

23 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस मनाया जाता है, जिसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2024 में की।
हिम तेंदुआ 12 देशों के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है और इसकी वैश्विक संख्या केवल 2,710–3,380 के बीच है।
मुख्य खतरे हैं: आवास की हानि, शिकार की कमी, अवैध शिकार, जलवायु परिवर्तन और मानवीय दखल।
भारत में कुल 718 हिम तेंदुए, जिनमें से सबसे अधिक लद्दाख (477) में पाए जाते हैं।
संरक्षण से एसडीजी लक्ष्यों जैसे स्वच्छ जल (एसडीजी 6), जलवायु कार्रवाई (एसडीजी 13), और भूमि जीवन (एसडीजी15) को बढ़ावा मिलता है।
प्रकृति की गोद में बसे पर्वतीय क्षेत्रों के एक रहस्यमयी और दुर्लभ प्राणी का नाम है हिम तेंदुआ। इसे स्थानीय लोग प्यार से "पहाड़ों का भूत" भी कहते हैं, क्योंकि यह अत्यंत चतुर और अदृश्य रूप से जीने वाला प्राणी है। इसे देख पाना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन इसका अस्तित्व पहाड़ों के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद जरूरी है।
इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए, सन् 2024 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 अक्टूबर को 'अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की। इस दिन का उद्देश्य हिम तेंदुए के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।
हिम तेंदुआ
हिम तेंदुआ (पैंथेरा यून्सिया) एशिया के ऊंचे पर्वतीय इलाकों में पाया जाने वाला एक बड़ी बिल्ली प्रजाति का जानवर है। यह बेहद सुंदर, शांत और अकेले रहने वाला प्राणी है।
इसका मुख्य निवास स्थान 12 देशों में फैला हुआ है जिनमें अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल हैं। यह प्राणी आमतौर पर भोर और सांझ के समय सक्रिय होता है और इंसानों पर हमला करने के लिए नहीं जाना जाता।
हिम तेंदुए की स्थिति और खतरे
हिम तेंदुआ इस समय संकट में है। इसके संरक्षण की स्थिति को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने गंभीर माना है:
लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (सीआईटीईएस) की सूची में यह 1975 से परिशिष्ट-I में शामिल है।
प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण (सीएमएस) संधि में भी यह 1986 से परिशिष्ट-I में है।
प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) ने इसे 2017 में "संवेदनशील" श्रेणी में रखा है।
वर्तमान में इसकी अनुमानित वयस्क आबादी मात्र 2,710 से 3,380 के बीच है।
मुख्य खतरे:
आवास का नष्ट होना और खंडित होना
प्राकृतिक शिकार की संख्या में कमी
अवैध शिकार और तस्करी
जलवायु परिवर्तन
मानवीय गतिविधियों का दखल
भारत में हिम तेंदुए की स्थिति
भारत के कई उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्यों में हिम तेंदुए पाए जाते हैं। हाल ही में जारी स्नो लेपर्ड पॉपुलेशन असेसमेंट इन इंडिया (एसपीएआई) रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 718 हिम तेंदुए हैं। राज्यवार आंकड़ों की बात करें तो लद्दाख में इनकी संख्या 477 है, उत्तराखंड में 124, हिमाचल प्रदेश में 51, अरुणाचल प्रदेश में 36, सिक्किम में 21, जम्मू और कश्मीर में नौ है। इन राज्यों में हिम तेंदुए के संरक्षण हेतु कई प्रयास किए जा रहे हैं।
संरक्षण का महत्व
हिम तेंदुआ न केवल एक सुंदर और दुर्लभ प्राणी है, बल्कि यह पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र का प्रमुख हिस्सा भी है। जहां हिम तेंदुआ होता है, वहां जैव विविधता भी संतुलित रहती है। यह पारिस्थितिक श्रृंखला में शीर्ष शिकारी है, जो शिकार और पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।
इसके संरक्षण से हम तीन प्रमुख सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में भी योगदान देते हैं:
एसडीजी 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता
एसडीजी13: जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई
एसडीजी 15: स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण
पर्वत हमारे लिए जल, वनस्पति, और जीवनदायिनी नदियों का स्रोत हैं। जब हम हिम तेंदुए जैसे प्रमुख प्राणियों की रक्षा करते हैं, तो हम पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र की भी रक्षा करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यह भी कहा है कि जैव विविधता में हो रही गिरावट को रोकना आज की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है। इसके लिए सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों, वैज्ञानिकों और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग अत्यंत आवश्यक है।
अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस: क्यों मनाएं?
यह दिन हमें याद दिलाता है कि प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी क्या है। यह हिम तेंदुए जैसे विलुप्तप्राय प्राणियों के प्रति जन चेतना फैलाने का अवसर है।
यह संरक्षण में लगे लोगों के प्रयासों को सम्मान देने का दिन है। यह हमें प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व को समझने का मौका देता है।
हिम तेंदुआ केवल एक प्राणी नहीं, बल्कि पर्वतों की आत्मा है। इसकी रक्षा करना, हमारी आने वाली पीढ़ियों को एक संतुलित और समृद्ध पर्यावरण देना है। आइए, 23 अक्टूबर को सिर्फ एक दिवस के रूप में नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने और उसे बचाने के संकल्प के रूप में मनाएं।