यदि धरती पर जैवविविधता को बचाना है तो उसके 44 फीसदी हिस्से को संरक्षित करना होगा। मतलब कि इसके लिए धरती की करीब 6.4 करोड़ वर्ग किलोमीटर भूमि पर संरक्षण को बढ़ावा देने की जरुरत होगी। यह जानकारी 02 जून 2022 को जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन में सामने आई है।
देखा जाए तो जिस तरह से इंसान अपनी बढ़ती इच्छाओं को पूरा करने के लिए भूमि उपयोग में बदलाव कर रहा है वो जैवविविधता के लिए बड़ा खतरा है। ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि वैश्विक स्तर पर जैवविविधता को होते नुकसान के लिए यह कदम अत्यंत जरुरी हैं, जिसके लिए इस भूमि पर जैवविविधता के संरक्षण से जुड़े प्रयासों को बढ़ाना होगा।
वैज्ञानिकों के मुताबिक जैवविविधता संरक्षण के लिए इस रिसर्च में जिन क्षेत्रों को शामिल किया गया है, उसमें वो क्षेत्र शामिल है जो जैवविविधता से समृद्ध हैं और कुछ क्षेत्र वो हैं जो अभी भी पारिस्थितिक रूप से अनछुए हैं। साथ ही वो क्षेत्र भी शामिल हैं जिनमें जैवविविधता के बेहतर पनपने की संभावनाएं मौजूद हैं।
देखा जाए तो इस शोध में जिस 6.4 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को संरक्षण के लिए चुना है वो 180 करोड़ लोगों का घर भी है। ऐसे में उस क्षेत्र में संरक्षण के साथ-साथ भूमि उपयोग में होते बदलावों पर भी ध्यान देने की जरुरत है। लेकिन यह भी ध्यान में रखना होगा कि इसके लिए लोगों की भागीदारी जरुरी है। आप उनपर अपने फैसले थोप नहीं सकते।
इसके लिए उन्हें साथ लेकर चलना होगा। इसमें उन्हें बराबरी का मौका देने होगा, उनके फैसलों का भी सम्मान करना होगा जिससे जैवविविधता को बचाने के लिए शाश्वत प्रबंधन को बढ़ावा दिया जा सके। अपने इस अध्ययन में एम्सटर्डम विश्वविद्यालय के डॉक्टर जेम्स आर. एलन के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में स्थलीय प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के लिए इष्टतम क्षेत्रों का मैप तैयार किया है, जिसके लिए उन्नत भू-स्थानिक एल्गोरिदम का उपयोग किया है।
बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा निगल लेगी 13 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र
इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने भूमि उपयोग परिदृश्यों की गणना करके यह भी निर्धारित करने का प्रयास किया है कि 2030 तक इंसानी गतिविधियों के चलते भूमि का कितना हिस्सा खतरे में है। इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जेम्स एलन का कहना है कि जैवविविधता को बचाने के लिए हमें तेजी से करना होगा, क्योंकि मॉडल दर्शाते हैं कि 2030 तक इंसान अपनी बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए इस भूमि का करीब 13 लाख वर्ग किलोमीटर हिस्सा साफ कर देगा। यह क्षेत्र दक्षिण अफ्रीका से भी ज्यादा बड़ा है और यदि ऐसा होता है तो वो वनजीवन के लिए घातक हो सकता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इस शोध में जो निष्कर्ष सामने आए है वो बहुत मायने रखते हैं क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता पर हुई कन्वेंशन के तहत इस बात पर चर्चा कर रही हैं कि 2020 के बाद वैश्विक जैव विविधता का ढांचा कैसा होगा।
इसके तहत जैवविविधता को बचाने के लिए साल के अंत तक नए लक्ष्य लागू किए जा सकते हैं। जो कम से कम अगले दशक में इस दिशा में क्या कदम उठाए जाएंगें उसका एजेंडा निर्धारित करेंगें। इसके लिए सरकारों को नियमित रूप से इस बात की रिपोर्ट देनी होगी कि इन लक्ष्यों को हासिल करने में कितनी प्रगति हुई है।
गौरतलब है कि करीब एक दशक पहले सरकारों ने जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति में सुधार के लिए 17 फीसदी वैश्विक भू क्षेत्र को संरक्षित करने का लक्ष्य रखा था, जिसमें संरक्षित क्षेत्रों और ऐसी भूमि को शामिल किया गया था जो जैवविविधता के दृष्टिकोण से मायने रखती हैं। लेकिन इस बारे में शोधकर्ता डॉक्टर केंडल जोन्स का कहना है कि 2020 तक यह स्पष्ट हो चुका है कि जैव विविधता में आती गिरावट और उसके संरक्षण के लिए यह क्षेत्र पर्याप्त नहीं है।
क्या सिर्फ संरक्षित क्षेत्र घोषित करना ही है काफी
वहीं 2030 तक जैविविधता को बचाने के लिए 30 फीसदी भूमि क्षेत्र को संरक्षित करने पर चर्चा चल रही है, जिसका अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और जी7 नेताओं ने समर्थन किया है। वहीं 2030 तक जैविविधता को बचाने के लिए 30 फीसदी भूमि क्षेत्र को संरक्षित करने पर चर्चा चल रही है, जिसका अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और जी7 नेताओं ने समर्थन किया है।
इस बारे में शोधकर्ता जोन्स का कहना है कि यह सही दिशा में उठाया गया एक सार्थक कदम है, लेकिन हमारे अध्ययन से पता चलता है कि जैवविविधता और इकोसिस्टम सर्विसेस को बचाने के लिए इससे कहीं ज्यादा महत्वाकांक्षी लक्ष्य और नीतियों की जरुरत होगी।
देखा जाए तो यह लक्ष्य जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सम्बन्धी सेवाओं की सुरक्षा के लिए बहुत ज्यादा मायने रखते हैं क्योंकि यह धरती पर जीवन का आधार हैं। ऐसे में न केवल संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों में तेजी लानी होगी साथ ही लक्ष्यों में भी इजाफा करना होगा।
इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पूरे 44 फीसदी हिस्से को संरक्षित क्षेत्र घोषित करना जरुरी नहीं है, बल्कि वहां रहने वाले जीवों, प्रजातियों और इकोसिस्टम के आधार पर संरक्षण सम्बन्धी नीतियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिनकी मदद से इस क्षेत्र को प्रबंधित किया जा सके। इसमें क्षेत्रों को ध्यान में रखकर उपाय किए जाने चाहिए साथ ही इसमें भूमि उपयोग से जुड़ी शाश्वत नीतियों को भी शामिल करना महत्वपूर्ण है।
हाल ही में जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि भूमि को केवल संरक्षित क्षेत्र घोषित करना ही काफी नहीं है इसके लिए उनका विवेकपूर्ण चयन और उससे जुड़े नियमों को लागु करना भी जरुरी है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक जैवविविधता को बचाने के लिए वनवासियों और मूल निवासियों को सशक्त करना एक बेहतर विकल्प है क्योंकि दुनिया भर में आज भी एक बढ़ा हिस्सा इन वनवासियों की वजह से ही इंसानी महत्वाकांक्षा और लालच की भेंट नहीं चढ़ा है। यह लोग इन क्षेत्रों के वास्तविक प्रहरी हैं, जिन्होंने प्रकृति के साथ मिलकर जीना सीख लिया है, जो हम आज भी नहीं सीख पाए हैं।