादी की रक्षा के लिए संरक्षण परियोजनाओं का विकास करते हैं।

जिम्मेदार ईकोटूरिज्म की गतिविधियां, जैसे स्वैच्छिक कार्यक्रम या क्राउडसोर्स डेटा संग्रह, कछुआ और मगरमच्छ संरक्षण की दिशा में सकारात्मक योगदान देने के अवसर भी प्रदान कर सकते हैं। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है।

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