भाषा, संगीत और कला अक्सर विभिन्न मानव समूहों के बीच भिन्नता लिए होते हैं। ये हमें न सिर्फ खुद को बल्कि दूसरों को भी पहचानने में मदद करते हैं। हाल के वर्षों में जानवरों की व्यवहार संस्कृति पर शोध हुआ है। वैज्ञानिकों ने आधी सदी पहले, पहली बार चिम्पांजी को औजारों का उपयोग करते हुए देखा था। एक असमान व्यवहार अलग-अलग आबादी में भिन्न होता है। शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि चिम्पांजी ने औजारों का उपयोग सामाजिक रूप से सीखा था और इसलिए यह एक सांस्कृतिक व्यवहार था।
यह सब इस तथ्य का पता लगाने की शुरुआत थी कि अन्य प्रजातियों में किन व्यवहारों को सांस्कृतिक माना जा सकता है। किलर व्हेल पॉड्स और डॉल्फिन अलग-अलग बोलियां बोलती हैं और अपने औजारों का अलग-अलग तरीके से उपयोग करती हैं। वैज्ञानिकों ने ज्यादातर प्राइमेट्स (एक किस्म का चिम्पांजी) पर ध्यान केंद्रित किया है। मध्य और दक्षिण अमेरिका के कैपुचीन बंदर 13 प्रकार के सामाजिक रीति-रिवाजों को िनभाते हैं, जबकि वनमानुष (ऑरंगुटन) की विभिन्न आबादी अपनी बोली, उपकरण, रहने की जगह या अन्य वस्तुओं के उपयोग में भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। लेकिन चिम्पांजी की तुलना में किसी भी अन्य प्रजाति के सांस्कृतिक विकास और महत्व पर अधिक चर्चा नहीं की गई है।
चिम्पांजी संस्कृति के उदाहरण सामाजिक रीति-रिवाजों से लेकर कई अन्य तौर-तरीके में परिलक्षित होते हैं। जैसे वे किस तरह से अपने हाथों को पकड़ते हैं, कैसे मर्द चिम्पांजी अपनी यौनिकता का प्रदर्शन करते हैं, बादाम तोड़ने के लिए वे किस तरह के औजारों का इस्तेमाल करते हैं। एक प्रारंभिक अध्ययन में तर्क दिया गया है कि 39 विभिन्न व्यवहार हैं, जो सांस्कृतिक भिन्नता बताते हैं। इससे इस बात पर बहस छिड़ गई कि जानवरों में संस्कृति है या नहीं और हम इसका पता कैसे लगा सकते हैं।
मनुष्यों की तरह, चिम्पांजी में सांस्कृतिक व्यवहार व्यक्तियों द्वारा सामुदायिकता प्रदर्शित करने के समान ही है। यदि आइवरी कोस्ट के ताई जंगल में एक युवा चिम्पांजी अपने साथी को खेलने का संकेत देना चाहता है, तो वह एक ग्राउंड नेस्ट (जमीन पर घोंसला) बनाकर उसमें बैठ जाता है। अन्य चिम्पांजी समूहों में ग्राउंड नेस्ट का इस्तेमाल मुख्यत: आराम करने के लिए किया जाता है।
मनुष्यों के साथ रहना
चिम्पांजी को अब अपने निवास स्थान में जीवित रहने के लिए चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इस पर मनुष्यों द्वारा तेजी से हमला किया गया है। जैसे-जैसे उनकी आबादी घटती जा रही है, वैसे-वैसे उनका व्यवहार भी बदलता जा रहा है। यानी, इंसान ही चिम्पांजी के सांस्कृतिक पतन का कारण बन रहे हैं।
हम दोनों (अलेक्जेंडर और फियोना) ने एक नया अध्ययन किया था। हमने पूरे अफ्रीका में 144 चिम्पांजी समुदायों के आंकड़े को एकीकृत किया और यह पाया कि जिन क्षेत्रों को इंसान ने ज्यादा प्रभावित किया था, वहां चिम्पांजी ने कम किस्म के व्यवहार प्रदर्शित किए। ये परिणाम जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए थे। इसके पीछे का मूल कारण अज्ञात है। सबसे आम स्पष्टीकरण यह है कि मानव हस्तक्षेप में वृद्धि का मतलब है कि कुल मिलाकर चिम्पांजी की संख्या कम हुई है। यहां तक कि उन क्षेत्रों में जो चिम्पांजी रह जाते हैं, उन्हें अपने भोजन और निवास के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। उन्हें ऐसी जगहों पर काफी समस्या होती है, जहां शिकार स्थल होते हैं या लॉगिंग ऑपरेशन का खतरा होता है। उनके जल स्रोत खनन से प्रदूषित हो जाते हैं और वे शिकार बन जाने का जोखिम उठाते हैं। यह सब चिम्पांजी को छोटे समूहों में आने के लिए मजबूर करता है। यह सांस्कृतिक व्यवहारों के प्रसार में कमी लाती है, क्योंकि छोटे समूहों के कारण एक-दूसरे से सामाजिक रूप से सीखने की संभावना कम हो जाती है।
यह भी देखा गया है कि चिम्पांजी मानव फसल खाने जैसे नए तरीके अपना रहे हैं। इसे मानव हस्तक्षेप के अनुकूल होने के तौर पर देखा गया। लेकिन इन दुर्लभ अनुकूलन के बावजूद, समग्र मानव गतिविधियां चिम्पांजी की व्यवहार विविधता को मिटा रही हैं।
चिम्पांजी एकल संस्कृति
यदि सेनेगल से तंजानिया तक किसी प्रजाति का धीरे-धीरे एकल सांस्कृतिक इकाई में विलय हो रहा हो तो इसके क्या मायने हैं? आखिरकार, एक जैसी सांस्कृतिक प्रजातियां स्वाभाविक रूप से समस्याग्रस्त नहीं होती हैं। उदाहरण के लिए, सांस्कृतिक विविधता और प्रजातियों के वितरण के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है। मक्खियां, चूहे और मगरमच्छ, सभी एक विशाल क्षेत्र में फैले हुए हैं और अभी तक सांस्कृतिक रूप से वर्णित नहीं किए गए हैं। चिम्पांजी की व्यवहारिक विविधता कम होने से इस प्रजाति के अस्तित्व पर खतरा नहीं है। विविधता का कम होना कोई अन्य मुद्दा हो सकता है। कम से कम यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रजातियां खत्म होने के कगार पर हैं। उदाहरण के लिए हम अभी तक नहीं जानते कि ये व्यवहार कितने अनुकूल हैं।
व्यवहार की विविधता का एक नुकसान ये बता सकता है कि जानवर भोजन की उपलब्धता में बदलाव और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने जैसे दबावों का जवाब कैसे देते हैं। जोखिम यह है कि हम मनुष्य अपने निकट रहने वाले रिश्तेदारों की सांस्कृतिक विविधता को अपरिवर्तनीय रूप से खतरे में डाल रहे हैं। जब वैज्ञानिक जंगली चिम्पांजी के एक नए समूह की खोज करते हैं, तो वे अक्सर अनोखे व्यवहार का दिखावा करते हैं, जो पहले कभी नहीं देखे गए हों और यह जानना कठिन है कि कब तक ये अनोखे व्यवहार बने रहेंगे। अगर हालात यही बने रहे तो हम अपनी प्रजातियों के बीच विकासवाद का अध्ययन करने का अवसर हमेशा के लिए खो सकते हैं। सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण को प्राथमिकता बनाना, जो कई अन्य प्रजातियों तक फैला हुआ है, हमारी असाधारण विरासत के अस्तित्व को बचाने में मदद करेगा।
(अलेक्जेंडर पिल लिवरपूल जॉन मूर्स विश्वविद्यालय में पशु व्यवहार के व्याख्याता हैं, फियोना स्टीवर्ट लिवरपूल जॉन मूर्स विश्वविद्यालय में प्राइमाटोलॉजी में विजिटिंग व्याख्याता हैं और लिडिया लूंज, प्राइमेट मॉडल फोर बेहेविरल इवॉल्यूशन लैब, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में रिसर्च फेलो हैं। यह लेख द कन्वरसेशन से विशेष समझौते के तहत प्रकाशित)