सुंदरवन में पर्यावरण नियमों की धज्जियां उड़ा कर बन रहे रिसॉर्ट, एनजीटी नाराज

दक्षिण 24 परगना जिले के गोसाबा ब्लॉक में बाली-1 पंचायत के अमलामेथी क्षेत्र में इको-टूरिज्म के नाम पर निजी कंपनी रिसॉर्ट बनवा रही है
सुंदरवन के अमलामेथी में बन रहे काॅटेज। फोटो: उमेश कुमार रॉय
सुंदरवन के अमलामेथी में बन रहे काॅटेज। फोटो: उमेश कुमार रॉय
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पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मामले में अतिसंवेदनशील पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र में निजी कंपनी द्वारा विकसित किये जा रहे अमलामेथी हिल रिसॉर्ट प्रोजेक्ट में पर्यावरण संरक्षण एक्ट की अनदेखी उजागर हुई है और पूरे प्रोजेक्ट को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने तीखी टिप्पणी की है।

एनजीटी ने अगले आदेश तक के लिए पुलिस के जरिए उक्त प्रोजेक्ट का काम बंद करने का आदेश जारी किया है।

गौरतलब हो कि दक्षिण 24 परगना जिले के गोसाबा ब्लॉक में बाली-1 पंचायत के अमलामेथी क्षेत्र में इको-टूरिज्म के नाम पर निजी कंपनी रिसॉर्ट बनवा रही है। वहां दो कॉटेज बनकर तैयार हो गये हैं और 19 कॉटेज बन रहे हैं। ये कॉटेज विद्या नदी से महज 30 फीट और मैनग्रो वन से 1200 मीटर दूर हैं। इसके अलावा कई वाच टावर और 56 लकड़ी के पुल बनाये गये हैं। क्षेत्र में कई अप्राकृतिक द्वीप भी विकसित किये गये हैं।

इसको लेकर दक्षिणबंग मत्स्यजीवी फोरम ने एनजीटी में मामला दायर किया था और आरोप लगाया था कि पर्यावरण नियमों को ताक पर रखकर रिसॉर्ट बनाया जा रहा है। इस मामले में एनजीटी ने वेस्ट बंगाल कोस्टल जोन मैनेजमेंट अथॉरिटी (डब्ल्यूबीसीजेडएमए) से मामले की जांच कर एफिडेविट देने को कहा था।

अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूबीसीजेडएमए ने कहा कि अमलामेथी हिल रिसॉर्ट प्रोजेक्ट सीआरजेड-Iए और गंभीर रूप से खतरनाक तटीय क्षेत्र में आता है।

23 दिसम्बर को दिये अपने आदेश में एनजीटी ने कहा, “उक्त निर्माण में फरवरी 1991 के कोस्टल रेगुलेशंस जोन रूल्स का पालन नहीं हुआ है और जिस क्षेत्र में निर्माण किया जा रहा है वो कोस्टल रेगुलेशन जोन-I के अंतर्गत उच्च ज्वार वाले क्षेत्र में  आता है।”

एनजीटी ने जिले के डीएम पी उलगानाथन, जो जिला कोस्टल जोन मैनेजमेंट अथॉरिटी के प्रमुख भी है, की निष्क्रियता पर भी सख्त टिप्पणी की है।

एनजीटी के निर्देश पर डीएम ने 21 दिसम्बर को एक एफिडेविट जमा किया था, लेकिन रिपोर्ट में सिर्फ इस बात का जिक्र था कि मौके का मुआयना कर पाया कि प्रोजेक्ट का काम चल रहा है। रिपोर्ट में कार्रवाई का कोई जिक्र नहीं था, जिसे देखकर जस्टिस बी अमित सतलेकर और एक्सपर्ट मेंटर शैवाल दासगुप्ता नाराज हो गये।

उन्होंने अपने आदेश में कहा, “इस रिपोर्ट में ये नहीं बताया गया है कि पर्यावरण नियमों और कोस्टल रेगुलेशन जोन रूल्स के उल्लंघन के लिए जिला मजिस्ट्रेट की तरफ से क्या कार्रवाई की गई है।”

“साइट का दौरा 7 दिसम्बर को किया गया और एफिडेविट 21 दिसम्बर को जमा किया गया है। इन दो हफ्तों में क्या कार्रवाई हुई, इसका एफिडेविट में कोई जिक्र नहीं है। जिला कोस्टल जोनल मैनेजमेंट अथॉरिटी का चेयरमैन जिला मजिस्ट्रेट है। ये हैरानी की बात है कि जिला मजिस्ट्रेट की नाक के नीचे इतना निर्माण कार्य और तटीय पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने दिया गया। ये स्थिति से निबटने में मुस्तैदी की कमी और अक्षमता को जाहिर करती है,” एनजीटी ने अपने आदेश में लिखा।

एनजीटी ने एक हफ्ते का वक्त कहा कि उनके खिलाफ अदालत ने जो टिप्पणी की है, उसे उनके सर्विस बुक में भी दर्ज किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी 2022 को की जाएगी, जिसमें डीएम को उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है।

पहले भी लिया गया था स्वतः संज्ञान

सूत्र बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट को लेकर कुछ साल पहले एनजीटी ने स्वतः संज्ञान भी लिया था, लेकिन मामला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला गया था। बाद में दक्षिणबंग मत्स्यजीवी फोरम ने दोबारा इस मामले को उठाया। फोरम के अध्यक्ष प्रदीप चटर्जी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए अव्वल तो जमीन ही नहीं मिलनी चाहिए था, लेकिन पैसे और राजनीतिक पहुंच के बूते कंपनी ने जमीन ले ली।

उन्होंने कहा, “पर्यावरण और जैवविविधता को भारी नुकसान पहुंचाते हुए निजी कंपनी रिसॉर्ट बना रही है। कंपनी ने मैनग्रो वन को बर्बाद किया और कई अप्राकृतिक द्वीप बनाये। मैनग्रो वन में मछलियां पलती हैं। मैनग्रो के नष्ट होने से क्षेत्र के मछुआरों की रोजीरोटी पर भी संकट आ गया है।”

उनके मुताबिक, ये कोई इकलौता प्रोजेक्ट नहीं है, जो इस तरह सुंदरवन को नुकसान पहुंचा रहा है। इस तरह के बहुत सारे प्रोजेक्ट सुंदरवन में चल रहे हैं और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में मैनग्रो का वन कई सौ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। लेकिन हाल के वर्षों में वनों के क्षेत्रफल में कमी आई है। साल 2017 में 2114 वर्ग किलोमीटर में मैनग्रो वन फैला हुआ था जो साल साल 2020 में घटकर 2112 वर्ग किलोमीटर पर आ गया।

ये पहली बार नहीं है कि इस तरह के इको-टूरिज्म प्रोजेक्ट पर पर्यावरण और जैवविविधता को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा है। साल 2016 में पश्चिम बंगाल सरकार के इको-टूरिज्म प्रोजेक्ट गाजोलडोबा मेगा इको-टूरिज्म हब को लेकर एनजीटी ने तीखी टिप्पणी करते हुए पर्यावरण मंजूरी लेने का आदेश दिया था।

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