नई पहचानी गई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा अधिक: शोध

2011 से 2020 के बीच दर्ज प्रजातियों के लिए यह संकट बढ़कर 30 फीसदी हो गया है। विश्लेषण में आगे अनुमान लगाया गया है कि यह 2050 तक इसके 47.1 फीसदी तक बढ़ने के आसार हैं।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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एक नए अध्ययन के मुताबिक नई खोजी गई प्रजातियों के विलुप्त होने का अधिक खतरा है। शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि अज्ञात या हाल ही में खोजी गई प्रजातियों के, जानी पहचानी प्रजातियों की तुलना में विलुप्त होने का अधिक खतरा है। जो पहले से ही जैव विविधता पर बढ़ रहे संकट को और बढ़ा रही है। यह अध्ययन द ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया है।

अध्ययनकर्ता प्रोफेसर डेविड लिंडेनमेयर ने कहा विलुप्त होने की दर के बारे में हाल ही में बहुत सारी चर्चाएं हुई हैं, लेकिन वहां अलग-अलग तरह की ऐसी जैव विविधता है जिसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।

उन्होंने कहा एक बार जब आप नई प्रजातियों के विवरण और खोज के बारे में देखना शुरू करते हैं, तो यह पता चलता है कि वे विलुप्त होने के खतरे में सबसे अधिक हैं। इससे पता चलता है कि इनके बारे में विस्तृत जानकारी दर्ज होने से पहले ही ये गायब हो जाते है।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) रेड लिस्ट से संकलित आंकड़ों का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने पांच कशेरुक समूहों में 53,808 प्रजातियों का विश्लेषण किया। निष्कर्ष बताते हैं कि 1758 से 1767 के बीच दर्ज की गई प्रजातियों के लिए, संकटग्रस्त प्रजातियों का अनुपात 11.9 फीसदी है।

हालांकि 2011 से  2020 के बीच दर्ज प्रजातियों के लिए यह संकट बढ़कर 30 फीसदी हो गया है। विश्लेषण में आगे अनुमान लगाया गया है कि यह 2050 तक इसके 47.1 फीसदी तक बढ़ने के आसार हैं।

प्रोफेसर लिंडेनमेयर ने कहा नई दर्ज प्रजातियां कुछ कारणों से विलुप्त होने के सबसे अधिक खतरे में हैं, जिनमें से एक यह है कि उनकी अक्सर छोटी आबादी और सीमित सीमाएं होती हैं। उनके आवासों का नुकसान होता है और वे अलग-थलग पड़ जाते हैं और उनके लिए खतरा बढ़ जाता है।

चूंकि ये नई दर्ज प्रजातियां अक्सर दुर्लभ होती हैं, इनकी अवैध वन्यजीव व्यापार में एक बड़ी काला बाजारी भी होती है। जिससे इन प्रजातियों को शिकारियों से होने वाले सबसे अधिक खतरे होते हैं।

बढ़े हुए खतरों के बावजूद, कई मामलों में इन प्रजातियों को उनके लंबे समय से स्थापित समकक्षों की तुलना में काफी कम संरक्षण प्रयास हासिल होता है। प्रोफेसर लिंडेनमेयर ने कहा वर्तमान संरक्षण प्रयास मुख्य रूप से पुरानी, ​​अधिक प्रतिष्ठित प्रजातियों पर केंद्रित हैं जिन्हें बहुत समय पहले खोजा गया था।

वास्तव में सही हस्तक्षेपों के कारण, विशालकाय पांडा जैसी कुछ उच्च किस्म की प्रजातियां फलने-फूलने लगी हैं, हालांकि नई दर्ज प्रजातियों पर अक्सर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है।

अनदेखे प्रजातियों के संरक्षण के लिए, शोधकर्ताओं का सुझाव है कि उच्च जैव विविधता वाले इलाकों में गहन सर्वेक्षणों की आवश्यकता है।   

प्रोफेसर लिंडेनमेयर ने कहा यह विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और अन्य जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट से संबंधित है। जो कई खतरे वाली प्रजातियों का घर है, दोनों की खोज में कमी तथा इन्हें अनदेखा किया गया है।

दुनिया भर में, खासकर ऑस्ट्रेलिया में जैव विविधता को संरक्षित करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्रजातियों की बहुत बड़ी संख्या है जो और कहीं नहीं है।

इसका मतलब है कि इन प्रजातियों की खोज के लिए और अधिक इलाकों के सर्वेक्षण की आवश्यकता है। इसके बाद विलुप्त होने के खिलाफ उनकी लड़ाई में सहायता के लिए अतिरिक्त संरक्षण प्रयास किए जाने की ज़रूरत है। यह शोध कंजर्वेशन लेटर में प्रकाशित किया गया है।

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