कवकों की 20 लाख से ज्यादा प्रजातियों से अनजान दुनिया, महज 155,000 को किया जा सका है दर्ज

दुनिया में फंगी यानी कवकों को 25 लाख से ज्यादा प्रजातियां हैं, जिनमें 90 फीसदी से भी ज्यादा से दुनिया अनजान है
वैज्ञानिक तौर पर दुनिया में अब तक कवकों की केवल 155,000 प्रजातियों को ही दर्ज किया जा सका है; मेरिपिलस गिगेंटियस/ फोटो: आईस्टॉक
वैज्ञानिक तौर पर दुनिया में अब तक कवकों की केवल 155,000 प्रजातियों को ही दर्ज किया जा सका है; मेरिपिलस गिगेंटियस/ फोटो: आईस्टॉक
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क्या आप जानते हैं कि दुनिया में फंगी यानी कवकों को 25 लाख से ज्यादा प्रजातियां हैं, जिनमें 90 फीसदी से भी ज्यादा से दुनिया अनजान है। इनके बारे में हमें कितनी कम जानकारी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वैज्ञानिक तौर पर दुनिया में अब तक कवकों की केवल 155,000 प्रजातियों को ही दर्ज किया जा सका है। उनमें से भी करीब आधी प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। 

यदि 2020 से देखें तो अब तक कवकों की केवल 10,200 प्रजातियों को लिस्ट किया जा सका है। मतलब की हम हर साल औसतन 2,500 प्रजातियों को ही दर्ज कर रहे हैं। इस लिहाज से यदि हिसाब लगाएं तो उनकी पूरी विविधता के बारे में जानकारी एकत्र करने में हमें कई सदियां लग जाएंगी। हालांकि वैज्ञानिकों को भरोसा है कि वो आने वाले समय में नई तकनीकों की मदद से हर साल 50 हजार से भी ज्यादा कवकों की पहचान कर सकेंगें। 

विडम्बना देखिए कि जब तक उनके बारे में पता चलेगा तब तक कई प्रजातियां तो विलुप्त भी हो चुकी होंगी। यह जानकारी रॉयल बॉटोनिकल गार्डन केव की पांचवीं स्टेट ऑफ द वर्ल्ड रिपोर्ट, "स्टेट ऑफ द वर्ल्डस प्लांट एंड फंगी 2023" में सामने आई है। यह रिपोर्ट 30 से ज्यादा देशों के 100 से अधिक संस्थानों से जुड़े 200 वैज्ञानिकों ने तैयार की है।

भले ही हमें यह कवक उतने महत्वपूर्ण न लगें लेकिन यह प्रजातियां हमारे इकोसिस्टम के लिए पौथों की तरह ही महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में यह रिपोर्ट दुनिया भर में न केवल पौधों और कवकों की वर्त्तमान स्थिति पर प्रकाश डालती है साथ ही उनके संरक्षण के लिए क्या प्रयास किए जाने चाहिए उसकी जानकारी भी देती है।   

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट को देखें तो इसमें कवकों की ज्ञात प्रजातियों में से केवल 0.4 फीसदी का ही मूल्यांकन किया गया है, जो उनकी कुल प्रजातियों का केवल 0.02 फीसदी ही है।

इतना ही नहीं कवकों की जिन प्रजातियों के बारे में हमारे पास जानकारी मौजूद है उनमें कई प्रजातियां भूमि उपयोग में आते बदलावों और जलवायु परिवर्तन के चलते खतरों का सामना कर रही है। ऐसे में रिपोर्ट में उनके अस्तित्व की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए उनके प्राकृतिक आवासों के संरक्षण पर जोर दिया है।

गौरतलब है कि वैश्विक नेताओं ने 2030 तक ग्रह के करीब 30 फीसदी हिस्से को संरक्षित करने के लक्ष्य तय किए हैं। ऐसे में संरक्षण  क्षेत्रों का चयन करते समय पौधों और कवकों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पौधे और कवक मानव जीवन के सभी पारिस्थितिक तंत्रों को आधारशिला प्रदान करते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार कवक पेड़-पौधों के अस्तित्व के लिए भी बेहद जरूरी होते हैं। कवक की कुछ प्रजातियां ऐसी होती हैं जो पेड़ पौधों के साथ मिलकर रहती हैं। यह पौधों को आवश्यक पोषक तत्व ग्रहण करने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, माइकोरिजल कवक पौधों की जड़ों के साथ जुड़ जाते हैं, ऐसे में पौधे पानी, नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे खनिज पोषक तत्वों के बदले में कवक को कार्बन और वसा प्रदान करते हैं। वहीं कुछ कवक ऐसे होते हैं जो पौधों को नुकसान पहुंचाए बिना उनकी छाया में रहते हैं। यह रोगजनकों के प्रति पौधों की प्रतिरक्षा को उत्तेजित करके और उन्हें इससे बचाए रखें में मदद करते हैं।

इस रिपोर्ट में पौधों की स्थिति को लेकर भी कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी की दुनिया में फूलों वाले पौधों की 45 फीसदी प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। मतलब की यदि उनके संरक्षण पर अभी ध्यान न दिया गया तो आने वाले समय में हमारी आने वाली पीढ़ियां उन खूबसूरत फूलों को देखने से महरूम रह जाएंगी।

इन प्रजातियों के बारे में आंकड़ों की कमी भी एक बड़ी समस्या है। रिपोर्ट के मुताबिक पौधों की विविधता से जुड़े 32 में से 14 डार्कस्पॉट उष्णकटिबंधीय एशिया में हैं। कई प्रजातियों के बारे में अभी भी आंकड़ों का आभाव है, विशेष रूप से असम, म्यांमार, कोलंबिया और वियतनाम में से प्रत्येक में 4,000 से अधिक प्रजातियों के आंकड़े गायब हैं।

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