बढ़ते शहरी विकास से तितलियों पर सबसे अधिक मार पड़ रही है। सिकुड़ते आवास और भोजन की उपलब्धता में कमी के कारण उनकी आबादी घट रही है। यही बात कई जंगली मधुमक्खियों पर भी लागू होती है जो शुरुआती वसंत में उड़ती हैं।
मार्टिन लूथर यूनिवर्सिटी हाले-विटनबर्ग (एमएलयू) और चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज की अगुवाई में किए गए नए अध्ययन के अनुसार, परागण पर अभी तक कोई प्रभाव नहीं पड़ा है क्योंकि मधुमक्खियां शहरी परागणकों की कमी की भरपाई कर सकती हैं।
यह अध्ययन इस विषय का पहला व्यापक विश्लेषण है और इसमें 133 अध्ययनों के आंकड़े शामिल हैं। परिणाम शहरी क्षेत्रों में प्रकृति संरक्षण उपायों के महत्व को उजागर करते हैं।
दुनिया भर में शहर लगातार बढ़ रहे हैं और इसका कई जीवों की प्रजातियों के आवासों पर भारी प्रभाव पड़ रहा है। जिसके कारण पौधों की विविधता में कमी और पर्यावरण प्रदूषण में जैसे प्रकाश और वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी होती है। परागणकर्ता, जिनका काम एक संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र और इसलिए लोगों की खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक है, विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।
एमएलयू के जीव विज्ञानी डॉ. पानागियोटिस थियोडोरो बताते हैं, ऐसे कई अध्ययन हैं जिन्होंने शहरीकरण, परागणकर्ताओं और परागण में कमी के बीच संबंधों की जांच की है और बुरे प्रभावों के बारे में बताया है। क्योंकि यह काम बहुत जटिल और समय लेने वाला है, अध्ययन आमतौर पर विशिष्ट शहरों या क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
वैश्विक अवलोकन हासिल करने के लिए, उन्होंने और चीनी विज्ञान अकादमी के शोधकर्ताओं ने 133 अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें देखा गया कि शहरी विकास परागणकों और उनके परागण करने की क्षमता को कैसे प्रभावित करता है। विश्लेषण में अंटार्कटिका को छोड़कर पृथ्वी के सभी महाद्वीपों पर गौर किया गया है।
थियोडोरो कहते हैं कि, परिणाम एक स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं, जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ता है, कई परागणकों की बहुतायत और जैव विविधता कम हो जाती है। हालांकि, कुछ समूह दूसरों की तुलना में अधिक प्रभावित हैं। टीम ने पाया कि तितलियों पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ा।
वुहान बॉटनिकल गार्डन, चीनी विज्ञान अकादमी के डॉ. हुआन लियांग बताते हैं, तितलियों पर उनके वातावरण में होने वाले बदलाव का विशेष असर पड़ता है। वे अपने पोषण और लार्वा विकास करने के लिए बहुत विशिष्ट पौधों पर निर्भर होती हैं। क्योंकि ये शहरों में कम पाई जाती हैं, इसलिए कई तितली प्रजातियों की आबादी भी घट रही है।
परागणकर्ता भी विशेष रूप से प्रभावित होते हैं जो शुरुआती वसंत में पहले से ही सक्रिय होते हैं और शुरुआती फूल वाले पौधों के रस और पराग को ग्रहण करते हैं। जमीन में छत्ता बनाने वाली जंगली मधुमक्खियों के लिए अक्सर शहरों में उपयुक्त प्रजनन स्थलों की कमी होती है इसलिए उनकी आबादी घट रही है। दूसरी ओर, जंगली मधुमक्खियां कम प्रभावित होती हैं जो जमीन के ऊपर, गुफाओं में छत्ता बनाती हैं।
हालांकि, अध्ययनों से पता चलता है कि घटती संख्या के कारण परागण में कमी नहीं आती है। परागणकर्ता अभी भी नियमित रूप से पौधों को परागित करते हैं, जिससे पर्याप्त बीज पैदा होते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह मुख्य रूप से मधुमक्खियों के कारण होता है, जो भौंरों के साथ मिलकर शहरी परागण विविधता में कमी की भरपाई करती हैं।
लियांग कहते हैं, मधुमक्खियां बहुत उत्पादक होती हैं और कई जगहों पर शौकिया तौर पर मधुमक्खी पालकों द्वारा उन्हें पाला जाता है। हालांकि यह शहरी पौधों के लिए अच्छा है, यह अन्य परागणकों पर बुरा प्रभाव डाल सकता है क्योंकि मधुमक्खियां अक्सर अन्य देशी परागणकों को विस्थापित कर देती हैं और जंगली परागणकों में बीमारियां फैला सकती हैं।
यह अध्ययन जैव विविधता की रक्षा और सतत शहरी विकास को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। विश्लेषण से पता चलता है कि फूलों की अधिक विविधता वाले शहर आमतौर में अधिक और कई अलग-अलग प्रकार के परागणकों के घर होते हैं।
पैनागियोटिस थियोडोरौ ने निष्कर्ष निकाला, अगर हम अपने शहरों को परागणकों को जो कुछ प्रदान करते हैं उसके संदर्भ में बेहतर डिजाइन करते हैं, तो हम कम से कम शहरी विकास के कुछ बुरे परिणामों की भरपाई कर सकते हैं। यह अध्ययन इकोलॉजी लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।