2070 तक मिट्टी के कटाव में 66 फीसदी तक की वृद्धि होगी

भूमि कटाव वह प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी को हवा और पानी द्वारा दूर ले जाया जाता है
Photo: wikimedia commons
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शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और भूमि पर अत्यधिक खेती के कारण, अगले 50 वर्षों में दुनिया भर में जल अपवाह (पानी के विभिन्न माध्यमों के द्वारा, जैसे नदियों, नालों, धाराओं, बाढ़ आदि) के कारण मिट्टी का नुकसान बहुत अधिक बढ़ सकता है। यह शोध स्विट्जरलैंड की बेसल विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किया गया है।

भूमि कटाव के दूरगामी परिणाम होते हैं। उदाहरण के लिए, यह उपजाऊ मिट्टी को नुकसान पहुंचाता है, कृषि उत्पादकता को कम करता है और इसलिए इसके कारण दुनिया की आबादी के लिए खाद्य आपूर्ति खतरे में पड़ जाती है। एक वैश्विक मॉडल के आधार पर, इस नए अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2070 तक पानी द्वारा होने वाले मिट्टी कटाव से होने वाले नुकसान किस तरह बढ़ सकते हैं।

भूमि कटाव वह प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी को हवा और पानी द्वारा दूर ले जाया जाता है। वनों की कटाई के साथ-साथ कटाव को बढ़ाने वाली कृषि भूमि का अत्यधिक उपयोग और कृषि विधियां मिट्टी के नुकसान को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। इसके अलावा, दुनिया के कुछ हिस्सों में जलवायु परिवर्तन से मिट्टी को बहाने वाली वर्षा की मात्रा में और वृद्धि की आशंका है। यह अध्ययन पीएनएएस पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

वर्ष 2070 तक भू-कटाव किस तरह बढ़ेगा

शोधकर्ताओं ने तीन परिदृश्यों के आधार पर अनुमान लगाया है, जो कि जलवायु परिवर्तन (आईपीसीसी) पर अंतर सरकारी पैनल द्वारा भी उपयोग किए जाते हैं। ये परिदृश्य 21वीं सदी में कई अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के आधार पर संभावित विकास को रेखांकित करते हैं।

जलवायु और भूमि के उपयोग में परिवर्तन के प्रभावों सहित, सभी परिदृश्यों के लिए, अध्ययन में शामिल लगभग 200 देशों में से अधिकांश में जलवायु परिस्थितियों के बावजूद, लगातार पानी से होने वाले कटाव का अनुमान लगाया गया है। इससे यह भी पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन पहला कारक है जो मिट्टी के कटाव को बढ़ाता है।

परिदृश्य के आधार पर, सिमुलेशन का अनुमान है कि 2070 तक मिट्टी के कटाव में 2015 के आंकड़ों की तुलना में 30 फीसदी से 66 फीसदी तक की वृद्धि होगी। यदि कृषि पद्धतियां नहीं बदलती हैं और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उपाय नहीं किए जाते हैं, तो अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि सालाना 28 अरब से अधिक, अतिरिक्त मीट्रिक टन मिट्टी का नुकसान होगा। यह 2015 के अनुमानित 4300 करोड़ (43 बिलियन) टन से लगभग दो-तिहाई अधिक है।

भू-कटाव को रोकने के लिए स्थायी भूमि में की जानी चाहिए खेती

कटाव में तीव्र वृद्धि के लिए सबसे कमजोर स्थान -मध्यम-आय वाले उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय देशों में हैं। उल्लेखनीय है कि भारत भी उष्णकटिबंधीय देशों में आता है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इसलिए यह ग्लोबल साउथ में देशों के लिए टिकाऊ कृषि प्रथाओं के अधिक व्यापक उपयोग को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।

भारत में भू-कटाव

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में होने वाली मिट्टी के कटाव की अनुमानित मात्रा 14.7 करोड़ (147 मिलियन) हेक्टेयर थी। इस व्यापक आंकड़े के तहत, 9.4 करोड़ (94 मिलियन ) हेक्टेयर पानी से कटाव, 1.6 करोड़ (16 मिलियन) हेक्टेयर में अम्लीकरण, 1.4 करोड़ (14 मिलियन ) हेक्टेयर में बाढ़ और 90 लाख (9 मिलियन) हेक्टेयर में हवा के कटाव का दावा किया गया। 29 प्रतिशत मिट्टी का समुद्र में मिल कर नष्ट होना बताया गया है, जबकि सिर्फ 61 प्रतिशत मिट्टी दूसरी जगह जमा होती है।

बेसल विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. पास्केल बोरेलेली कहते हैं भूमि कटाव को स्थायी भूमि में खेती और सही नीतियों के द्वारा कम किया जा सकता है। हमें उम्मीद है कि हमारे अनुमान खतरे की भयावहता को पहचानने, भू-कटाव के प्रभाव को कम करने के लिए प्रभावी उपाय बनाने में नीति निर्माताओं को मदद करेंगे।

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