केंद्र की अनुमति के बिना अरावली वन क्षेत्र में नहीं किया जा सकता बदलाव: सर्वोच्च न्यायालय

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
केंद्र की अनुमति के बिना अरावली वन क्षेत्र में नहीं किया जा सकता बदलाव: सर्वोच्च न्यायालय
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सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, 1900 (पीएलपीए) की धारा 4 में जारी विशेष आदेशों के तहत आने वाली सभी जमीने, वन क्षेत्र हैं। यहां वन क्षेत्र का वही मतलब है जो 1980 वन अधिनियम की धारा 2 के तहत दिया गया है।

ऐसे में राज्य सरकार या सक्षम प्राधिकारी 25 अक्टूबर 1980 के बाद से केंद्र सरकार की पूर्व सहमति के बिना वन गतिविधियों के अलावा इसके उपयोग में बदलाव की अनुमति नहीं दे सकते हैं। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वो केंद्र सरकार के पूर्वानुमोदन के बिना, 25 अक्टूबर, 1980 के बाद से उक्त भूमि पर विशेष आदेशों के तहत गैर-वन गतिविधियों के लिए उपयोग की गई भूमि और उस पर बनी अवैध संरचनाओं को हटाने के लिए कार्रवाई करें।

साथ ही 21 जुलाई 2022 को दिए अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस भूमि की बहाली और उसको पहले की स्थिति में लाने के लिए नए जंगलों को लगाने के साथ पुराने वनों की बहाली का निर्देश दिया है। यह मामला पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, 1900 की धारा 4 से जुड़ा है। जिसमें मुद्दा यह था कि क्या हरियाणा सरकार एक विशेष आदेश के तहत पीएलपीए की धारा 4 के तहत आने वाले वन क्षेत्र में बदलाव की इजाजत दे सकती है। 

तमिलनाडु में वेस्ट मैनेजमेंट की क्या है स्थिति रिपोर्ट ने किया खुलासा

तमिलनाडु में वेस्ट मैनेजमेंट की क्या स्थिति है इससे जुड़ी एक रिपोर्ट तमिलनाडु सरकार द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में सबमिट की गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु में 96 फीसदी घरों में जाकर कचरा एकत्र किया जा रहा है। वहीं 81 फीसदी ठोस कचरे को उसके स्रोत पर ही अलग किया जा रहा है। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया है कि राज्य में 100 फीसदी कचरे को इकट्ठा किया जा रहा है।

यदि 2022 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो तमिलनाडु में हर दिन करीब 14,995 टन कचरा पैदा हो रहा है, जिनमें से 9,310 टन कचरा प्रति दिन प्रोसेस किया जा रहा है। वहीं हर रोज पैदा होने वाले 8,083 टन गीले कचरे में से 5542 टन कचरे को हर दिन प्रोसेस किया जा रहा है।

राज्य में मौजूद पहले के जमा कचरे की कुल मात्रा करीब 207 लाख घन मीटर है, जिसका 269 स्थानों पर बायोमाइनिंग का काम चल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार 69 स्थानों पर काम पूरा कर लिया गया है और 32 लाख घन मीटर पुराने जमा कचरे को साफ कर दिया गया है।

इंदिरापुरम सीवेज मैनेजमेंट में पाई गई खामियां: सीपीसीबी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा 20 जुलाई, 2022 को एनजीटी में दाखिल अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जांच किए गए 10 नालों में गाजियाबाद नगर निगम द्वारा जो जैव-उपचार तकनीक अपनाई है, वो प्रभावी नहीं है। मामला गाजियाबाद के इंदिरापुरम का है। ऐसे में सीपीसीबी का कहना है कि गाजियाबाद नगर निगम को नालों का 100 फीसदी खाली करके इस मुद्दे को हल करने की जरुरत है।

इतना ही नहीं सीपीसीबी द्वारा इंदिरापुरम में निगरानी किए गए 8 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में से केवल एक में सीक्वेंस बैच रिएक्टर (एसबीआर) तकनीक का इस्तेमाल किया गया था जिसकी कुल क्षमता 56 एमएलडी थी। केवल इस ट्रीटमेंट प्लांट में मानकों का पालन किया गया था।

वहीं 6 प्लांट एनजीटी द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुरूप नहीं थे। इसके साथ-साथ गोविंदपुरम और नूर नगर में मौजूद एसटीपी फेकल कोलीफॉर्म के लिए तय मानकों को पूरा नहीं कर रहे थे। रिपोर्ट से पता चला है कि जांच के दौरान 74 एमएलडी क्षमता वाले प्लांट के इनलेट में सीओडी का स्तर 826 मिलीग्राम/लीटर और टीएसएस 834 मिलीग्राम/लीटर पाया गया था। साहिबाबाद नाले का गन्दा पानी इस एसटीपी में जा रहा है।

इनलेट पर सीओडी का उच्च स्तर यह दर्शाता है कि इन नालों में बिना साफ किए औद्योगिक वेस्ट डाला जा रहा है।  इसके लिए रिपोर्ट में नाले के अपस्ट्रीम क्षेत्र में गैर औद्योगिक क्षेत्रों में चल रही औद्योगिक इकाइयों से निकले सीवेज को जिम्मेवार माना है। इसके अलावा रिपोर्ट से पता चला है कि इंदिरापुरम के 56 एमएलडी क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के यूएएसबी रिएक्टरों से पैदा होने वाली बायोगैस के भंडारण के लिए भी कोई सुविधा मौजूद नहीं है।

गौरतलब है कि सीपीसीबी की यह रिपोर्ट 22 अक्टूबर, 2021 को दिए एनजीटी के आदेश पर दाखिल की गई है।

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