सुप्रीम कोर्ट ने छह मई, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 25 जनवरी, 2024 में दिए आदेश को रद्द कर दिया है। साथ ही यह निर्देश दिया है कि वहां 14 सितंबर 2006 को जारी अधिसूचना के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए कोई भी गतिविधि नहीं की जानी चाहिए। पूरा मामला असम के सिलचर में प्रस्तावित ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे से जुड़ा है।
यह फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनाया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि यदि पर्यावरण मंजूरी (ईसी) के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत किया गया है या भविष्य में प्रस्तुत किया जाएगा, तो उस आवेदन पर कार्रवाई साइट की पहले की स्थिति के आधार पर होनी चाहिए, क्योंकि उस क्षेत्र में चाय के पौधों और छायादार पेड़ों को अवैध रूप से काटा गया है। मतलब की इस साइट की पहले क्या स्थिति थी उस के आधार पर ही पर्यावरण मंजूरी के आवेदन पर कार्रवाई की जानी चाहिए।
गौरतलब है कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने असम के सिलचर में एक नया वाणिज्यिक हवाई अड्डा बनाने का निर्णय लिया था क्योंकि रक्षा उद्देश्य के लिए बनाया मौजूदा हवाई अड्डा, नागरिक उड़ानों के संचालन के लिए उपयुक्त नहीं है। इस हवाई अड्डे के लिए असम सरकार ने तीन चाय बागानों - डोलू, खोरील और सिलकोरी को चुना था।
इन विकल्पों का अध्ययन करने के बाद, भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (एएआई) ने नए हवाई अड्डे के लिए डोलू को चुना। इस हवाई अड्डे के लिए 335 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता थी, इसलिए भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण ने अतिरिक्त भूमि के लिए अनुरोध किया था। इसके बाद डोलू के बगल में अतिरिक्त 69 हेक्टेयर भूमि की पहचान की गई, जहां करीब 173 घर मौजूद हैं। कुल मिलाकर, हवाई अड्डा 404 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करेगा।
इस मामले में अपीलकर्ताओं ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में शिकायत की थी। उनके मुताबिक पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 14 सितंबर 2006 को जारी अधिसूचना के मुताबिक, एक हवाई अड्डे के निर्माण के लिए पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता होती है, लेकिन उसके बिना ही इस साइट पर चाय के पौधों और छायादार पेड़ों को काटा गया है।
25 जनवरी, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ओए को खारिज कर दिया। एनजीटी का कहना था कि हवाई अड्डे के लिए पर्यावरणीय मंजूरी नहीं दी गई है और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है। फिर भी यह माना गया कि साइट क्लीयरेंस और सैद्धांतिक मंजूरी देने पर रोक लगाने का आदेश देने के लिए अपीलकर्ताओं की याचिका उस स्तर पर निराधार थी। एनजीटी ने यह भी उल्लेख किया कि सिर्फ इसलिए कि नियमों में कहा गया है कि आपको पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता है, इसका मतलब यह नहीं कि वो पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करने के लिए यह अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल, 2024 को इस मामले में अपील पर सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह स्पष्ट है कि हवाईअड्डा परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता है और ऐसी कोई मंजूरी जारी नहीं की गई है।
अदालत को सूचित किया गया है कि मई 2022 में, दिन-रात काम करके तीन दिनों में लगभग 200 से 250 जेसीबी का उपयोग करके डोलू टी एस्टेट, हवाई अड्डे की साइट से चाय की झाड़ियों को हटा दिया गया। वहां छायादार पेड़ों को काट और उखाड़ दिया गया है। साथ ही इस ऑपरेशन के दौरान वहां रहने वाले लोगों को उनके घरों से बाहर निकलने से रोका गया।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अपीलकर्ताओं की शिकायत सही है या नहीं इस पर एनजीटी ने ठीक से जांच नहीं की। एनजीटी द्वारा मामले को लापरवाही से खारिज करना यह दर्शाता है कि उन्होंने अपना काम ठीक से नहीं किया और न ही अपीलकर्ताओं द्वारा उठाई पर्यावरण संबंधी चिंताओं को गंभीरता से लिया।
फतेहपुर में अवैध खनन का मामला, एनजीटी ने अधिकारियों से मांगा जवाब
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने औंग पुलिस स्टेशन क्षेत्र के पास हो रहे अवैध खनन के मामले में अधिकारियों को जवाब देने का निर्देश दिया है। मामला उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले का है। इस मामले में एनजीटी ने आठ मई, 2024 को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (क्षेत्रीय कार्यालय, लखनऊ) और फतेहपुर के जिला मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी करने को कहा है।
इन सभी को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अपनी प्रतिक्रियाएं प्रस्तुत करनी होंगी। इस मामले में अगली सुनवाई 21 अगस्त, 2024 को होनी है।
अवैध खनन से जुड़ा यह कथित मामला, दो मार्च 2024 को अमर उजाला में प्रकाशित एक खबर में सामने आया था। इस खबर में एक वीडियो का भी हवाला दिया गया था, जिसमें दर्शाया गया था कि कैसे अवैध खनन के चलते पेड़-पौधे और पहाड़ियां नष्ट हो रही हैं। इस खबरे में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि अवैध खनन से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। साथ ही इसकी वजह से कृषि भूमि सिकुड़ रही है।
इसके अतिरिक्त, खबर में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि आशापुर-अभयपुर गांव में वन विभाग के क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अवैध खनन से नष्ट हो रहा है। शिकायत में विशेष रूप से अभयपुर के एक स्थानीय नेता का जिक्र किया गया है, जिसके द्वारा 25 से 30 फीट की गहराई तक किए खनन की शिकायत की गई है।
एनजीटी ने मथुरा में चल रहे ईंट भट्टों की जांच के दिए आदेश, समिति की गई गठित
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आठ मई 2024 को उत्तर प्रदेश के मथुरा में मौजूद ईंट भट्टों के निरीक्षण का आदेश दिया है, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि वे किसी भी नियम का उल्लंघन कर रहे हैं या नहीं और उनके द्वारा किए उल्लंघन की सीमा का पता चल सके।
इस मामले में ट्रिब्यूनल ने एक संयुक्त समिति के गठन का भी निर्देश दिया है, जिसमें उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी, सदस्य सचिव और मथुरा के जिला मजिस्ट्रेट शामिल होंगे। यह समिति जिले में ईंट भट्टों का निरीक्षण करेगी, किसी भी उल्लंघन का आकलन करेगी और दो महीने के भीतर यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव को एक रिपोर्ट सौंपेगी।
कोर्ट ने आदेश में कहा है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव रिपोर्ट की समीक्षा करेंगे और पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने वाले किसी भी ईंट भट्ठे की सुनवाई करेंगे। वे उल्लंघन की सीमा निर्धारित करेंगे और पर्यावरणीय जुर्माना लगाने जैसी आवश्यक कार्रवाई करेंगे। कोर्ट का यह भी निर्देश है कि इस मामले में की गई कार्रवाई पर एक रिपोर्ट तीन महीने के भीतर एनजीटी के रजिस्ट्रार जनरल को प्रस्तुत की जानी चाहिए।