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38 डिग्री से अधिक तापमान रानी मधुमक्खी के लिए सही नहीं: रिसर्च

ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय और उत्तरी कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मधुमक्खियों के प्रजनन पर बढ़ते तापमान के असर का अध्ययन किया है
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ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय और उत्तरी कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के नए शोध से वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जलवायु परिवर्तन पक्षियों और मधुमक्खियों को किस तरह प्रभावित कर रहा है।

नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने रानी मधुमक्खी में संग्रहित शुक्राणु का विश्लेषण करने के लिएमास  स्पेक्ट्रोमेट्री” नामक एक तकनीक का इस्तेमाल किया। इससे पता चला कि जब रानी मधुमक्खी अत्याधिक तापमान के संपर्क में आती है तो इसके पांच प्रोटीन सक्रिय हो जाते हैं।

माइकल स्मिथ लैब्स के बायोकेमिस्ट और मुख्य अध्ययनकर्ता एलिसन मैकएफी कहते है कि जैसे मनुष्यों में हृदय रोग के खतरे को जानने के लिए कोलेस्ट्रॉल के स्तर का उपयोग किया जाता है, उसी तरह ये प्रोटीन संकेत दे सकते हैं कि क्या एक रानी मधुमक्खी ने गर्मी में तनाव का अनुभव किया या नहीं। यदि हम मधुमक्खियों के बीच गर्मी के आघात के पैटर्न को देखे, तो अब हमें वास्तव में अन्य कीड़ों के बारे में चिंता करनी होगी।

हालांकि अन्य कीड़ों की तुलना में मधुमक्खियां अपने आपको वातावरण के अनुकूल ढाल लेती है। ये बहुत उपयोगी होती हैं, क्योंकि इनको दुनिया भर में लोगों द्वारा पाला जाता है।

शोधकर्ताओं को विशेष रूप से रानी मधुमक्खियों में दिलचस्पी थी, क्योंकि उनकी प्रजनन क्षमता सीधे एक कॉलोनी की उत्पादकता से जुड़ी होती है। यदि रानी द्वारा संग्रहित शुक्राणु क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो वह "विफल" हो सकती है जब उसके पास पर्याप्त नर मधुमक्खी का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त जीवित शुक्राणु नहीं होते है, तो कॉलोनी को बनाए रखने के लिए कार्यकर्ता मधुमक्खियों की संख्या भी कम हो जाती है।

मैकएफी ने कहा हम यह जानना चाहते थे कि रानी मधुमक्खियों के लिए 'सुरक्षित' तापमान क्या होता है? गर्मी के संपर्क में आने के दो संभावित मार्ग हैं। पहला, उनकी यात्रा के दौरान और दूसरा, कॉलोनियों के अंदर रहने पर। यह जानकारी मधुमक्खी पालकों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनके पास यह पता करने का कोई तरीका नहीं है कि मधुमक्खियों के छत्ते में रानियां किस स्थिति में हैं।

मैकएफी ने पहले पता किया कि रानी के शुक्राणु कब क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, और वे कितनी गर्मी का सामना कर सकते थे। उन्होंने बताया कि हमारे डेटा से पता चलता है कि 15 से 38 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान रानियों के लिए सुरक्षित है। 38 डिग्री से ऊपर, जीवित शुक्राणुओं का प्रतिशत काफी कम हो जाता है, जो सामान्य 90 प्रतिशत से कम होकर 11.5 प्रतिशत तक आ सकता है। 

शोधकर्ताओं ने सात रानी मधुमक्खियों को अलग-अलग छत्ते में किसी को जमीन और किसी को हवा में लटका दिया तथा इन पर तापमान ट्रेकर लगा दिए गए। उन्होंने पाया कि एक पैकेज में 38 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में वृद्धि हुई है, जबकि एक में चार डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट आई थी। मधुमक्खी कालोनियों को आमतौर पर छत्ते के अंदर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है।

शोधकर्ता यह जानना चाहते थे कि वास्तव में तापमान कितना कम हुआ। उन्होंने अगस्त में कैलिफोर्निया के एल सेंट्रो में तीन छत्तों में तापमान दर्ज किया, जब प्रत्येक छत्ते के परिवेश का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। उन्होंने पाया कि तीनों छत्तों में, दो सबसे बाहरी फ्रेमों का तापमान दो से पांच घंटे तक 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, जबकि दो छत्तों में से एक फ्रेम का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है।

यूएसडीए के पूर्व वैज्ञानिक जेफ पेटीस ने कहा, यह हमें बताता है कि थर्मोरेग्यूलेट एक कॉलोनी की क्षमता अत्यधिक गर्मी में टूटने लगती है, और रानियां भी छत्ते के अंदर खतरे को महसूस कर सकती हैं। इन प्रमुख मापदंडों को स्थापित करने के बाद, शोधकर्ता रानी मधुमक्खियों के बीच गर्मी के तनाव की निगरानी के लिए प्रोटीन संकेतक (प्रोटीन सिग्नेचर) का उपयोग कर सकते हैं।  

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