विलुप्त होने से बच सकती हैं लोगों द्वारा पाली जा रही 800 से अधिक शेलफिश प्रजातियां

शोधकर्ताओं ने सूची में 801 सीपों के बीच संभावित समानताएं और पैटर्न का पता लगाया है ताकि उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके
फोटो साभार: आईस्टॉक
फोटो साभार: आईस्टॉक
Published on

एक नए अध्ययन में, स्मिथसोनियन और बर्मिंघम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने क्लैम, सीप, मसल्स, स्कैलप्स और उनकी जैसी प्रजातियों की सूची में भारी बढ़ोतरी होने का खुलासा किया है। इन प्रजातियों को लोगों द्वारा पाले जाने के लिए जाना जाता है। 

उन्होंने इस बात का भी पता लगाया कि इनमें से कुछ समान लक्षणों वाले शेलफिश के समूह के विलुप्त होने के खतरे को कम कर दिया है, भविष्य में इन शेलफिशों का संरक्षण किया जा सकता हैं। अध्ययनकर्ताओं ने प्रबंधन और संरक्षण को लेकर पूर्वी अटलांटिक और उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व प्रशांत जैसे कुछ समुद्री इलाकों की पहचान की है।

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि मनुष्य बाइवैल्विया- क्लैम, सीप, मसल्स, स्कैलप्स और फाइलम मोलस्का की लगभग 801 प्रजातियों का उपयोग खाने में करते हैं। यह आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के डेटाबेस में सूचीबद्ध 81 में से 720 प्रजातियों को जोड़ता है। यह शेलफिश की भारी विविधता की ओर ध्यान आकर्षित करता है जिन्हें लोगों द्वारा पाला और इनका उपयोग किया जाता है।

राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के जीवाश्म बाइवैल्विया शोधकर्ता ने कहा कि, बाइवाल्व की ये प्रजातियां लोगों के लिए आकर्षक हैं, उन्होंने उनके विलुप्त होने के खतरे को भी कम कर दिया है। विशेष रूप से, ये प्रजातियां दुनिया भर में अलग-अलग तापमान के साथ विभिन्न प्रकार की जलवायु में रहती हैं।

जो उनकी अनुकूल होने की क्षमता के विलुप्त होने के प्राकृतिक कारणों के विरुद्ध ढलने को बढ़ावा देती है। लेकिन साथ ही, लोगों द्वारा इन प्रजातियों की मांग उन्हें और जिस पारिस्थितिकी तंत्र का वे हिस्सा हैं, उसे विनाश की ओर धकेल सकती है।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि, जिन प्रजातियों को हम खाते हैं वे विलुप्त होने के प्रति अधिक प्रतिरोधी हैं। लेकिन मनुष्य पलक झपकते ही पर्यावरण को बदल सकता है और हमें इन प्रजातियों का स्थायी रूप से प्रबंधन करना होगा ताकि वे हमारे बाद आने वाली पीढ़ियों के लिए उपलब्ध रहें।

यह कुछ हद तक विडंबनापूर्ण है कि कुछ विशेषताएं जो इन प्रजातियों को विलुप्त होने के प्रति कम संवेदनशील बनाती हैं, वे उन्हें बड़े होने और व्यापक भौगोलिक क्षेत्र में उथले पानी में पाए जाने वाले खाद्य स्रोत के रूप में कहीं अधिक आकर्षक बनाती हैं।

इसलिए, मानवजनित प्रभाव, शक्तिशाली प्रजातियों को असमान रूप से हटा सकती हैं। इन प्रजातियों की पहचान करके और उन्हें दुनिया भर में मान्यता दिलाकर, जिम्मेदार तरीके से मछली पकड़ने से एकत्र की गई प्रजातियों में विविधता आ सकती है और सीपों को समुद्र के जीवाश्म बनने से बचाया जा सकता है।

क्लैम, ऑयस्टर, स्कैलप्स और मसल्स जैसे बिवाल्व मोलस्क पानी को छानते हैं और लोग हजारों सालों से इनका उपयोग भोजन के रूप में कर रहे हैं। एस्टेरो बे, फ्लोरिडा जैसी जगहों पर, स्वदेशी कैलुसा जनजाति ने लगभग 18.6 अरब सीपों को पाला है और उनके खोल से एक पूरे द्वीप और 30 फुट ऊंचे टीले का निर्माण किया।

लेकिन लोगों द्वारा इनको पाले जाने का इतिहास भी अत्यधिक दोहन के उदाहरणों से भरा पड़ा है, मुख्य रूप से यूरोपीय उपनिवेशवादियों और मशीनीकृत व्यावसायिक मत्स्य पालन द्वारा, जिसके कारण ऑस्ट्रेलिया के सिडनी के पास चेसापीक खाड़ी, सैन फ्रांसिस्को खाड़ी और बॉटनी खाड़ी सहित स्थानों में सीप की आबादी नष्ट हो गई है।

100 से अधिक पूर्व अध्ययनों में दर्ज सभी प्रजातियों का मिलान करने के बाद, शोधकर्ताओं ने सूची में 801 सीपों के बीच संभावित समानताएं और पैटर्न की जांच शुरू कर दी। टीम ने जांच की, कि इनके कौन से लक्षण मनुष्यों द्वारा साल में दो बार उपयोग करने योग्य बनाते हैं और वे लक्षण उनके विलुप्त होने के खतरे से कैसे संबंधित हैं

अध्ययन में पाया गया कि मनुष्य बड़े शरीर वाले, उथले पानी में पाए जाने वाले, विभिन्न जगहों और अलग-अलग तापमान में जीवित रहने वाले सीपों को पालते हैं। वे अंतिम दो लक्षण जो अधिकतर साल में दो बार उपयोग की गई प्रजातियों को विलुप्त होने के दबावों और खतरों के प्रति कम संवेदनशील बनाते हैं, जिन्होंने अतीत में जीवाश्म रिकॉर्ड से प्रजातियों को मिटा दिया है।

शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि उनके आंकड़े भविष्य में संरक्षण और प्रबंधन निर्णयों में सुधार करेंगे। उनकी सूची में शामिल, विशेष रूप से विलुप्त होने की आशंका वाले क्षेत्रों और प्रजातियों की पहचान करती है। इसी तरह, सूची उन प्रजातियों की पहचान करने में मदद कर सकती है जिनके विलुप्त होने के वर्तमान खतरों का आकलन करने के लिए आगे अध्ययन की आवश्यकता है।

शोधकर्ता ने कहा, हमने इस अध्ययन से जो कुछ भी सीखा है उसका उपयोग हम ऐसे किसी भी जीवों की पहचान करने के लिए करना चाहते हैं जिसके बारे में हम पहले से नहीं जानते हैं। इस आबादी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, हमें इसकी पूरी जानकारी की जरूरत है कि लोग किस प्रजाति को पाल रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने बताया कि, यह शोध स्मिथसोनियन्स लाइफ ऑन ए सस्टेनेबल प्लैनेट पहल का समर्थन करता है, जो बदलते ग्रह के बारे में नए आंकड़े एकत्र करने, पर्यावरण संरक्षण के लिए समग्र और कई स्तरों पर संरक्षण करना है। दुनिया को इस बारे में शिक्षित करने का एक प्रमुख प्रयास है कि जलवायु परिवर्तन के स्थायी समाधान क्यों और कैसे फायदेमंद हो सकते हैं।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in