खाद्य और कृषि संगठन की नई रिपोर्ट के अनुसार, जिन क्षेत्रों में आदिवासी रहते है वहां वनों के कटने की दर काफी कम है। दुनिया भर की सरकारों ने सामूहिक रूप से आदिवासी लोगों को भूमि के अधिकारों को लेकर औपचारिक मान्यता दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो दशकों में प्रकाशित 300 से अधिक अध्ययनों की समीक्षा के आधार पर, लैटिन अमेरिका में स्वदेशी, आदिवासी/जनजातीय और कैरेबियाई लोगों का वनों के सर्वश्रेष्ठ संरक्षक होने का पहली बार पता चला है।
शोध यह भी बताता है कि उनकी वनों के प्रति सुरक्षात्मक भूमिका अब उनके लिए खतरा पैदा करने लगी है, ऐसे समय में जब अमेज़ॅन वन एक जलवायु टिपिंग पॉइंट के बहुत करीब है। दुनिया भर में बदलती जलवायु से वर्षा और तापमान प्रभावित हो रहा जिसका असर खाद्य उत्पादन और उसके नतीजों पर पड़ेगा।
एफएओ के क्षेत्रीय प्रतिनिधि, जूलियो बर्डुगुए ने कहा कि स्वदेशी और आदिवासी लोगों तथा उनके क्षेत्रों के जंगल दुनिया भर में जलवायु में हो रहे बदलाव का मुकाबला करने और गरीबी से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के उष्णकटिबंधीय जंगल दुनिया भर में 14 प्रतिशत कार्बन संग्रहीत करते हैं।
सबसे अच्छे परिणाम इनके स्थानीय क्षेत्रों में देखे गए हैं, 2000 से 2012 के बीच, बोलीविया, ब्राजील और कोलंबियाई अमेज़ॅन के इन क्षेत्रों में वनों की कटाई की दर दूसरे सामान पारिस्थितिक विशेषताओं वाले जंगलों की तुलना में केवल आधे से एक तिहाई थी।
फाइरा के अध्यक्ष मृना कनिंघम ने कहा कि अमेज़ॅन घाटी में बरकरार जंगलों का लगभग आधा (45 प्रतिशत) आदिवासी बहुल प्रदेशों में हैं। वन संरक्षण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का प्रमाण स्पष्ट दिखता है। इस क्षेत्र के आदिवासी क्षेत्रों में 2000 से 2016 के बीच जंगल में केवल 4.9 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि गैर-आदिवासी क्षेत्रों में यह गिरावट 11.2 प्रतिशत है।
रिपोर्ट सरकारों को उन परियोजनाओं में निवेश करने के लिए कहती है, जो कि उनकी भूमिका को बढ़ावा दें, जिसे जनजातीय लोग वनों की सुरक्षा करके निभाते हैं।
आदिवासी बहुल क्षेत्र कार्बन कम उत्सर्जित करते हैं
रिपोर्ट में किए गए अध्ययनों के अनुसार, जिन जगहों पर आदिवासी रहते हैं वहां वनों की कटाई की दर कम है, बोलीविया में ऐसे क्षेत्रों की तुलना में वनों की कटाई 2.8 गुना कम, ब्राजील में 2.5 गुना और कोलंबिया में 2 गुना कम है।
इन तीन देशों में हर साल 42.8 से 59.7 मिलियन मीट्रिक टन सीओ2 उत्सर्जन कम होता है, जो कि 90 लाख से 1.26 करोड़ वाहनों के उत्सर्जन के बराबर है। ये ऐसे क्षेत्र है जिनका सामूहिक रूप स्वामित्व आदिवासी लोगो के हाथ में हैं।
आदिवासी लोगों द्वारा उपयोग की जा रही 40.4 करोड़ हेक्टेयर में से, सरकारों ने औपचारिक रूप से अपनी सामूहिक संपत्ति या लगभग 26.9 करोड़ हेक्टेयर से अधिक उपयोग करने की मान्यता दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जीवाश्म कार्बन कैप्चर, कोयले और गैस से चलने वाले बिजली संयंत्रों दोनों के सीओ 2 भंडारण में लगने वाली औसत लागत की तुलना में आदिवासी भूमि को सुरक्षित करने की लागत 5 से 42 गुना कम है।
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अहम भूमिका निभाते हैं आदिवासी लोग
जनजातीय लोग क्षेत्र में 32 से 38 करोड़ हेक्टेयर जंगल की सुरक्षा करते हैं, जो लगभग 3,400 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन स्टोर करते हैं, जो कि इंडोनेशिया या कांगो के सभी जंगलों से अधिक है।
2003 से 2016 के बीच अमेजन घाटी के आदिवासी संरक्षित क्षेत्रों के जंगलों ने 0.3 प्रतिशत से कम कार्बन खोया था, जबकि गैर-आदिवासी संरक्षित क्षेत्रों ने 0.6 प्रतिशत खो दिया। ऐसे क्षेत्र जो न तो आदिवासी बहुल क्षेत्र थे और न ही संरक्षित क्षेत्र वहां के जंगलों ने 3.6 प्रतिशत कार्बन खो दिया था। नतीजतन भले ही आदिवासी बहुल क्षेत्र अमेज़ॅन घाटी के 28 प्रतिशत को कवर करते हैं, उन्होंने 26 प्रतिशत क्षेत्र के सकल कार्बन उत्सर्जन का केवल 2.6 प्रतिशत उत्पन्न किया है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि स्वदेशी और आदिवासी लोग जैव विविधता की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।