कोटा में प्रस्तावित सॉलिड वेस्ट ट्रांसफर स्टेशन उम्मेद गंज पक्षी विहार संरक्षण रिजर्व से करीब 720 मीटर दूर है। आम तौर पर, आर्द्रभूमियों का "प्रभाव क्षेत्र" लगभग 100 मीटर होता है। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से एनजीटी को सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक यह ट्रांसफर स्टेशन इस जोन से बाहर है। वहीं रिजर्व का प्रबंधन पहले से ही वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत किया जा रहा है।
इस ट्रांसफर स्टेशन के माध्यम से 18 क्षेत्रों से एकत्रित गीला और सूखा कचरा ले जाया जाएगा। यह केवल एक ट्रांसफर स्टेशन होगा, जिसमें मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) नहीं होगी।
कोटा उत्तरी नगर निगम के मुताबिक इसका निर्माण सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के नियमों को ध्यान में रखकर किया जाएगा। साथ ही कचरे को जमीन की सतह के समपर्क में आए बिना पूरी तरह वैज्ञानिक तरीके से ट्रांसफर किया जाएगा। इसका अर्थ है कि ट्रांसफर स्टेशन से किसी तरह का वायु या जल प्रदूषण नहीं होगा।
इस रिपोर्ट में रिजर्व के बारे में भी जानकारी दी गई हैं। उम्मेद गंज पक्षी विहार संरक्षण रिजर्व में पक्षियों की कई प्रजातियां हैं, जिनमें सारस क्रेन जैसी लुप्तप्राय प्रजातियां भी शामिल हैं। यह रिजर्व 223 पक्षी प्रजातियों का घर है। इनमें से कई प्रजातियां प्रजनन और प्रवास के लिए आती हैं। यह रिजर्व ने केवल भारत के विभिन्न हिस्सों से बल्कि दुनिया के अन्य देशों से भी पक्षियों को आकर्षित करता है।
नियमों के खिलाफ है बावड़ियों पर होते अनधिकृत निर्माण को न रोकना और उन्हें मलबे से भरना: एनजीटी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की मदद करने के लिए नियुक्त एमिकस क्यूरी ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि इंदौर में कुछ बावड़ियां मलबे से भर गई हैं, लेकिन जल स्तर बनाए रखने के लिए उन्हें रिचार्ज करने के प्रयास किए जा रहे हैं। एमिकस क्यूरी का कहना है कि 21 अगस्त 2023 को अधिकारियों की मौजूदगी में कई बावलियों का निरीक्षण किया गया था।
गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इंदौर नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आने वाली बावड़ियों के बारे में 12 अप्रैल, 2023 को प्राप्त एक पत्र के आधार पर यह मामला उठाया था। मीडिया में छपी रिपोर्टों के मुताबिक, शुरूआत में इंदौर नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में 629 बावलियां थीं, जिन्हें अब घटाकर 616 कर दिया गया है।
13 मार्च, 2023 को एक दुर्घटना में जब लोग एक अस्थाई आवरण वाली बावली पर पूजा के लिए एकत्र हुए थे तो वो बावली ढह गई थी। इस दुर्घटना में कई लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद, अधिकारियों ने कुछ बावड़ियों को मलबे से भरने का फैसला लिया था, जो भूजल और सतही जल स्तर को प्रभावित कर रहा है।
ट्रिब्यूनल का कहना है कि बावलियों पर अनधिकृत निर्माण को न रोकना और उन्हें मलबे से भरना पर्यावरण कानूनों के खिलाफ है। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। अदालत ने यह भी कहा कि संयुक्त समिति अपनी रिपोर्ट में यह भी नहीं बता सकी कि स्थानीय लोगों को पानी उपलब्ध कराने और भूजल को रिचार्ज करने के बावजूद बावलियों को कैसे बंद कर दिया गया।
ठीक काम नहीं कर रहा लखनऊ में ठोस कचरे से निपटने के लिए लगाया पोर्टेबल और कॉम्पैक्ट ट्रांसफर स्टेशन
लखनऊ में ठोस कचरे से निपटने के लिए लगाई गई पोर्टेबल और कॉम्पैक्ट ट्रांसफर स्टेशन (पीसीटीएस) मशीनें निरीक्षण के समय चालू नहीं पाई गई। संयुक्त समिति द्वारा इन मशीनों की जांच की गई थी। मामला उत्तरप्रदेश में लखनऊ के शहीद पथ साउथ सिटी का है।
वहां एक मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) केंद्र भी स्थापित किया गया है, लेकिन वो भी चालू नहीं है। निरीक्षण के दौरान यह भी पाया गया कि स्टेशन पर लीचेट यानी कचरे से निकलने वाला तरल को इकट्ठा करने के लिए उचित टैंक नहीं है और वो तरल साइट पर फैला हुआ था। इन बातों की जानकारी संयुक्त समिति ने 25 अगस्त, 2023 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को दी है।
जानकारी मिली है कि इकोग्रीन एनर्जी लखनऊ प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी इस पोर्टेबल कॉम्पेक्टर ट्रांसफर स्टेशन (पीसीटीएस) का संचालन कर रही थी, लेकिन मशीनों का उचित रखरखाव न करने के कारण उन्होंने काम करना बंद कर दिया है।
इसके चलते लखनऊ नगर निगम ने छह जुलाई 2023 को अपना अनुबंध समाप्त करने का निर्णय लिया था और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 और स्वच्छ भारत मिशन के अनुसार अपशिष्ट का बेहतर प्रबंधन करने के लिए योजना बनाना शुरू कर दी थी। वहीं पोर्टेबल कॉम्पैक्टर ट्रांसफर स्टेशन (पीसीटीएस) और हुक लोडर की मरम्मत और रखरखाव का काम टीपीएस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को सौंपा गया है।