मध्य प्रदेश: वन मित्र पोर्टल में उलझे वन ग्राम, नहीं मिल पाया राजस्व ग्राम का दर्जा

आदिवासियों के फोन, इंटरनेट की सुविधा न होने के कारण ऑफलाइन सर्वे शुरू किया गया, लेकिन बाद में ऑनलाइन आवेदनों को ही अनिवार्य कर दिया गया
वन मित्र को राजस्व ग्राम का दर्जा दिए जाने को लेकर आदिवासियों के बीच ऑफलाइन सर्वे शुरू हो चुका है। फोटो: सनव्वर शफी
वन मित्र को राजस्व ग्राम का दर्जा दिए जाने को लेकर आदिवासियों के बीच ऑफलाइन सर्वे शुरू हो चुका है। फोटो: सनव्वर शफी
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“अपनी जमीन पर फसल लगाओ या जंगल से वनोपज लाओ, हमेशा कार्रवाई का डर लगा रहता है। न खाने को कुछ मिल रहा है और पीने को पीना। बिजली, सड़क तो दूर की बात है”। दनलू बैगा यह कहते-कहते निराश हो जाते है।

दनलू मध्य प्रदेश के डिडौंरी जिले की फिटारी ग्राम पंचायत के लमोठा वनग्राम में एक हेक्टेयर (2.4711 एकड़) वनभूमि पर परिवार के आठ सदस्यों के साथ रह रहे हैं, उनकी आजीविका का एकमात्र साधन खेती-किसानी हैं, लेकिन न तो उन्हें कृषि योजनाओं का लाभ मिल रहा और न ही जनकल्याणकारी योजनाओं का। यह समस्या दनलू बैगा तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि मध्य प्रदेश के लगभग 925 वनग्रामों में रह रहे हर आदिवासी की है।

दरअसल, आजादी के 75 साल बाद और वन अधिकार अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद भी मप्र के आदिवासी कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। 

भारत में सबसे ज्यादा वनग्रामों की संख्या 925 मप्र में हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने 22 अप्रैल 2022 को भोपाल में मप्र वन समितियों का सम्मेलन में आदिवासियों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए राज्य के 925 में से 827 वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में परिवर्तित करने की घोषणा की थी। इनमें से 793 वनग्रामों को राजस्व ग्राम बनाने की कार्रवाई चल रही हैं, इसकी कलेक्टरों द्वारा अधिसूचना भी जारी हो गई हैं, 3 तीन वनग्राम (मंडला और डिंडौरी के) में कार्रवाई शुरू होना बाकी हैं , शेष 31 वनग्राम पहले से राजस्व ग्राम में शामिल हो चुके या डूब क्षेत्र में हैं।

इनमें से डिडौंरी जिले में भी 82 वनग्रामों को राजस्व ग्राम बनाने का फैसला लिया, लेकिन करीब दो साल बाद भी जमीन पर कुछ बदलाव दिखाई नहीं दे रहा हैं। 

तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में प्रदेश में पेसा (पंचायत एक्सटेंशन ओवर शिड्यूल्ड एरियाज एक्ट, 1996) एक्ट व वनाधिकार कानून के नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अप्रैल 2023 में 12 सदस्यों की एक टास्क फोर्स का गठन किया था। इसमें आदिवासियों के लिए काम करने वाले समाजसेवी डाॅ. शरद लेले और मिलिंद थत्ते को बतौर सदस्य शामिल किया। 

शरद लेले कहते हैं कि करीब 10 माह पहले मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बैठक में वनग्राम की राजस्व ग्राम में परिर्वतन व वन मित्र की प्रक्रिया में त्रुटियों के बारे में कई मुद्दे सामने रखे (जैसे आदिवासी क्षेत्र में नेटवर्क की समस्याएं, आदिवासियों के पास मोबाइल, कम्प्यूटर, लैपटाॅप न होना आदि)। 

प्रशासन ने अप्रैल माह में डिंडौरी जिले के बैगा चक क्षेत्र के बजाग, समनापुर व करंजिया के 20 वनग्रामों में वन अधिकारों का सुचारू रूप से क्रियान्वयन करने की स्वीकृति दी और अशोका ट्रस्ट फाॅर रिसर्च इन इकोलाॅजी एंड द एनवायरमेंट (अट्री)  और नीवसीड संस्था के सहयोग से काम शुरू किया। 

इस दौरान सामने आया कि अधिकतर पट्टों में कई प्रकार की गड़बड़ियां (जैसे दावा किए एकड़ में पट्टा मिला डिसमिल, किसी में नाम,खेत का आकार, स्थान तो किसी में जमीन का कंपार्ट्मेंट (वन कक्ष) गलत हैं आदि) हैं। 

इन गांवों में प्रत्येक खेत को चिन्हित कर दोबारा जमीन की नपाई और नक्शे तैयार कर, नए सिरे से दावे तैयार किए गए। लेले कहते हैं कि दो गांव शीतलपानी और पोंडी ग्राम में आफलाइन नए-पुराने सभी तरह के 230 दावे दायर किए, इसमें 70 प्रतिशत दावे ऐसे थे, जिसमें संशोधन होना हैं।

अट्री संस्था के डिंडौरी जिले के काॅडिनेटर मोहित महाजन ने बताया कि शीतलपानी और पोंडी गांव में एक रजिस्टर में हर व्यक्ति की (खेत से खेत की नपाई), मोबाइल से जीपीएस व एएमसीएचओ सीएफआर ओपन सोर्स एप्लीकेशन से नक्शे तैयार किए, काबिज व्यक्ति की पहचान व मूल निवासी के लिए आधार कार्ड, राशन कार्ड-वोटर कार्ड से की गई। 2005 के बाद हुए अतिक्रमण छोड़ दिए। सभी दावे ग्रामसभा के अनुमोदन के बाद उपखंड स्तरीय समिति और फिर जिला समिति के पास पहुंचे।

जिला समिति ने शीतलपानी ग्राम नए-पुराने सब 134 दावों में 90 पारित किए थे, बाकि छोटी-छोटी गलतियां निकाल कर लौटा दिए। पारित 90 दावों में से सिर्फ 51 दावेदारों को टाइटल मिला। बाकी मंजूर दावों को इसलिए रोका है क्योंकि वे सटीक हैं और जिला प्रशासन को ये डर है कि भोपाल का आदेश है कि नए दावे अब ऑनलाइन (वनमित्र पोर्टल) ही होना चाहिए।

पोंडी गांव के रामप्रसाद बैगा कहते हैं कि गांव से 96 दावे दायर किए गए, जिनमें से शुरू में उपखंड स्तरीय समिति ने 80 दावों को सही माना और बाकी में वन विभाग ने कुछ परिवर्तन चाहा। सुधार किए दावे जिला स्तरीय समिति तक पहुंचे हैं, लेकिन उनपर अंतिम निर्णय लेने में हिचकिचा रहे है। 

लेले आगे कहते हैं कि मप्र जनजातीय कार्य विभाग के 7 जुलाई 2023 के आदेश पर प्रदेश में फिर से वनमित्र पोर्टल खोला। इसके बाद से ही जिला कलेक्टर व जनजातीय कार्य विभाग के अधिकारी आफलाइन आवेदन लेने से इंकार कर रहे हैं और पूर्व के आवेदनों पर भी सुनवाई नहीं कर रहे हैं, जबकि पोर्टल के माध्यम से आवेदन करने में आने वाली खामियों से संबंधित पत्र मप्र ट्राइबल डिर्पाटमेंट को 23 सितंबर 2023 को लिखा कि वनमित्र से नया नक्शा और नपाई करना आसान नहीं हैं, वे हर खेत का अलग-अलग माप लेने को बोलता हैं, सेटेलाइट मैप भी सही तरह के काम नहीं करता, नक्शे में खाली जमीन पर पहले से कब्जा दिखाता आदि त्रुटियां शामिल हैं। 

डिडौंरी जिले कह गौरा-कन्हारी पंचायत के युवा सरपंच सुक्कल सिंह धुर्वे कहते हैं कि मेरी पंचायत क्षेत्र के वन ग्रामों और अन्य दो पंचायतें (अजगर और फिटारी के वनग्रामों) में भी इस प्रक्रिया को लेकर पहल की जा रही है। हमने अधिकारियों को भी सूचित कर दिया है, लेकिन अभी भी आफलाइन प्रक्रिया को लेकर स्पष्टता नहीं हैं। 

जनजातीय कार्य विभाग के जबलपुर संभाग के संभागीय उपायुक्त जेपी सर्वटे और डिंडौरी जिले के सहायक आयुक्त संतोष शुक्ला दोनों ने ही स्वीकार किया हैं कि वे आफलाइन आवेदन न लेकर वनमित्र से आनलाइन आवेदन ले रहे हैं, जबकि डिंडौरी, कलेक्टर विकास मिश्रा कहते हैं कि हमने जनजातीय कार्य विभाग, प्रमुख सचिव को 25 अक्टूबर 2023 को पत्र लिखा हैं कि खंड स्तरीय वनाधिकार समिति की अनुशंसा के आधार पर जिले से 870 दावे आफलाइन मिले हैं, इन दावों को वन अधिकार पत्र वितरण की स्वीकृति दी जाए। जवाब आने के बाद ही आगे की कार्रवाई होगी।  

जनजातीय कार्य विभाग के अपर आयुक्त सतेंद्र सिंह कहते हैं कि पोर्टल ओपन होने के बाद से अभी तक करीब 8144 नवीन दावे मिले हैं, जिस पर सुनवाई जारी हैं। फिलहाल हम आफलाइन प्रक्रिया से आवेदन लेने से बच रहे हैं। इससे संबंधित बैठकें हो चुकी हैं और आफलाइन आवेदन इस तरह से स्वीकार किए जाएंगे कि उनका रिकाॅर्ड भी आनलाइन दिखे, इसपर काम किया जा रहा है, इसके बाद हम आफलाइन आवेदन स्वीकारना शुरू कर देंगे।

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