राष्ट्रीय शहरी मधुमक्खी पालन दिवस : क्यों खतरे में हैं परागणकर्ता?

उत्तर प्रदेश 25.03 मीट्रिक टन शहद उत्पादन के साथ भारत में सबसे बड़ा शहद उत्पादक राज्य है।
तीन दिसंबर, 2019 को, डेट्रायट हाइव्स, एक स्वयं सेवी संगठन ने हर साल 19 जुलाई को राष्ट्रीय शहरी मधुमक्खी पालन दिवस के रूप में घोषित किया।
तीन दिसंबर, 2019 को, डेट्रायट हाइव्स, एक स्वयं सेवी संगठन ने हर साल 19 जुलाई को राष्ट्रीय शहरी मधुमक्खी पालन दिवस के रूप में घोषित किया। फोटो साभार: आईस्टॉक
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राष्ट्रीय शहरी मधुमक्खी पालन दिवस हर साल 19 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिन शहरी इलाकों में मधुमक्खी कालोनियों को रखने की प्रथा का जश्न मनाने के लिए निर्धारित किया जाता है। शहरी मधुमक्खी पालन के अन्य नाम शौकिया मधुमक्खी पालन और 'बैकयार्ड मधुमक्खी पालन' हैं। मधुमक्खी पालन का मतलब मधुमक्खियों को पालने और उनका रखरखाव करने से है। एक समय में, शहरी इलाकों में मधुमक्खियों को रखने पर प्रतिबंध था, लेकिन आज ऐसा नहीं है और मधुमक्खियों का आर्थिक और पर्यावरणीय विकास होता है।

मधुमक्खियां प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन ये परागणकर्ता कई जगहों पर खतरे में हैं। आज बदलती जलवायु, प्रदूषण और कृषि में अंधाधुंद कीटनाशकों के उपयोग से इनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। अधिकांश प्रकार के पशुओं के विपरीत, कुछ प्रकार की मधुमक्खियां शहरी परिवेश में आसानी से रखी जा सकती हैं। वे शहर के बगीचों या खेतों में परागण करती हैं और निवासियों के लिए स्थानीय रूप से शहद उपलब्ध कराती हैं।

तीन दिसंबर, 2019 को, डेट्रायट हाइव्स, एक स्वयं सेवी संगठन ने हर साल 19 जुलाई को राष्ट्रीय शहरी मधुमक्खी पालन दिवस के रूप में घोषित किया। यह दिन शहरी मधुमक्खी पालकों का समर्थन करने के बारे में जागरूकता बढ़ाने, शहरी मधुमक्खी पालन की भूमिका के बारे में लोगों को जानकारी देने और हमारे पर्यावरण में मधुमक्खियों के महत्व पर चर्चा करने के लिए बनाया गया था।

शहरी मधुमक्खी पालन की चुनौतियों में से एक इनका झुंड बनाना था। हालांकि यह नुकसानदायक नहीं है, लेकिन शहरी इलाको में मधुमक्खियों के झुंड की कॉलोनी का नजारा लोगों को डराने और उनकी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को बाधित करने के लिए पर्याप्त है। लोग जानते हैं कि मधुमक्खियों का डंक बहुत दर्दनाक हो सकता है और वे मधुमक्खियों के डंक मारने से हमेशा सावधान रहते हैं।

एक और चुनौती यह थी कि शहरी मधुमक्खी पालन की कम होती लोकप्रियता के कारण शहद की पैदावार कम हुई। फिर, शहरी क्षेत्रों में मधुमक्खियों को प्रभावित करने वाले कुछ रोगों के कारण इनका पालन करना एक चुनौती बनी हुई है।

आज, शहरी मधुमक्खी पालकों को दुनिया के कुछ प्रमुख शहरों में फैले हुए देखा जा सकता है, जिनमें न्यूयॉर्क शहर और टोक्यो की छतों, पेरिस की बालकनियों, लंदन के हरे-भरे स्थान शामिल हैं, जबकि भारत में शहरों के बजाय गांवों में मधुमक्खी पालन एक काम अधिक होता है।

स्वयं सेवी संगठन डेट्रायट हाइव्स द्वारा स्थापित, राष्ट्रीय शहरी मधुमक्खी पालन दिवस का उद्घाटन समारोह 2019 में हुआ था। इस कार्यक्रम की स्थापना जागरूकता और शिक्षा के दिन के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य शहरी मधुमक्खी पालकों और उनमें रुचि रखने वालों का समर्थन करना था।

भारत में राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड का गठन वर्ष 2000 में लघु कृषक कृषि-व्यवसाय संघ (एसएफएसी) द्वारा भारत में मधुमक्खी पालन को आगे बढ़ाने और उसमें सुधार लाने के उद्देश्य से किया गया था। जैसा कि भारत में शहद एक महत्वपूर्ण कृषि उत्पाद है और यह देश दुनिया में शहद के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। इंडियास्टैट के अग्रिम अनुमान के मुताबिक, उत्तर प्रदेश 25.03 मीट्रिक टन शहद उत्पादन के साथ भारत में सबसे बड़ा शहद उत्पादक राज्य है।

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