भारतीय वैज्ञानिकों ने ओडिशा के कोरापुट में खोजी केंचुओं की दो नई प्रजातियां

इस खोज के साथ दुनिया में मेगास्कोलेक्स प्रजातियों की कुल संख्या अब बढ़कर 70 हो गई है, जिनमें से 34 भारत में पाई जाती हैं
किसानों के यह नन्हें दोस्त मिट्टी में मौजूद बायोडिग्रेडेबल पदार्थों जैसे पत्तियों, जीवों के अंशों को जैविक खाद में तब्दील कर देते हैं। इनकी वजह से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों में इजाफा होता है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
किसानों के यह नन्हें दोस्त मिट्टी में मौजूद बायोडिग्रेडेबल पदार्थों जैसे पत्तियों, जीवों के अंशों को जैविक खाद में तब्दील कर देते हैं। इनकी वजह से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों में इजाफा होता है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूओ) और केरल के महात्मा गांधी विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने भारत में केंचुओं की दो नई प्रजातियों की पहचान की है। केंचुओं की यह नई प्रजातियां ओडिशा के कोरापुट में खोजी गई हैं।

इस बारे में स्कूल ऑफ बायोडायवर्सिटी एंड कंजर्वेशन ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज के डीन शरत कुमार पालिता ने पीटीआई के हवाले से जानकारी दी है कि कोरापुट जिले के विभिन्न हिस्सों में केंचुओं की विविधता को लेकर किए एक अध्ययन के दौरान, ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय की छात्रा आयुस्मिता नाइक ने रानी डुडुमा और जेपोर घाट क्षेत्रों से बड़े पैमाने पर केंचुओं के नमूने एकत्र किए थे।

उनके मुताबिक अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं ने भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक आर पालीवाल और महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के सतत विकास केंद्र के केंचुआ विशेषज्ञ प्रशांत नारायणन और एपी थॉमस की सहायता से प्रयोगशाला में इन नमूनों की सावधानीपूर्वक जांच की गई।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं को केंचुओं की दो नयी प्रजातियों का पता चला है। इन प्रजातियों की पहचान की पहचान ‘मेगास्कोलेक्स जेयपोरघाटिएन्सिस’ और ‘मेगास्कोलेक्स क्वाड्रिपैपिलैटस’ के रूप में हुई है। इन प्रजातियों के बारे में ज्यादा जानकारी अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘जूटाक्सा’ में प्रकाशित हुई है। रिसर्च के मुताबिक इस खोज के साथ दुनिया में मेगास्कोलेक्स प्रजातियों की कुल संख्या अब बढ़कर 70 हो गई है, जिनमें से 34 भारत में पाई जाती हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक देश में ज्यादातर मेगास्कोलेक्स प्रजातियां पश्चिमी घाट के दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं। लेकिन अब इस नई खोज ने इन प्रजातियों की सीमा को उत्तर की ओर पूर्वी घाट की पहाड़ियों तक बढ़ा दिया है, जिनमें इनकी बहुत कम खोज हुई है।

रिसर्च के मुताबिक इनमें से ‘मेगास्कोलेक्स जेयपोरघाटिएन्सिस’ की लम्बाई 221 से 281 मिलीमीटर के बीच होती है। इनकों यह नाम कोरापुट की जेयपोर घाटी के नाम पर दिया गया है। यह पहाड़ी इलाकों के पर्णपाती और नम-पर्णपाती दोनों तरह के वनक्षेत्रों में पाए जाते हैं।

वहीं ‘मेगास्कोलेक्स क्वाड्रिपैपिलैटस’ की खोज कोरापुट के शुष्क पर्णपाती जंगलों में की गई है। यह आकार में दूसरी प्रजाति से कुछ अधिक लम्बे होते हैं। इनकी लम्बाई 273 से 308 मिलीमीटर के बीच होती है। साथ ही इनमें 188 से 190 खंड होते हैं।

बता दें कि मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में केंचुए बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। किसानों के यह नन्हें दोस्त मिट्टी में मौजूद बायोडिग्रेडेबल पदार्थों जैसे पत्तियों, जीवों के अंशों को जैविक खाद में तब्दील कर देते हैं। इनकी वजह से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों में इजाफा होता है है, और उसकी उर्वरता बढ़ जाती है।

भारत में नित नई प्रजातियों का पाया जाना इस बात का सबूत है कि आज भी हम मौजूदा जैवविविधता के बारे में कितना कम जानते हैं। साथ ही यह खोज इस बात के महत्व को भी उजागर करती है कि जैवविविधता को बचाए रखने के लिए इनके संरक्षण पर ध्यान देना कितना जरूरी है।

गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर जैवविविधता पर मंडराते संकट से निपटने के लिए 2010 में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में, करीब 200 देशों ने 2020 तक अपने स्थलीय क्षेत्रों के कम से कम 17 फीसदी हिस्से को बचाने का संकल्प लिया था,  इसे आईची लक्ष्य 11 के रूप में जाना जाता है। वहीं ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क 2030 में निर्धारित लक्ष्यों के तहत 2030 तक कम से कम 30 फीसदी जमीन को संरक्षित करने की बात कही गई है।

लेकिन सच यही है कि भारत इन लक्ष्यों से काफी दूर है। इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आया है कि देश का महज छह फीसदी हिस्से को संरक्षित क्षेत्रों के रूप में घोषित किया गया है।

वहीं दूसरी तरफ यदि सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो देश में संरक्षित क्षेत्र 1,73,306.83 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं, जोकि देश के कुल भूभाग का महज 5.27 फीसदी हिस्सा है। भारत इन लक्ष्यों को हासिल करना तो दूर उसके आसपास भी नहीं है।

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