भारतीय वैज्ञानिकों ने लद्दाख हिमालय में खोजे 3.5 करोड़ साल पुराने दुर्लभ सांप के जीवाश्म

भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस दुर्लभ सांप 'मैडसोइइडे' के जीवाश्मों को खोजा है, उनके बारे में अनुमान है कि वो करीब 3.5 करोड़ साल पुराने हैं
भारतीय वैज्ञानिकों ने लद्दाख हिमालय में खोजे 3.5 करोड़ साल पुराने दुर्लभ सांप के जीवाश्म
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भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय के लद्दाख में दुर्लभ सांप 'मैडसोइइडे' के जीवाश्म खोज निकाले हैं, जिनके बारे में अनुमान है कि वो करीब 3.5 करोड़ साल पुराने हैं। यह जीवाश्म शीरे के निक्षेपों में मिले हैं। वैज्ञानिकों की इस खोज से इतना तो स्पष्ट हो गया है कि यह सांप पूर्वानुमानों की तुलना में कहीं ज्यादा पहले से इस उपमहाद्वीप में मौजूद थे।

गौरतलब है कि मैडसोइइडे मध्यम आकार के विशाल सांपों का एक विलुप्त समूह है, जो सबसे पहले क्रिटेशस के अंतिम समय में सामने आए थे। यह सांप ज्यादातर गोंडवाना क्षेत्र में पाए जाते थे। हालांकि, उनका सेनोजोइक रिकॉर्ड काफी दुर्लभ है।

प्राप्त जीवाश्मों के रिकॉर्ड से पता चला है कि यह विशालकाय सांपों का समूह ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर अधिकांश गोंडवाना महाद्वीप में पेलियोसीन युग के मध्य में पूरी तरह गायब हो गया था। हालांकि उस दौरान भी यह सांप अपने अंतिम ज्ञात समूह वोनाम्बी के साथ प्लीस्टोसीन युग के अंत तक जीवित रहे थे। इसके अलावा दक्षिण अमेरिका , अफ्रीका , भारत , ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी यूरोप में भी इस सांप के जीवाश्म रिकॉर्ड मिले हैं।

इनके विलुप्त होने में जलवायु में आए बदलावों का नहीं था कोई हाथ

इससे जुड़ा शोध वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रोपड़ और कोमेनियस यूनिवर्सिटी स्लोवाकिया के शोधकर्ताओं द्वारा मिलकर किया गया है। जोकि जर्नल ऑफ वर्टेब्रेट पेलियोन्टोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह पहला मौका है जब भारत में इस दुर्लभ सांप 'मैडसोइइडे' के जीवाश्म खोजे गए है जोकि लगभग 3.37 से 2.38 करोड़ वर्ष पूर्व पहले ओलिगोसीन युग में यहां पाए जाते थे। 

लद्दाख में ओलिगोसीन से मैडसोइडे युग के बीच इनकी मौजूदगी इस बात की पुष्टि करती है कि यह सांप कम से कम पैलियोजीन युग के अंत तक यहां व्यापक रूप से मौजूद थे। यह भूगर्भीय काल आज से करीब 6.6 करोड़ वर्ष पूर्व क्रिटेशस के अंत से 4.3 करोड़ वर्ष के बीच था।

शोध से पता चलता है कि इस समूह के सदस्य इस उपमहाद्वीप में पूर्वानुमानों की तुलना में कहीं अधिक समय तक सफल से रहे थे। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि इन सांपों ने इस दौरान सफलता पूर्वक जलवायु में आए बदलावों का सामना किया था और वो इसके समूह के विलुप्त होने का कारण नहीं थे।

गौरतलब है कि वैज्ञानिकों को जीवाश्मों के जो नमूने मिले हैं वो डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के एक स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून में संभाल कर रखे गए हैं।

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