वयोवृद्ध पर्यावरणविद् और चिपको आंदोलन के वास्तुकार सुंदरलाल बहुगुणा का 21 मई, 2021 को निधन हो गया। समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के मुताबिक उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उन्हें नोवेल कोविड-19 के संक्रमण के बाद भर्ती कराया गया था।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने उनके पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कामों और उपलब्धियों को याद करते हुए ट्वीट के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
बहुगुणा चिपको आंदोलन के नेताओं में से एक थे, जो हिमालय में वनों के संरक्षण के लिए लड़ रहे थे। चिपको का अर्थ है 'आलिंगन' या 'पेड़ को गले लगाने वाले' और यह विशाल आंदोलन एक विकेन्द्रीकृत आंदोलन था जिसमें कई अगुवाकार शामिले थे, आमतौर पर ग्रामीण महिलाएं थीं।
अक्सर आंदोलन करने वाले खुद को पेड़ों से बांध लेते थे ताकि लकड़हारे जंगलों को काट न सकें। इस आंदोलन ने जंगलों के विनाश की रफ्तार को धीमा कर दिया, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आंदोलन ने 'वनों की कटाई' को जनता के बीच एक संवेदनशील मुद्दा बना दिया।
1981-1983 तक सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालय के पार 5,000 किलोमीटर की एक यात्रा का नेतृत्व किया, जो दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ एक बैठक के साथ समाप्त हुआ। इसके बात तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने हिमालय के जंगलों के कुछ क्षेत्रों को पेड़ों को कटाई से बचाने के लिए कानून पारित किया था।
सुंदरलाल बहुगुणा टिहरी बांध परियोजना का विरोध करने और भारत की नदी की रक्षा करने के आंदोलन में भी अगुवा थे। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और गरीबों के अधिकारों के लिए भी काम किया। शांतिपूर्ण प्रतिरोध और अन्य अहिंसक तरीकों के माध्यम से उनके तरीके गांधीवादी थे।
चिपको आंदोलन को 1987 का राइट लाइवलीहुड अवार्ड मिला, जिसे वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है। यह वैकल्पिक नोबल पुरस्कार उन्हें "... भारत के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, बहाली और पारिस्थितिक रूप से ध्वनि उपयोग के प्रति समर्पण के लिए" दिया गया था।
उत्तराखंड के कई जनसंगठनों और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं ने सुंदरलाल बहुगुणा के निधन को अपूर्णीय क्षति करार दिया है। अविरल गंगा, वनों और पहाड़ों का संरक्षण से जुड़ा उनका काम हमेशा याद किया जाएगा।