थाने के बाहर दो दिन से जमा हैं आदिवासी, जानें क्यों?

9 जुलाई को हुए फायरिंग में 4 आदिवासी घायल हो गए थे। आदिवासियों की मांग है कि आरोपी वनकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए
आदिवासी थाने का घेराव कर वन विभाग के कर्मचारियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
आदिवासी थाने का घेराव कर वन विभाग के कर्मचारियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
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मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले का नेपानगर थाना पिछले दो दिनों से 'हक नहीं तो जेल सही' के नारों के साथ गूंज रहा है। यहां दिन-रात तकरीबन 400 आदिवासी थाने का घेराव कर जेरा जमाए हुए हैं। आदिवासी 9 जुलाई को हुए फायरिंग के आरोपी वनकर्मियों पर कार्रवाई की मांग को लेकर ये आंदोलन कर रहे हैं।

आदिवासियों का आरोप है कि वन अधिकार कानून में लंबित दावों और शासन के आदेश के बावजूद गैर कानूनी तरीके से वन विभाग और प्रशासन का अमला उनकी फसल खराब करने और कब्जा हटाने आ गया, जिसका विरोध करने पर उनपर गोलीबारी की गई। इस गोलीबारी में 12 बोर की बंदूक से छर्रे लगने की वजह से पांच लोग घायल हुए। 

मंगलवार को आंदोलन कर रहे आदिवासियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राजधानी भोपाल आकर मुख्यमंत्री तक अपनी आवाज पहुंचाने की कोशिश की। आदिवासियों ने इस दौरान 'डाउन टू अर्थ' से बातचीत करते हुए वन विभाग और उनके बीत संघर्ष की 40 साल पुरानी कहानी सुनाई।

बुरहानपुर जिले के खेतखेड़ा गांव की रियाल बाई बताती हैं कि उन्होंने बचपन से ही उन जमीनों पर खेती की है। उनका जन्म, विवाह और अब उनके बच्चों की परवरिश उसी जमीन पर हुआ। यहां तक कि पूर्वजों के श्मशान भी वहीं बने हैं। रियाल बाई का मानना है कि उनका परिवार तीन पीढ़ियों से इस जमीन पर रह रहा है और वर्ष 1979 से उनका संघर्ष वन विभाग के साथ हो रहा है। वे उस वक्त वन अधिकारियों को कुछ पैसे देकर जमीन पर खेती करते थे। रियाल बाई ने वन विभाग पर अत्याचार का आरोप लगाते हुए कहा कि वर्ष 2001 में उनके घर में आग लगा दिया गया। वे अपने 11 दिन के बच्चे के साथ जान बचाकर भागी।

नेपानगर के अंतरसिंह अवासे के मुताबिक वर्ष 1979 से लेकर 2000 तक वन विभाग ने सिर्फ जुर्माने की कार्रवाई ही की लेकिन 2001 के बाद उनका रुख हिंसक हो गया। उन्होंने हर साल फसल खराब करना शुरू कर दिया और घर तोड़ डाले। उनकी बकरियों और घर के कीमती सामान भी लूटने लगे। गांव की औरतों के साथ मारपीट आए दिन की बात हो गई। 2002 में वे 5वीं कक्षा में पढ़ते थे लेकिन इस घटना के बाद उनके परिवार को गांव छोड़ना पड़ा और उनकी पढ़ाई छूट गई।

सिबल गांव की भूरी बाई बताती हैं कि हर साल वन विभाग के पोकलिन मशीनों से फसल खराब होने की वजह से अब गांव वालों की हिम्मत नहीं होती। पहले उन खेतों से जो उपज होती थी उसमें घर चल जाता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों से गांव वालों को दूसरों के खेत में मजदूरी करनी पड़ रही है। भूरा बाई बताती हैं कि हर वक्त वन विभाग के अधिकारियों का खतरा बना रहता है कि कब वो आकर जमीन से उन्हें भगा दे।

डवालीकलां गांव के लाल सिंह बताते हैं कि वे वन अधिकार समिति के सचिव हैं और उन्हें ही कानून के बारे में ठीक से नहीं बताया है। इस वजह से उनके दावों पर ब्लॉक स्तर के कर्मचारियों ने अपनी मनमानी की। पुराने दिन याद कर लाल सिंह भावुक हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि गांव के लोगों ने वन विभाग की ओर से कई अत्याचार सहे हैं। उनके खेत उजाड़ने के साथ वन विभाग ने टंट्या मामा (देवस्थल) और श्मशान को भी नहीं उजाड़ दिया। लाल सिंह कहते हैं कि आदिवासियों के पास अपनी जमीनों पर हक के 1980, 1984 और 2002 के कई कागजात हैं जिससे साबित होती है कि जमीन के असली हकदार वही है।

आदिवासियों के मुद्दों पर काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता माधुरी कृष्णास्वामी ने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री और मंत्री तक जमीन पर उनके दावे संबंधित वर्षों पुराने कागजात और तस्वीरों सहित विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है। आदिवासियों पर गोली चलाने की कोई पर्याप्त वजह न होने के बावजूद वन विभाग के अधिकारियों ने कानून के विरुद्ध जाकर मनमानी की। आदिवासी उन सभी वन विभाग के अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई की मांग करते हैं। साथ ही, वन अधिकार कानून के तहत पूरे प्रदेश में जमीन पर किए दावों की पारदर्शिता के साथ कार्यवाही की मांग भी आदिवासी कर रहे हैं। माधुरी बताती हैं कि पुलिस ने 120 आदिवासियों पर वन विभाग की शिकायत पर मुकदमा किया है जिसमें से सभी निर्दोश है। इस कार्रवाई की सच्चाई बताते हैं उन्होंने कहा कि काकू नाम के एक आदिवासी का नाम केस में है जबकि वह 20 साल पहले मर चुका है।

नेपानगर के बदनापुर वन परिक्षेत्र में वन विभाग की टीम और आदिवासियों के टकराव में गोली चलाने के मामले में सोमवार को सरकार ने कार्रवाई करते हुए तीन वन अधिकारियों को हटा दिया। राज्य शासन ने नेपानगर में पदस्थ डीएफओ सुधांशु यादव का श्योपुर, उप वन मंडलाधिकारी बीके शुक्ला और रेंजर राजेश रंधावा का ट्रांसफर खंडवा कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट कर मुख्यमंत्री से मामले की जांच व दोषियों पर कार्रवाई की मांग की थी। विधायक हीरालाल अलावा ने भी पत्र लिखकर जांच की मांग की थी। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं।

राज्य सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक बुरहानपुर में वन अधिकार अधिनियम के तहत 14,008 व्यक्तिगत और सामूदायिक दावे आए जिसमें से 6501 दावों को निरस्त किया गया। इस प्रक्रिया के दौरान 7507 दावों का मान्य किया गया। पूरे प्रदेशभर से 6,16,731 दावे आए जिसमें से 3,62,830 दावों को अमान्य कर दिया गया। इन अमान्य दावों पर पुनर्विचार के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने ग्राम सभाओं का आयोजन किया और अब इन दावों पर फिर से सुनवाई की जाएगी। शासन के द्वारा जारी एक आदेश के मुताबिक जबतक सुनवाई पूरी नहीं होती वन विभाग जंगल से आदिवासियों को नहीं हटा सकता है।

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