वैज्ञानिकों ने काजीरंगा उद्यान में जलवायु व वनस्पति में हुए बदलावों का पता लगाने के लिए बनाया उपकरण

शोध में कहा गया है कि यह उपकरण पूर्वोत्तर भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में अतीत के शाकाहारी और पारिस्थितिकी अध्ययन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है
असम का काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी), फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, असम उच्चतर माध्यमिक परिषद
असम का काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी), फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, असम उच्चतर माध्यमिक परिषद
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भारतीय जीव वैज्ञानिकों ने एक नए शोध में, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, जो पूर्वोत्तर भारतीय राज्य असम में एक संरक्षित क्षेत्र है, यहां पराग या पॉलेन एवं बिना पराग पैलिनोमोर्फ (एनपीपी) के लिए एक आधुनिक उपकरण विकसित किया है। यह उपकरण किसी क्षेत्र में अतीत की वनस्पतियों और जलवायु के बारे में पता लगाने में मदद कर सकता है।

जलवायु परिवर्तन किसी भी क्षेत्र में, किसी समयावधि में वनस्पति में होने वाले बदलावों की लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। फिर भी यह राष्ट्रीय उद्यान जैव विविधता संरक्षण के लिए अत्यधिक संरक्षित क्षेत्र हैं। प्रतिकूल और अप्रत्याशित मौसम एवं प्राकृतिक आपदाओं के कारण, राष्ट्रीय उद्यानों में जैव विविधता के नुकसान के प्रमुख कारणों में से एक है।

ऐसी परिस्थितियों में, भविष्य के जलवायु का सटीकता से मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है, जिसके लिए ऐसे कठोर जलवायु मॉडल की आवश्यकता होती है जो आधुनिक और पिछले जलवायु के आंकड़ों का उपयोग करके बनाए जाते हैं।

असम में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी), भारतीय उप-क्षेत्र में इंडो-मलायन जीवों के लिए एक ऐसा गलियारा है, जो उन उष्णकटिबंधीय प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है, जो हिमयुग के दौरान इन वर्गों के लिए जीन या गुणसूत्र के भंडार के रूप में कार्य करता है।

इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी) के वैज्ञानिकों ने असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में अलग-अलग तरह की वनस्पति से किसी क्षेत्र विशेष की अतीत की वनस्पतियों और जलवायु का पता लगाने के लिए पराग या पॉलेन एवं बिना पराग पैलिनोमोर्फ (एनपीपी) पर आधारित एक आधुनिक उपकरण या एनालॉग डेटासेट विकसित किया है।

यह अध्ययन जैविक प्रक्रियाओं की क्षमताओं और कमजोरियों दोनों का मूल्यांकन करता है और यह आकलन करता है कि आधुनिक पराग और एनपीपी एनालॉग कितने विश्वसनीय रूप से विभिन्न पारिस्थितिक वातावरणों की पहचान कर सकते हैं और इस क्षेत्र में लेट क्वाटरनरी पैलियो-पर्यावरण और पारिस्थितिकी परिवर्तनों की अधिक सटीकता से व्याख्या करने के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।

अतीत और भविष्य के जलवायु परिदृश्य को समझने के लिए इस भारी बारिश वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आधुनिक पराग एनालॉग एक शर्त है, पुरापारिस्थितिक (पेलियोइकोलॉजिकल) डेटा राष्ट्रीय उद्यान में और उसके आसपास स्थायी भविष्य के अनुमानों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा।

एकल-प्रॉक्सी व्याख्या की तुलना में, लिए पराग एवं बिना-पराग पैलिनोमोर्फ (एनपीपी) का मिश्रण अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकता है और बाद के अतीत में हुए बदलावों के बारे में फिर से पता लगाने में मदद कर सकता है। यह शोध आधुनिक पराग और एनपीपी एनालॉग विकसित करने की दिशा में पहला बड़ा शोध है। यह पूर्वोत्तर भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में अतीत के शाकाहारी और पारिस्थितिक अध्ययन के लिए एक सटीक उपकरण होगा।

होलोसीन नामक पत्रिका में पहली बार प्रकाशित अध्ययन से काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की विभिन्न वनस्पतियों और भूमि-उपयोग के संबंध में सतह की मिट्टी के नमूनों से प्राप्त निशान जो पराग वर्गीकरण समूह की पहचान करने में सहायता मिलती है। यह सार्वजनिक और वन्यजीव प्रबंधन एजेंसियों को राष्ट्रीय उद्यानों में वनस्पतियों और जीवों विशेषकर शाकाहारी जीवों के संबंध को समझने में सहायक बन सकता है ताकि इसे वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं के लिए संरक्षित किया जा सके।

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