जैव-विविधता पर जिनेवा सम्मेलन: आकांक्षापूर्ण लक्ष्यों की जरूरत क्योंकि पहले ही हो चुका काफी नुकसान

जानवरों और पौधों की दस लाख प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं और इनमें से हजारों तो कुछ दशकों के भीतर ही विलुप्त हो जाएंगी
जैव-विविधता पर जिनेवा सम्मेलन: आकांक्षापूर्ण लक्ष्यों की जरूरत क्योंकि पहले ही हो चुका काफी नुकसान
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जैव-विविधता पर जिनेवा में चल रहे सम्मेलन में 190 देशों के प्रतिनिधि, इसे होने वाले नुकसान को रोकने के वैश्विक उपायों को अंतिम रूप दे रहे हैं। सम्मेलन की बैठकों में जिस शब्द की अनुगूंज सबसे ज्यादा सुनाई दे रही है, वह है- ‘ विलुप्त होने वाली प्रजातियां’। 

जैव-विविधता को होने वाले नुकसान के लिए, आधिकारिक तौर पर ‘विलुप्त या नष्ट होने’ का इस्तेमाल किया जाता है। 14 मार्च से शुरू होकर 29 मार्च तक चलने वाले इस दो सप्ताह के सम्मेलन में जैव- विविधता को नष्ट होने से बचाने के लिए उपायों की अपरिहार्यता इसलिए जरूरी है क्योंकि इसे जो नुकसान हुआ है, वह धरती के इतिहास में बिल्कुल अप्रत्याशित था। गौरतलब है कि सात सप्ताह के बाद ही जैविक विविधता पर चीन के कुन्मिंग में सम्मेलन होना है, जिसे कॉप-15 कहा जा रहा है।

कोरोना महामारी के चलते जैव-विविधता के नुकसान को रोकने के लिए महत्वपूर्ण वैश्विक रूपरेखा तैयार करने में पहले ही दो साल की देरी हो चुकी है। 2019 में, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर-सरकारी साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म (आईपीबीईएस) ने ‘जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर पहली वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट’ जारी की थी। इस रिपोर्ट के आकलन में कहा गया है कि जानवरों और पौधों की दस लाख प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं और इनमें से हजारों तो कुछ दशकों के भीतर ही विलुप्त हो जाएंगी।

मानोआ में हवाई विश्वविद्यालय में पैसिफिक बायोसाइंसेज रिसर्च सेंटर के  प्रोफेसर रॉबर्ट कोवी ने अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर जनवरी 2022 में अकशेरुकी जीवों की स्थिति का व्यापक मूल्यांकन किया, जो पृथ्वी पर पाए जाने वाले जानवरों की प्रजातियों का 95 फीसद हिस्सा हैं। उन्होंने कहा, ‘पृथ्वी पर ज्ञात 20 लाख प्रजातियों में से साढ़े सात से तेरह फीसद यानी डेढ़ लाख से लेकर 2,60,000 प्रजातियां पहले ही गायब  हो चुकी हैं। मतलब कि यह आंकड़ा चौंकाने वाला है।’

सम्मेलन की कार्यकारी सचिव एलिजाबेथ मारुमा मरेमा ने सम्मेलन की बैठक का एजेंडा तय करते हुए कहा, ‘ हमारा बस एक लक्ष्य है - ‘जैव विविधता के होने वाले नुकसान की दिश्शा को मोड़ना और लंबे समय तक प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के लिए एक साझा भविष्य का निर्माण करना’।

हालांकि समझौता-वार्ताओं के दूसरे दिन 15 मार्च को इस बात पर गहन चर्चा हुई कि क्या जैव-विविधता के नुकसान को बचाने के लिए 2020 के बाद की योजना में संख्यात्मक रूप से निर्धारित लक्ष्य होने चाहिए। चर्चा में सामान्य तौर यह सामने आया कि अधिकांश देशों ने जैव-विविधता के नुकसान को रोकने के लिए किसी तरह के औसत दर्जे का लक्ष्य रखने का समर्थन नहीं किया है।

जिस मसौदे पर चर्चा हुई , उसके मुताबिक, 2020 के बाद की वैश्विक रूपरेखा के पहले लक्ष्य में - ‘ जैव-विविधता के क्षेत्रफल में कम से कम 15ः की फीसद की वृद्धि, प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की कनेक्टिविटी और उसकी अखंडता, विलुप्त होने की दर को कम से कम दस गुना कम करना, प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम को आधा करना और सभी प्रजातियों के भीतर कम से कम 90ः फीसदी आनुवंशिक विविधता को बनाए रखते हुए जंगली और पालतू प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता की रक्षा करना शामिल है।’

2020 के बाद की वैश्विक जैव-विविधता रूपरेखा पर दो संपर्क समूह बनाए गए हैं जो संरचनात्मक प्रश्नों और पहले आठ लक्ष्यों से निपटते हैं, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है। विनोद माथुर (भारत) और नॉर्बर्ट बेयरलोचर (स्विट्जरलैंड) के सह-नेतृत्व वाले संपर्क समूह ने सम्मेलन के लक्ष्यों को तैयार करने, उन्हें व उनसे भी महत्वपूर्ण लक्ष्यों को हासिल करने की जिम्मेदारी निभाई।

15 मार्च को माथुर ने सम्मेलन में शामिल देशों से कहा कि वह इस पर बहस करें कि क्या जैव-विविधता को नुकसान से बचाने के लक्ष्यों में संख्यात्मक मूल्यों को शामिल किया जा सकता है अथवा इन लक्ष्यों को आकांक्षापूर्ण फॉर्मूले के तौर पर ही रखना चाहिए।

बहस में शामिल कई प्रतिनिधि चाहते थे कि मील का पत्थर कहे जाने वाले लक्ष्यों से दूरी बनाई जाए क्योंकि ये जटिलता का एक अनावश्यक स्तर जोड़ते हैं और नकल पैदा करते हैं। इन मील के पत्थरों से दूरी के बनानेे के पक्ष में दूसरा तर्क यह है कि इन्हें देश के स्तर पर राष्ट्रीय-लक्ष्यों में बदलने में कठिनाई होती है। कई देशों के पास प्रगति को मापने के लिए आधारभूत आंकड़े नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि विलुप्त होने की दर को दस गुना कम करना है, तो इसकी आधारभूत दर पहले तय करनी होगी। दूसरी ओर कुछ देशों ने मील के पत्थर लक्ष्यों को शामिल करने का समर्थन किया। उनका कहना था कि 2030 के लक्ष्यों को पाने में मील के पत्थर आवश्यक पड़ाव हैं।

वैकल्पिक रूप से, कई प्रतिनिधियों ने सुझाव दिया कि ‘विलुप्त होने की दर में दस गुना कमी’ का लक्ष्य निर्धारित करने के बजाय, ‘2050 तक ज्ञात प्रजातियों के मानव-प्रेरित विलुप्त होने को रोकना’ लक्ष्य होना चाहिए।

18 मार्च तक, इस पर फैसला हो जाएगा कि सम्मेलन में जैव-विविधता को नष्ट होने से बचाने के अंतिम उपायों में क्या शामिल किया जाए। सम्मेलन की कार्यकारी सचिव एलिजाबेथ के मुताबिक, ‘स्पष्ट रूप से, दुनिया प्रकृति की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई चाहती है और इसके लिए हमारे पास ज्यादा समय भी नहीं है।

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