संरक्षित जंगल ने केवल जैवविविधता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, साथ ही यह पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ी सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए भी आवश्यक हैं जो मानव कल्याण के लिए महत्वपूर्ण हैं। यही वजह है कि दुनिया भर में इनके संरक्षण पर इतना जोर दिया जा रहा है। लेकिन साथ ही एक और वजह है जो इन्हें इतना महत्वपूर्ण बनाती है और वो है बढ़ते उत्सर्जन को सीमित करने में इनकी भूमिका।
इस बारे में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के असर को सीमित करने में इन संरक्षित वन क्षेत्रों की बड़ी भूमिका है। मैरीलैंड विश्वविद्यालय (यूएमडी), उत्तरी एरिजोना विश्वविद्यालय, एरिजोना विश्वविद्यालय, कंजर्वेशन इंटरनेशनल और अन्य संस्थानों से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।
वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन में नासा के ग्लोबल इकोसिस्टम डायनेमिक्स इन्वेस्टिगेशन (जीईडीआई) सिस्टम से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके लिए 41.2 करोड़ लिडार नमूनों का उपयोग किया गया है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने संरक्षित और गैर संरक्षित क्षेत्रों की कार्बन भंडारण क्षमता का तुलनात्मक अध्ययन किया है। साथ ही यह समझने का प्रयास किया है कि क्या संरक्षित क्षेत्र उत्सर्जन से बचाव के मामले में कहीं ज्यादा प्रभावी हैं।
रिसर्च से पता चला है कि गैर संरक्षित जंगलों की तुलना में इन संरक्षित वनों ने 965 करोड़ मीट्रिक टन ज्यादा कार्बन को स्टोर किया हुआ है। यह वो कार्बन है जो इन वन क्षेत्रों में जमीन के ऊपर मौजूद बायोमास में जमा है। हालांकि देखा जाए तो यह संरक्षित और गैर संरक्षित दोनों ही वन क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से समान हैं।
इसके बावजूद संरक्षित जंगलों द्वारा इतनी ज्यादा मात्रा में कार्बन का भंडारण करना जलवायु में उनके महत्व को स्पष्ट करता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इतनी ज्यादा मात्रा में कार्बन का जमा होना मुख्य तौर पर इन जंगलों के विनाश से बचे रहने के कारण है।
रिसर्च में जो आंकड़े सामने आए हैं उनके मुताबिक इन संरक्षित क्षेत्रों में जमीन से ऊपर कुल 6,143 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन स्टॉक मौजूद है। जो भूमि से ऊपर वनस्पतियों में संग्रहीत कुल कार्बन का करीब 26 फीसदी हिस्सा है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि इन संरक्षित क्षेत्रों में मौजूद पेड़-पौधे, दुनिया के कार्बन भंडार का एक बड़ा हिस्सा अपने में संजोए हुए हैं। इस तरह यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन की रोकथाम में अहम भूमिका निभा रहे हैं। साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी सेवाओं के मामले में भी यह अहम हैं।
जैवविविधता ही नहीं जलवायु के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं यह संरक्षित क्षेत्र
रिसर्च के मुताबिक यह संरक्षित वन क्षेत्र इतने कार्बन को अपने अंदर संजोए हुए हैं जितना उत्सर्जन जीवाश्म ईंधन के कारण हर साल हो रहा है। ऐसे में यह नतीजे भविष्य में कार्बन उत्सर्जन से बचाव और बढ़ते उत्सर्जन को स्टोर करने में इन संरक्षित वन क्षेत्रों के महत्व को रेखांकित करते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इसका सबसे सकारात्मक प्रभाव अमेजॉन के संरक्षित वन क्षेत्रों में देखा गया है। वैश्विक स्तर पर संरक्षित क्षेत्रों की वजह से उत्सर्जन में जितना भी सकरात्मक प्रभाव देखा गया है उसका 36 फीसदी योगदान अकेले ब्राजील के संरक्षित वन क्षेत्रों में दर्ज किया गया है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता लौरा डंकनसन का कहना है कि हमारे पास पहले कभी भी 3डी उपग्रहों से प्राप्त डेटासेट नहीं थे। इसलिए हम इतने बड़े पैमाने पर जंगलों में मौजूद कार्बन स्टॉक को मैप नहीं कर पाए थे।" उनके मुताबिक इन संरक्षित क्षेत्रों की वजह से जितने कार्बन को वातावरण से हटाया जा सका है वो वैश्विक स्तर पर वनों के संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालता है।
यह अध्ययन जैव विविधता के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के पड़ते दुष्प्रभावों से निपटने में संरक्षण और बहाली की तात्कालिकता पर प्रकाश डालता है, जिसपर आईपीसीसी द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट में भी जोर दिया गया है।
गौरतलब है कि आईपीसीसी ने अपनी रिपोर्ट में जंगलो और अन्य पारिस्थितिक तंत्रों के विनाश को कम करने और उन्हें बहाल करने पर जोर दिया है साथ ही कार्यशील भूमि जैसे खेतों के प्रबंधन में सुधार की बात कही है। रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह के प्रकृति-आधारित समाधान 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को कम करने की पांच सबसे प्रभावी रणनीतियों में से एक हैं।
इस बारे में कंजर्वेशन इंटरनेशनल में जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के निदेशक पैट्रिक रोहरडांज का कहना है कि, "संरक्षित क्षेत्र कंजर्वेशन टूलकिट का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। जो उत्सर्जन को सीमित करके जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से निपटने में मदद करते हैं।"
उनके मुताबिक यह जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता को होते नुकसान को रोकने में मदद कर सकते हैं जो हमारे सामने मौजूद सबसे बड़े पर्यावरणीय संकटों में से एक हैं। साथ ही यह सभी पारिस्थितिक तंत्रों के 30 फीसदी हिस्से को संरक्षित करने के लक्ष्यों को हासिल करने में भी मददगार हो सकते हैं।
गौरतलब है कि कॉप-26 सम्मलेन में दुनिया के 141 देशों ने दुनिया भर के जंगलों के बढ़ते विनाश को 2030 तक न केवल रोकने की प्रतिज्ञा की थी साथ ही इस बात पर भी सहमति जताई थी कि वो इन जंगलों की पुनः बहाली के लिए काम करेंगें। इसके बावजूद 2021 में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में करीब 111 लाख हेक्टेयर में फैले जंगल खत्म हो गए थे। इसके कारण 250 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है, जोकि भारत के वार्षिक जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के बराबर है