उत्तराखंड, गोवा और केरल ने 31 जनवरी, 2020 तक अपने राज्यों में बॉयोडायवर्सिटी मैनमेजमेंट कमेटियां (बीएमसी) गठित कर ली थी| इसके साथ ही इन राज्यों ने अपने सभी स्थानीय निकायों में पीबीआर (पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर) के निर्माण सबंधी सभी औपचारिकताएं भी पूरी कर ली हैं| गौरतलब है कि इस रजिस्टर में राज्यों को अपने क्षेत्र के जैव संसाधनों के साथ ही इनका उपयोग करने वालों का ब्योरा दर्ज करना है। यह जानकारी राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) द्वारा दायर एक अंतरिम रिपोर्ट से पता चली है। जिसको एनजीटी के आदेशानुसार प्रस्तुत किया गया है।
इससे पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 18 मार्च 2020 को दिए अपने आदेश में उन सभी राज्यों को 10 लाख रुपए प्रति माह की दर से जुर्माना भरने के लिए कहा था। जिन्होंने अपने राज्यों में पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर नहीं बनाया है। उन सभी राज्यों को 1 फरवरी 2020 से जुर्माना केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास जमा कराना है| राज्यों को यह जुर्माना तब तक भरना पड़ेगा, जब तक वो पीबीआर सम्बन्धी सभी कार्य पूरे नहीं कर लेते|
रिपोर्ट से पता चला है कि उत्तराखंड ने सभी 7991 स्थानीय निकायों में बीएमसी का गठन कर लिया है। इसके साथ ही उसने सभी 7991 निकायों में पीबीआर (पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर) तैयार कर लिए हैं। इसी तरह, गोवा ने भी अपने सभी 205 स्थानीय निकायों में बीएमसी का गठन पूरा कर लिया है। और सभी 205 बीएमसी के लिए पीबीआर भी तैयार कर लिए हैं।
पंजाब के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन निदेशालय द्वारा तालाबों के कायाकल्प के लिए कार्य योजना प्रस्तुत कर दी गई है। इस योजना के अनुसार पंजाब के स्थानीय निकाय विभाग एवं ग्रामीण विकास और पंचायत विभाग ने कुल 15,466 ग्रामीण और 249 शहरी तालाबों की पहचान की है। जिनका पुनरोद्धार किया जाना है।
यह कार्य योजना एनजीटी के 10 मई 2019 को दिए आदेश के अनुसार तैयार की गई है। इस आदेश में एनजीटी ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपने क्षेत्र में मौजूद सभी जल स्रोतों की बहाली के लिए कार्य योजना तैयार करने को कहा था। साथ ही मौजूदा ढांचे की समीक्षा करने के भी निर्देश दिए थे।
रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में अपशिष्ट जल के उपचार के लिए साइंटिफिक ट्रीटमेंट प्लांटों की कमी है। जिसके चलते तालाब अपशिष्ट जल के निपटान का केंद्र बनते जा रहे हैं।
एनजीटी के 27 फरवरी, 2020 को जारी आदेश के अनुसार एनटीपीसी, सीपत ने अपनी रिपोर्ट जमा करा दी है। इससे पहले एनजीटी इस प्लांट को लेकर एक मामला दायर किया गया था जिसमें कहा गया था कि एनटीपीसी, सीपत में बना यह थर्मल पावर प्लांट, पर्यावरण मंजूरी (ईसी) में दी शर्तों का पालन नहीं कर रहा है। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में तहसील मस्तूरी के ग्राम सीपत में एनटीपीसी के 3x660 मेगावाट (चरण- I) सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट से जुड़ी हुई है।
इस रिपोर्ट में अन्य बातों के साथ इस बात का भी उल्लेख किया गया था कि इस प्रोजेक्ट को पर्यावरण सम्बन्धी मंजूरी 22 फरवरी, 1999 को दी गई थी जिसके अनुसार 3x660 मेगावाट क्षमता वाले इस प्रोजेक्ट के प्रथम चरण में कोयले का परिवहन बंद वाहनों में किया जाना था। एनटीपीसी सीपत के अनुसार बंद वैगनों में कोयले के परिवहन में बाधा आ रही थी इसलिए यह मुद्दा पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) के समक्ष उठाया गया था। जिसके पश्चात विशेष मूल्यांकन समिति (ईएसी) ने इस मुद्दे पर विचार किया था|
एनटीपीसी सीपत ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले कुछ वर्षों से थर्मल पावर प्लांट से निकल रही राख का उपयोग बढ़ गया है। 2017-18 में इस राख का करीब 18.63 फीसदी हिस्सा प्रयोग कर लिया जाता था, जोकि 2018-19 में बढ़कर 49.54 फीसदी हो गया है। वहीं सीईसीबी को प्रस्तुत कार्य योजना के अनुसार इसके 2022 तक 100 फीसदी उपयोग कर लिए जाने की सम्भावना है।
इसके अलावा इस प्लांट से निकली राख को सीमेंट, ऐश आधारित उद्योगों, एनएचएआई बिलासपुर की पथरापाली राजमार्ग परियोजना, भूमि पुनर्ग्रहण और तटबंधों के लिए रेत के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, बिलासपुर द्वारा इस प्लांट पर एक अध्ययन किया गया है। जिसमें इस प्लांट के जंगलों और फसलों पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने की कोशिश की गई है। इस शोध में तीन सीज़नों के नमूनों को एकत्र करके विश्लेषित किया गया है। जिसमें यह बात सामने आई है कि इस प्लांट का पर्यावरण पर कोई भी प्रतिकूल असर नहीं पड़ रहा है।