कई देशों में वन्यजीवों के पुनर्वास का कार्य किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप हर साल लाखों जानवरों को बचाया जाता है, उनकी देखभाल की जाती है और बाद में उन्हें छोड़ दिया जाता है। वन्यजीवों को आमतौर पर मोटर वाहनों, घरेलू जानवरों के हमले, आपस में टकराव के कारण पुनर्वास की आवश्यकता होती है।
जबकि पर्यावरणीय आपदाओं जैसे तेल रिसाव या जंगल की आग आदि के कारण भी जानवर घायल या विस्थापित हो जाते हैं। इन जानवरों को भी बचाया और उनका पुनर्वास किया जाता है। पशु कल्याण को बढ़ावा देने और वन्यजीवों के अस्तित्व को बेहतर ढंग से समझने के लिए पुनर्वास को मजबूती से लागू करने की आवश्यकता है।
अब अध्ययनकर्ताओं ने इस को लेकर एक विश्लेषण किया है। विश्लेषण में पाया गया है कि सड़क दुर्घटना जैसी मानवीय गतिविधियों सहित पांच कारण, घायल या विस्थापित वन्यजीवों के अस्तित्व को प्रभावित करते हैं।
मानव गतिविधि कई कारणों में से एक है जो घायल या विस्थापित वन्यजीवों की जीवित रहने की दर को कम करती है। अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि यह वैश्विक वन्यजीव पुनर्वास पर पहला व्यापक अध्ययन है।
सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि मोटर वाहनों से टकराने और घरेलू जानवरों के हमलों जैसी घटनाएं वन्यजीवों की मृत्यु और चोट के लगभग आधे कारणों के लिए जिम्मेदार हैं।
उन्होंने यह भी पाया कि स्तनधारियों और पक्षियों के पुनर्वास के सभी चरणों में समान रूप से जीवित रहने की संभावना है, लेकिन जीवित रहने की दर इलाकों के आधार पर अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में औसतन, केवल 55 फीसदी स्तनधारी और पक्षी बहुत छोटी अवधि में, रिहाई के बाद जीवित रहे। जबकि कोआला के लिए, एक साल की जीवित रहने की दर लगभग 50 फीसदी थी।
112 प्रकाशित अध्ययनों के आंकड़ों के आधार पर किए गए शोध और अस्तित्व के परिणामों से जुड़े निम्नलिखित पांच कारणों की पहचान की गई है:
अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि परिणाम वन्यजीवों के अस्तित्व के लिए मानवीय खतरों को कम करने की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
सिडनी स्कूल ऑफ वेटरनरी साइंस के प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ होली कोप ने कहा प्राकृतिक आपदाएं और चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं और शहरीकरण बढ़ रहा है, इसलिए अधिक से अधिक जानवरों को बचाव और पुनर्वास की आवश्यकता होगी।
वे कहते हैं कि वन्यजीव देखभाल करने वालों और शोधकर्ताओं को पशु देखभाल प्रोटोकॉल में सुधार के लिए मिलकर काम करना जारी रखना चाहिए।
डॉ. कोप ने कहा वन्यजीव कर्मियों को शोध के आंकड़ों के बारे में पता होना चाहिए ताकि वे जानवरों की देखभाल में सुधार कर सकें। इसके विपरीत, अगर वे सटीक रिकॉर्ड रखते हैं, तो इससे शोधकर्ताओं को आगे के अध्ययन में मदद मिल सकती है।
उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में पांच साल के अंतराल में हुए दो तेल रिसावों से एकत्र किए गए आंकड़ों ने पुनर्वास के दौरान पेंगुइन की मृत्यु दर में 61 फीसदी से 5 फीसदी तक की कमी देखी गई। यह विश्लेषण देखभाल में सुधार करने के परिणामों के मूल्यांकन के महत्व पर प्रकाश डालता है। यह अध्ययन पीएलओएस वन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।