स्थानीय प्रजातियों की विविधता को 53 फीसदी तक कम कर सकती हैं आक्रामक चींटियां

दुनिया भर में चीटियों की 17,000 से ज्यादा प्रजातियां का पता चल चुका है। इनकी कुल आबादी करीब 20,000 लाख करोड़ है
बड़े कीड़े को अपना शिकार बनाती चींटियां; फोटो: आईस्टॉक
बड़े कीड़े को अपना शिकार बनाती चींटियां; फोटो: आईस्टॉक
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हैरानी की बात है कि चीटियों जैसा शांत जीव भी स्थानीय प्रजातियों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ कार्डिफ द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि जब आक्रामक चींटियां नए क्षेत्रों में प्रवेश करती हैं, तो वे न केवल स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी स्थानीय प्रजातियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

रिसर्च से पता चला कि ये आक्रामक प्रवासी चींटियां, संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करके और उनके शिकार के जरिए स्थानीय प्रजातियां की संख्या को 53 फीसदी तक कम कर सकती हैं। इस अध्ययन के नतीजे रॉयल एंटोमोलॉजिकल सोसाइटी के जर्नल इन्सेक्ट कंजर्वेशन एंड डाइवर्सिटी में प्रकाशित हुए हैं।

आप सभी ने अपने रोजमर्रा के जीवन में कभी न कभी चींटियों को जरूर देखा होगा। एक छोटा जीव जो अंटार्कटिका को छोड़ दें तो करीब-करीब दुनिया के हर हिस्से में पाया जाता है। जिन्हें दुनिया में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। भारत में अक्सर इन्हें हम काली और लाल चींटियों के नाम से जानते हैं।

भले ही यह जीव देखने में बेहद छोटा होता है लेकिन यह पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता को बनाए रखने में बेहद अहम भूमिका निभाता है। हालांकि इसके बावजूद चीटियों की कुछ प्रजातियां इंसानों के जरिए पूरी दुनिया में फैल गई, जो बड़ी समस्याएं पैदा कर सकती हैं। यहां तक की यह कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने की वजह भी बन सकती हैं। 

हाल ही में इनकी आबादी को लेकर किए एक अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में करीब 20000000000000000 (20X1015) यानी 20,000 लाख करोड़ चींटियां हैं। दुनिया भर में इनकी 17,000 से ज्यादा प्रजातियां का पता चल चुका है।

रिसर्च से पता चला है कि अक्सर यह आक्रामक चींटियां वैश्विक व्यापार के जरिए इंसानों के द्वारा नए स्थानों तक पहुंची हैं। अपने गजब के अनुकूलन के जरिए यह दुनिया भर के अलग-अलग वातावरण में रहने के काबिल बनी हैं।

पता चला है कि नए आमतौर पर यह चींटियां शिकार और संसाधनों के लिए उनसे मुकाबला करके स्थानीय प्रजातियों को नुकसान पहुंचाती हैं। देखा जाए तो इन आक्रामक चींटियों में कुछ विशेष गुण होते हैं जो उन्हें स्थानीय चीटियां पर हावी होने में मदद करते हैं।

उदाहरण के लिए यह चींटियां कई तरह के आहार पर जीवित रह सकती हैं। साथ ही यह कई रानियों के साथ घोसलों के बड़े समूह बना सकते हैं, जिन्हें सुपरकॉलोनी कहा जाता है। ये सुपरकॉलोनियां बड़े क्षेत्रों में फैल सकती हैं।

कहीं न कहीं हम इंसान भी हैं इनके फैलने के लिए जिम्मेवार

इस बारे में अध्ययन और कार्डिफ यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर मैक्सिमिलियन टेरसेल का कहना है कि, “चींटियां बेहद सामाजिक जीव हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र को सुचारू बनाए रखने में मदद करती हैं। यह अंटार्कटिका को छोड़कर पूरी दुनिया में पाई जाती हैं। जो शिकार करने के साथ विभिन्न तरह के पौधों और जानवरों के साथ मिलकर और उनके मेजबान के रूप में कार्य करती हैं।“

उनके अनुसार लेकिन, जब लोग इन चींटियों को नई जगहों पर ले जाते हैं, तो इनसे अनगिनत समस्याऐं पैदा हो सकती हैं। अलग तरह की चींटियां जो स्वाभाविक रूप से वहां की नहीं हैं, स्थानीय पर्यावरण और वहां के जीवों की विविधता के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं। आमतौर पर आक्रामक चींटियां स्थानीय प्रजातियों का शिकार करके और उनसे प्रतिस्पर्धा करके उनके लिए चीजें मुश्किल बना देती हैं। जो उनकी विविधता को कम कर सकता है।

हालांकि शोध के अनुसार आक्रामक चींटियों का प्रभाव अलग-अलग स्थानों पर और विभिन्न प्रकार के जीवों के बीच भिन्न-भिन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए, पक्षी आक्रामक चींटियों से बहुत ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं, वहीं स्तनधारी या कीड़ों के कुछ समूह उतने ज्यादा प्रभावित नहीं होते। हालांकि, अब तक इस पर विस्तार से अध्ययन नहीं किया गया है। लेकिन दुनिया के कई क्षेत्रों में जब मूल जैव विविधता को संरक्षित करने के प्रयासों को देखा जाए तो चींटियों का आक्रमण वास्तव में एक बड़ी चुनौती है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 46 दूसरे अध्ययनों का विश्लेषण किया है, जिसमें शोधकर्ताओं ने इस बात का अध्ययन किया है कि दूसरे जानवरों ने उन जगहों पर आक्रामक चींटियों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया की है, जहां मनुष्यों की तरह कोई अन्य व्यवधान नहीं थे। उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया है कि चींटियों के आक्रमण के बाद वहां कितने जीव थे और कितनी अलग-अलग प्रजातियां मौजूद थीं।

रिसर्च से पता चला है कि चींटियां के आक्रमण के बाद क्षेत्र में जीवों की कुल संख्या करीब 42 फीसदी तक कम हो सकती है, जबकि प्रजातियों की विविधता में भी औसतन 53 फीसदी तक की कमी आ जाती है।

इस बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि जीवों की विविधता में आई इस बड़ी कमी से पता चलता है कि आक्रामक चींटियां पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती हैं। अध्ययन के बारे में डॉक्टर टेरसेल का कहना है कि ये नतीजे आक्रामक चींटियों को फैलने से रोकने के लिए जल्द से जल्द बेहतर योजना तैयार करने और अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।

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