शोधकर्ताओं ने महासागरों को नुकसान पहुंचाने वाली औद्योगिक गतिविधियों से निपटने का खोजा तरीका

इस काम का लक्ष्य न केवल संरक्षणवादियों और कई उद्योगों के बीच संघर्ष को कम करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि समुद्री जीवन सभी तीन उद्योगों से पड़ने वाले बुरे प्रभावों से सुरक्षित रहे
फोटो साभार : सीएसई
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एक नए शोध में कहा गया है कि मानवीय गतिविधियों से होने वाले नुकसान से दुनिया के महासागरों की किफायती तरीके से रक्षा की जा सकती है।

शोध में समुद्री क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों के बढ़ने से समुद्री जैव विविधता में तेजी से आ रही गिरावट को रोकने के अहम तरीकों के बारे में सुझाव दिए गए हैं। यह अध्ययन क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एंथनी रिचर्डसन की अगुवाई में किया गया है।

समुद्री संसाधनों और जगह पर दावा करना लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है, लेकिन आज महत्वाकांक्षा की सीमा, तीव्रता और विविधता काफी बढ़ गई है। जिसे 'नीले त्वरण' या 'ब्लू अक्सेलरेशन' के रूप में जाना जाता है, जो समुद्री भोजन, सामग्री और अक्सर प्रतिस्पर्धी हितों के बीच एक तरह की दौड़ है।

शोध के हवाले से प्रोफेसर रिचर्डसन ने कहा कि यह नीला त्वरण जो राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र (एबीएनजे) के बाहर रुचि रखने वाले लोगों में बड़ी विविधता देखी जा रही है, जैसे आर्थिक क्षेत्रों से बाहर अंतरराष्ट्रीय समुद्री तटों पर अपना वर्चस्व स्थापित करना।

इससे एक ऐसा मुद्दा पैदा हो गया है जहां मौजूदा समुद्री सुरक्षा पद्धतियां हर क्षेत्र को अलग-अलग देखती हैं - जैसे मछली पकड़ना, शिपिंग और गहरे समुद्र में खनन उद्योग, जिनका सभी प्रजातियों, समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ता है। 

इससे पार पाने के लिए शोधकर्ताओं ने हिंद महासागर में समुद्री संरक्षण क्षेत्रों (एमपीए) के विभिन्न हिस्सों का आकलन किया, ऐसी गतिविधियां जो लोगों को फायदा पहुंचाने के साथ ही समृद्ध जैव विविधता वाले क्षेत्रों पर इसका बहुत कम प्रभाव के बारे में बात करता है।

प्रोफेसर रिचर्डसन ने बताया कि उन्होंने हिंद महासागर में सबसे पहले, समुद्री संरक्षण क्षेत्रों (एमपीए) के अहम स्थानों की पहचान करने के लिए तीन क्षेत्र आधारित योजनाएं बनाई - जिसमें मछली पकड़ने, शिपिंग और खनन को अलग से शामिल किया गया।

वन अर्थ नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया की शोधकर्ताओं ने फिर अलग-अलग क्षेत्रों के लिए योजना बनाई जो सभी हितधारकों के लिए लागत को एक साथ कम करती है।

शोधकर्ता ने बताया कि इन योजनाओं को तैयार करने के बाद, तीन क्षेत्र आधारित समाधानों के साथ-साथ उनके योग की तुलना की गई।

रॉयल बेल्जियन इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरल साइंसेज के प्रमुख शोधकर्ता, लीया फोरचॉल्ट ने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों या क्रॉस-सेक्टोरल दृष्टिकोण ने प्रत्येक हितधारक के लिए बहुत कम अतिरिक्त लागत पर समान संरक्षण लक्ष्यों को पूरा किया।

फोरचॉल्ट ने उदाहरण देते हुए बताया की मछली पकड़ने के क्षेत्र को क्रॉस-सेक्टोरल योजना के तहत अपने संभावित राजस्व का 20 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है, लेकिन अगर सभी सेक्टर-विशिष्ट योजनाओं को एक साथ जोड़े बिना एक साथ लागू किया गया तो इसमें 54 प्रतिशत तक का नुकसान होगा।

यह शिपिंग और खनन क्षेत्रों के लिए तर्कसंगत था, शिपिंग क्षेत्र अब अपने संभावित राजस्व के 26 प्रतिशत के बजाय दो प्रतिशत का ही नुकसान झेल रहे हैं। खनन क्षेत्र को अब लगभग आठ प्रतिशत के बजाय एक प्रतिशत का नुकसान हो रहा है।

शोध के नतीजे यह भी दिखाते हैं कि हम समान संरक्षण उद्देश्यों को पूरा करते हुए समुद्री संरक्षण क्षेत्रों (एमपीए) के आकार को स्थानीय योजना के 25 प्रतिशत से घटाकर आठ प्रतिशत कर सकते हैं।

शोध में कहा गया है कि यह अभी भी अहम जैव विविधता सुविधाओं के लिए 30 प्रतिशत कवरेज हासिल करेगा, जिसमें समुद्री मेगाफौना के लिए प्रमुख जीवन-चक्र क्षेत्र, जैविक और पारिस्थितिक हित के क्षेत्र और गहरे समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र, जैसे सीमाउंट, वेंट और पठार शामिल हैं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि क्रॉस-सेक्टोरल दृष्टिकोण हाल ही में हस्ताक्षरित संयुक्त राष्ट्र उच्च समुद्र संधि के संरक्षण उद्देश्यों को लागू करने के लिए पहला कदम हो सकता है।

फोरचॉल्ट ने कहा, हमारे शोध का संग्रह ऑनलाइन उपलब्ध है और इसका उपयोग वैज्ञानिकों, संरक्षणवादियों और नेताओं द्वारा समान रूप से किया जा सकता है, साथ ही इसे पृथ्वी या किसी भी महासागर में लागू किया जा सकता है।

शोधकर्ता ने कहा, आखिरकार, लक्ष्य न केवल संरक्षणवादियों और कई उद्योगों के बीच संघर्ष को कम करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि समुद्री जीवन सभी तीन उद्योगों से पड़ने वाले बुरे प्रभावों से सुरक्षित रहे।

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