पर्यावरण संवेदी क्षेत्र के एक किलोमीटर दायरे में प्रतिबंधों पर मिल सकती है छूट : सुप्रीम कोर्ट का संकेत

केंद्र ने कहा कि ईएसजेड प्रतिबंध में ऐसा बदलाव हो कि नए निर्माण के लिए अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।
पर्यावरण संवेदी क्षेत्र के एक किलोमीटर दायरे में प्रतिबंधों पर मिल सकती है छूट : सुप्रीम कोर्ट का संकेत
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सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित करते हुए यह संकेत दिया है कि वह संरक्षित और वन्यजीव अभ्यारण्य के एक किलोमीटर दायरे में फैले पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (ईएसजेड) में लगाए गए प्रतिबंधों में ढील दे सकती है। 
 
जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ और संजय करोल की पीठ टीएन गोदावर्मन थिरमुलपाद बनाम भारत सरकार व अन्य के मामले सुनवाई कर रही है।  इस मामले में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और जलवायु परिवर्तन के साथ कई राज्य सरकारों ने एक किलोमीटर दायरे के पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में लगाए गए स्थायी निर्माण और खनन प्रतिबंधों में राहत की मांग की है।  
 
3 जून, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में वन क्षेत्र और संरक्षित वन क्षेत्र, वन्यजीव अभ्यारण्य और नेशनल पार्क के एक किलोमीटर के पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में स्थायी निर्माण और खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था। किसी भी संरक्षित वन के मुख्य क्षेत्र के चारो ओर का क्षेत्र बफर जोन और फिर पर्यावरण संवेदी क्षेत्र का इलाका होता है। यह सभी क्षेत्र विनियमित और प्रतिबंधित होते हैं। 
 
सुरक्षित किए गए फैसले में जस्टिस बीआर गवई के मौखिक ऑब्जरवेशन पर लिव-लॉ वेबसाइट ने लिखा है "पहली नजर में हम इस बदलाव के मांग वाली याचिका को अनुमति देने के इच्छुक हैं।"  हालांकि, जस्टिस गवई ने यह भी जोड़ा कि यदि बदलाव संबंधी कोई आदेश आता है तो ईएसजेड क्षेत्र में खनन प्रतिबंधों को नहीं हटाया जाएगा। 
 
लिव-लॉ वेबसाइट के मुताबिक 15 मार्च, 2023 को भी जस्टिस गवई ने कहा "जो भी प्रतिबंधित है वह प्रतिबंधित रहेगा और जो भी विनियमित है वह विनियमित रहेगा। हालांकि जब सीधा मानव-वन्यजीव संघर्ष न हो तो निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।"
 
इस सुनवाई में केंद्र की तरफ से कोर्ट में पेश होने वाली एडीशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अपनी दलील में कहा कि एक ही नियम सभी के लिए फिट नहीं हो सकता। पूरे देश में बफर जोन में प्रतिबंध से कई व्यावहारिक परेशानियां सामने आएंगी। यह साइट के आधार पर होना चाहिए। 
 
इसके अलावा केंद्र की ओर से कहा गया है कि गैर प्रतिबंधित क्रियाकलापों के लिए एक नियम की जरूरत है जिसमें प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट की स्वीकृति होनी चाहिए। 
 
साथ ही दूसरा नियम पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में किसी भी मकसद के लिए नया निर्माण नहीं होना चाहिए। 
 
वहीं, पूरे देश में ईएसजेड में एक समान प्रतिबंध मामले में नियुक्त न्याय मित्र  के परमेश्वर ने कहा कि इससे आदिवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है, जो कि उन्हें वन अधिकार कानून, 2006 के तहत मिलता है। मिसाल के तौर पर उन्होंने केरल के सुलथान बाथरे नगर निकाय जहां आदिवासियों का प्रभुत्व है। वह इलाका एक संरक्षित क्षेत्र के बफर जोन में है। जहां परियोजनाएं जारी हैं इसके लिए उन्हें अनुमतियां लेनी होंगी। हालांकि, के परमेश्वर ने भी कहा कि सभी नोटिफिकेशन में पूरी तरह छूट नहीं होनी चाहिए। 
 
वहीं, केरल की ओर से पेश अधिवक्ता ने अपनी दलील में कहा कि पूरा राज्य 30 फीसदी फॉरेस्ट एरिया से कवर है। सघन आबादी है और ज्यादातर वन क्षेत्रों के करीब रहते हैं। ऐसे में उनके लिए प्रतिबंध काफी मुश्किलों भरा है।   
 
फिलहाल इस मामले पर पीठ अब 24 मार्च को अपना फैसला सुनाएगी। 

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