बरेली से ज्योति पांडे
भीषण गर्मी में जंगल में खान-पान की कमी के कारण जानवरों का शहर की तरफ आने का सिलसिला बढ़ गया है। गुरुवार को पीलीभीत टाइगर रिजर्व से आये दो हाथियों ने एक किसान को कुचलकर मार डाला।
पीलीभीत जिले से बरेली की बहेड़ी तहसील सटी हुई है। बुधवार को बहेड़ी के गांव भट्टी वाली गौटिया में लोगों ने दो हाथियों को देखा था। गुरुवार सुबह किसान अपने खेतों में काम कर रहे थे। गन्ने के खेत में घुसे हाथियों ने किसान लाखन सिंह पर हमला कर दिया। 40 वर्ष के लाखन की चीख पुकार सुनकर आसपास काम कर रहे किसान आ गए। उन लोगों ने गोला-पटाखे दागकर हाथियों को वहां से खदेड़ा। घायल को आनन-फानन में मुख्य स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) लाया गया। हालत गम्भीर देख डॉक्टरों ने उसे बरेली रेफर कर दिया। लाखन ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। परिजन मृतक का शव रास्ते से ही वापस गांव लेकर पहुंच गए।
हाथी आने की सूचना पर वन विभाग की टीम और पुलिस गांव पहुंच गई। वन विभाग की टीम हाथियों को पकड़ने की कोशिश कर रही है। डीएफओ भारत लाल ने बताया कि दो जंगली हाथी भट्टी वाली गौटिया में आ गए हैं। जल्द ही हाथियों को बेहोश करके पीलीभीत के जंगलों में छुड़वाया जाएगा। हाल में ही पीलीभीत के अमरिया इलाके में भी हाथी ने उत्पात मचाया था। उत्तराखंड के रामनगर में हाथी ने कई गाड़ियां तोड़ दी थी ।
इंसान और हाथियों के बीच का संघर्ष काफी पुराना है, लेकिन इसे रोकने के लिए कुछ राज्यों को छोड़ कर सरकार की ओर से कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। कर्नाटक और झारखंड में इस तरह की दो परियोजनाएं चलाई जा रही है, जिससे लोगों को पहले ही हाथियों के आने की सूचना मिल जाती है।
हालांकि इसे स्थायी समाधान नहीं माना जा रहा है। पलामू स्थित हाथी विशेषज्ञ डी.एस. श्रीवास्तव ने बताया कि चेतावनी प्रणाली का सबसे प्रमुख लाभ अब यह हो रहा है कि इससे हम हाथियों की क्षेत्र में यथास्थिति तथा उनके विचरण के बारे में जानकारी हो जाती है। लेकिन हाथियों के रहने एवं और उनके प्रबंधन के बारे में बुनियादी जरूरतें अभी भी सुलक्ष नहीं पाई हैं।
वर्तमान में चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से हम केवल जानवरों की निगरानी कर रहे हैं और आवश्यकतानुसार लोगों को मुआवजा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम हाथियों के अनुकूल स्थिति नहीं बना पा रहे हैं। श्रीवास्तव ने कहा कि बांस और साल के वनों को नए तौर-तरीकों से ठीक करना जरूरी है। उन्होंने आगे कहा कि “इस मामले में हमने केवल अल्पकालिक समाधान तक ही खुद को सीमित कर रखा है।”
कर्नाटक वन क्षेत्रों में मैसूर स्थित वन्यजीव अनुसंधान संगठन और नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन (एनसीएफ) द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि 2010 और 2018 के बीच हाथी के हमलों में 38 लोगों ने अपनी जानें गवाईं। औसतन प्रति वर्ष 4.2 व्यक्ति मारे गए। ज्यादातर मौतें तब हुईं जब पीड़ित सड़कों पर थे। 38 में से 24 मामले ऐसे ही घटित हुए। ये घटनाएं सुबह 6 से 10 और शाम 4 से 8 बजे के दौरान हुईं। आमतौर पर देखा जाए तो इस समय में लोग अपने घरों और कार्यस्थलों के बीच में होते हैं।
अधिकांश मामलों में पीड़ितों को हाथियों की उपस्थिति के बारे में पता नहीं था। इससे निपटने के लिए पिछले डेढ़ साल में एक सुरक्षा उपाय के रूप में यह प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली शुरू की गई है। एनसीएफ ने कर्नाटक वन विभाग के साथ मिलकर लोगों के लिए एसएमएस और वॉयस कॉल अलर्ट की शुरुआत की है। यह अलर्ट उन लोगों के लिए है जिन्होंने इसके लिए दैनिक आधार पर पंजीकरण कराया है।