बिरसा मुंडा के वंशजों का हाल, अधिग्रहित की 27 डिसमिल जमीन, वापस की 12.5 डिसमिल

धरती आबा बिरसा मुंडा के नाम पर सरकार कई योजनाएं चला रही हैं, लेकिन उनके वंशज ही बदहाली में जी रहे हैं
बिरसा मुंडा के पोते सुखराम मुंडा। फोटो: मो. असगर खान
बिरसा मुंडा के पोते सुखराम मुंडा। फोटो: मो. असगर खान
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धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के वंशजों की बदहाली को दूर करने के लिए हर साल बिरसा के जन्मदिवस और शहादत दिवस पर कई वादे किए जाते हैं, लेकिन ये वादे सही मायने में धरती पर नहीं उतर पाते।

दिलचस्प बात यह है कि उनके वशंजों की जिस जमीन को सरकार ने अधिग्रहण कर लिया था, उसके बदले आधे से भी कम जमीन का आवंटन तो कर दिया गया, लेकिन जमीन ऐसी है कि उनके वंशजों को रास नहीं आ रही है। 

बिरसा मुंडा झारखंड के खूंटी जिले के गांव उलिहातू में रहते थे। उनके पोते सुखराम मुंडा व उनका परिवार अभी भी इसी गांव में रहता है। सुखराम की मुंडा की लगभग 27 डिसमिल (11,761 वर्ग फुट) जमीन का अधिग्रहण 15 साल पहले सरकार ने एक स्कूल के मैदान के लिए किया था। यह जमीन सुखराम मुंडा के घर से करीब 500 मीटर दूरी पर थी। तब आश्वासन दिया गया था कि सुखराम को उनकी जमीन के बदले जमीन दी जाएगी। 

साल दर साल बीते, लेकिन उन्हें आश्वासन तो मिले, परंतु जमीन नहीं मिली। बीते 15 नवंबर 2021 को उनको जमीन के बदले जमीन के कागजात मिले। यह कागजात मुख्यमंत्री  जो केवल 12.5 डिसमिल के थे।

80 वर्षीय सुखराम मुंडा ने डाउन टू अर्थ को बताया, “जमीन नाम मात्र मिली है. 27 डिसमिल जमीन के बदले 12.5 डिसमिल जमीन दी गई। हम तो 20 डिसमिल बोले थें। पहले तो सिर्फ पांच डिसमिल देने की बात कर रहे थे। उसमें क्या करते। बाकी जमीन के बदले मुआवजा भी नहीं दिया।”

जो जमीन उन्हें आवंटित की गई है। वह उनके गांव से 30 किलोमीटर दूर है। सुखराम मुंडा अब तक वहां देखने भी नहीं गए।  

प्रधानमंत्री आवाज योजना के तर्ज पर झारखंड सरकार राज्य के जनजातियों के लिए बिरसा आवास योजना चला रही है। लेकिन बिरसा के वंशजों को इसका फायदा भी नहीं मिला। सुखराम मुंडा के परिवार में हालांकि उनके तीन विवाहित बेटों में दो चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी जरूर हैं, लेकिन इनके संयुक्त परिवार का  भार काफी बड़ा है।

सुखराम कहते हैं, “खेती औऱ ऐसे ही कुछ काम करते हैं परिवार के लिए। इस साल से खेती भी नहीं कर पाएंगे। शरीर कमजोर हो गया है। पत्नी भी बुजुर्ग है। उनसे भी खेती नहीं हो पाएगी अब। हमारे परिवार में 20 लोग हैं. भाई, बच्चे का बच्चा, सबलोग साथ में ही रहते हैं कच्चे मकान में। ठंड के मौसम में काफी दिक्कत होती है।”

इधर बिरसा का परिवार ही आज भी चुआं (छोटे कुएं जैसा) का पानी पीने को मजबूर है। जिला प्रशासन ने इसके समाधान की बात कही थी, लेकिन बिरसा के पोते की बहू गंगी मुंडा कहती हैं उन लोगों को आज भी चुआं पानी पीकर गुजारा करना पड़ रहा है.

15 नवंबर 1875 को बिरसा मुंडा खूंटी जिला के उलिहातू में जन्मे थें। इसी दिन को झारखंड स्थापना दिवस के रूप मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने 2021 में ही 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस रूप में मनाए जाने की घोषणा की है। 25 साल की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत खिलाफ बिरसा ने जल, जंगल, जमीन को लेकर उलगुलान (विद्रोह) किया। लड़ाई लड़ी। जेल गए। इसी दौरान अंग्रेजों की यातनाएं सहते हुए 9 जून 1900 को उन्होंने रांची के जेल में अंतिम सांस ली।

28 साल की जौनी कुमारी मुंडा बिरसा की पड़पोती और सुखराम मुंडा की बेटी हैं। हाल ही में उन्होंने मुंडारी में बीए ऑनर्स का फाइनल एग्जाम दिया है। आगे पोस्ट ग्रेजुएशन की योजना है, लेकिन पैसों की तंगी है।

बीए की पढ़ाई पूरी करने के लिए जौनी को खूंटी स्थित अपने कॉलेज के निकट बजारटांड में सब्जी बेचनी पड़ी। जौनी ने अपने इस हाल पर मुख्यमंत्री के नाम भावुक पत्र लिखकर मदद की गुहार लगाई। जून महीने में सब्जी बेचती उनकी तस्वीर और चिट्ठी वायरल हुई, जिसके बाद कई खबर प्रकाशित हुई।

एक खबर के मुताबिक फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने जौनी की पूरी पढ़ाई के खर्च जिम्मा उठाने का वादा किया। उन्हें किताब-कॉपी और तत्काल लैपटॉप देने की बात कही।

खूंटी कॉलेज की प्राचार्य ने जौनी की सारी फीस माफ कर देने की घोषणा कर दी। प्रशासन ने छात्रवृति प्रदान किये जाने का भरोसा दिलाया. लेकिन अभी तक ये सारे आश्वासन भी आधे-अधूरे रहे।

जौनी कुमारी मुंडा ने बताया, “दो सेमस्टर की किताब-कॉपी मिली थी। किसी अखबार वालों ने यह सब दिया था, लेकिन जब उनसे लैपटॉप के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि अभी सोनू सूद शूटिंग में व्यस्त हैं।”

जौनी आगे कहती हैं, “कहा गया है कि सारी फीस माफ होगी. प्राचार्य मैडम बोलीं थी कि फीस का जितना रसीद, चलान है, सबको जमा कर दो. तुमको सबका पैसा मिल जाएगा. मैंने जमा कर दिया. लेकिन अभीतक नहीं मिला पाया है पैसा. चार बार छात्रवृति अबतक भरा. छात्रवृति का एक भी पैसा नहीं मिला. मकान बना दिया जाएगा, ये भी कहा गया. अभी तक मकान नहीं बना.”

जौनी कहती हैं, “मेरे साथ बिरसा जैसा नाम जुड़ा हुआ है तब भी मेरा ये हाल है. लेकिन जिन गरीब आदिवासी बच्चे, बच्चियों के साथ बिरसा का नाम नहीं जुड़ा है उन्हें कौन पढ़ाएगा, खिलाएगा। सरकार को चाहिए कि चिन्हित करके पढ़ाए, लिखाए।

उधर अडकी प्रखंड पदाधिकारी नरेंद्र कहते हैं कि जौनी मुंडा को लैपटॉप दिया गया है। उनके परिवार को 10-12 डिसमील जमीन दी गई है। आवास इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि उनके परिवार के लोग सरकारी नौकरी पर हैं। नौकरी वालों को आवास नहीं मिलता है। उनका दावा है कि शहीद बिरसा आवास योजना के तहत उलिहातू के सारे लोगों को आवास मिला है। बिरसा के परिवार को धोती-कुर्ता मिला. रांची, दिल्ली में सम्मानित किया गया. प्रत्येक वर्ष कुछ न कुछ लाभ तो मिलता ही रहता है।

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