संकटग्रस्त व्हेल शार्क के लिए बड़ा खतरा है शिपिंग, घटती आबादी के लिए भी है जिम्मेवार

पता चला है कि शिपिंग की बढ़ती गतिविधियों के चलते इन विशालकाय मछलियों के बड़े जहाजों से टकराने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है, जो इनकी घटती आबादी के लिए जिम्मेवार है
संकटग्रस्त व्हेल शार्क के लिए बड़ा खतरा है शिपिंग, घटती आबादी के लिए भी है जिम्मेवार
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आर्थिक विकास और बढ़ते व्यवसाय के साथ ही समुद्र में बड़े जहाजों की गतिविधियां भी बढ़ गई हैं, जो हम इंसानों के लिए फायदेमंद जरूर हैं पर उनका शिकार समुद्र के कुछ बड़े जीव भी बन रहे हैं। ऐसा ही कुछ व्हेल शार्क के मामले में भी सामने आया है, जिसके बारे में पता चला है कि बढ़ती शिपिंग गतिविधियों के चलते इन विशालकाय मछलियों के बड़े जहाजों से टकराने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। जो इनकी घटती आबादी के लिए जिम्मेवार हो सकता है।

गौरतलब है कि व्हेल शार्क समुद्र की सबसे विशालकाय मछलियां हैं, जिन्हें पहले ही संकटग्रस्त घोषित किया जा चुका है। जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक व्हेल शार्क की गतिविधियां अक्सर स्थान और समय दोनों के मामले में बड़े जहाजों के साथ ओवरलैप होती हैं। जो शायद इस सवाल का उत्तर दे सकती हैं कि आखिर दुनिया की इन सबसे बड़ी मछलियों की आबादी क्यों कम हो रही है।

अध्ययन के अनुसार, इन बड़े जहाजों से न केवल व्हेल शार्क खतरे में हैं, बल्कि समुद्र के अन्य विशालकाय जीवों जैसे डॉल्फिन, व्हेल, पोरपोइज़ और समुद्री कछुओं की भी इन जहाज से टकराने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

मरीन बायोलॉजिकल एसोसिएशन (एमबीए) और साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार बड़े जहाजों के साथ व्हेल शार्क के घातक टकराव को बहुत कम करके आंका जाता है, यही कारण है कि इस विशाल जीव की आबादी कम हो रही है। हाल के वर्षों में कई स्थानों पर व्हेल शार्क की संख्या में गिरावट आई है, लेकिन यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है।

चूंकि व्हेल शार्क अपना ज्यादातर समय सतह पर बिताती हैं और तटीय क्षेत्रों में इकट्ठा होती हैं। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि जहाजों के साथ टकराव से उनकी मौत हो सकती है, लेकिन इस खतरे की निगरानी का कोई तरीका नहीं था।

आपस में टकराती हैं 90 फीसदी व्हेल शार्क और इन बड़े जहाजों की गतिविधियां

50 अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थानों और विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने जोखिम और संभावित टकराव के क्षेत्रों की पहचान करने के लिए दुनिया भर में व्हेल शार्क और जहाजों दोनों की गतिविधियों पर नजर रखी थी। उन्होंने लगभग 350 व्हेल शार्क के सैटेलाइट ट्रैक किए गए मूवमेंट डेटा को एमबीए के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में ग्लोबल शार्क मूवमेंट प्रोजेक्ट में प्रस्तुत किया है।

इसे जानने के लिए शोधकर्ताओं ने शार्क के उन हॉटस्पॉट की मैपिंग की है जो कार्गो, टैंकर, यात्री और मछली पकड़ने के जहाजों के साथ ओवरलैप होते हैं। यह जहाज इतने बड़े थे कि जिनसे टकराने पर इन व्हेल शार्क की मौत हो सकती है। इस मैपिंग से पता चला है कि 90 फीसदी से अधिक व्हेल शार्क की गतिविधियां इन बड़े जहाजों के रास्ते में आती हैं।

इसके साथ ही अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इन व्हेल शार्क पर लगाए टैग का प्रसारण अनुमान से कहीं ज्यादा इन व्यस्त शिपिंग लेन में बंद हो रहा है। शोधकर्ताओं के अनुसार इसका कारण इन मछलियों और जहाजों का टकराव है जिसके कारण इनके मारे जाने और समुद्र तल में डूबने के कारण इनका प्रसारण बंद हो रहा है।

गौरतलब है कि व्हेल शार्क धीमी गति से चलने वाले महासागरीय जीव हैं जो लंबाई में 20 मीटर तक बढ़ सकते हैं। यह विशालकाय मछलियां अपने भोजन के लिए जोप्लांकटन नामक सूक्ष्म जीवों पर निर्भर करती हैं। देखा जाए तो यह मछलियां समुद्र में प्लवक के स्तर को नियंत्रित करती है और समुद्री खाद्य श्रंखला और  महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 

इस बारे में ग्लोबल शार्क मूवमेंट प्रोजेक्ट के संस्थापक प्रोफेसर डेविड सिम्स का कहना है कि टैग्स से पता चला है कि कुछ व्हेल शार्क शिपिंग लेन में आगे बढ़ते हुए धीरे-धीरे सैकड़ों मीटर नीचे डूब रही हैं, जो इन बड़े जहाजों से टकराव का नतीजा था। उनके अनुसार यह सोचकर दुःख होता है कि इन कई अविश्वसनीय जीवों की मौतें जहाजों के कारण हो रही हैं, जबकि हम यह भी नहीं जानते कि इनकों कैसे बचाया जा सकता है। 

देखा जाए तो वर्तमान में व्हेल शार्क को जहाजों की टक्कर से बचाने के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय नियम नहीं हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि इस पर जल्द कार्रवाई न की गई तो इस प्रजाति को अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में ऐसे में इससे पहले कि बहुत देर हो जाए हमें इस संकटग्रस्त प्रजाति को बचाने की कवायद तेज करनी होगी, क्योंकि जलवायु परिवर्तन जैसे खतरे पहले ही इन्हें लील लेने को तैयार हैं।

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