खोज: मणिपुर की प्रागैतिहासिक गुफा में मिली चमगादड़ की बारह नई प्रजातियां

भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआई) के शोधकर्ताओं ने मणिपुर में छोटे स्तनधारी जीवों पर किए जा रहे एक अध्ययन के दौरान चमगादड़ों की 12 नई प्रजातियों की जानकारी दी है।
फोटो : जर्नल ऑफ थ्रेटन टैक्सा
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भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआई)  के शोधकर्ताओं ने मणिपुर में छोटे स्तनधारी जीवों पर किए जा रहे एक अध्ययन के दौरान चमगादड़ों की 12 नई प्रजातियों की जानकारी दी है।

शोधकर्ताओं को तीन स्तनधारी  चिरोप्टेरा, रोडेंटिया और यूलिपोटीफला छोटे स्तनधारियों की प्रजातियां एक साथ मिली हैं। पूर्वोत्तर भारत में उनकी विविधता, संख्या, महत्व और इन जगहों पर पाए जाने के बावजूद ये सबसे कम खोजे गए स्तनधारी हैं।

शोधकर्ता उत्तम सैकिया और ए. बी. मेइतेई ने 2019 से 2021 में मणिपुर के नौ जिलों के साथ दो बड़े इलाकों का सर्वेक्षण किया, जिसके परिणामस्वरूप इन समूहों के 62 जीवों का संग्रह किया गया। इसके अलावा, मणिपुर के चमगादड़ और श्रेव्स के 12 अतिरिक्त रिकॉर्ड को जेडएसआई, शिलांग के उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय केंद्र में जमा किया गया।

शोधकर्ताओं ने बताया कि मणिपुर राज्य के छोटे स्तनधारी जीवों से संबंधित अधिकांश प्रकाशन पुराने हैं और राज्य में इस समूह पर नए अध्ययन बहुत कम हैं।

चमगादड़ों के 12 नए रिकॉर्ड में निम्नलिखित शामिल हैं –

हिप्पोसाइडरोस सिनेरेसस (ऐश राउंडलीफ बैट), राइनोलोफस एफिनिस (इंटरमीडिएट हॉर्सशू बैट), राइनोलोफस लेपिडस (ब्लीथ्स हॉर्सशू बैट) राइनोलोफस्क मैक्रोटिस (ब्लीथ्स हॉर्सशू बैट), राइनोलोफस पेर्निगर (उत्तरी), लियोरोडर्मा हॉर्सशू बैट (ग्रेटर फाल्स वैम्पायर बैट), मायोटिस एनेक्टन्स (बालों वाला बैट) मायोटिस फॉर्मोसस (हॉजसन का बल्ला), मुरीना हटोनी (हटन की ट्यूब-नोज्ड बैट), मुरीना साइक्लोटिस (गोल-कान वाली ट्यूब-नोज्ड बैट, मिरोस्ट्रेलस जोफ्रेई (जोफ्रे) और हिप्पोसाइडरोस जेंटिलिस (एंडरसन का राउंडलीफ बैट)।

इन रिकॉर्ड और क्षेत्र के साक्ष्य के आधार पर, शोधकर्ताओं ने राज्य में छोटे स्तनधारियों की 38 प्रजातियों के होने की जानकारी दी, जिनमें 27 प्रजातियां चमगादड़, 10 प्रजातियां कृंतक - जिसमें चूहा गिलहरी आदि कतरने वाले जानवर शामिल हैं। इनमें से चमगादड़ों की 12 प्रजातियां राज्य में पहली बार दर्ज की गई हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि वर्तमान सूची आगे के सर्वेक्षणों के साथ और बढ़ेगी क्योंकि वर्तमान अध्ययनों के दौरान जीवाश्म कृन्तकों और श्रेव्स का पर्याप्त रूप से नमूना नहीं लिया गया।

कोविड -19 महामारी के कारण, 2020 में होने वाला सर्वेक्षण नहीं किया जा सका था। शुष्क पर्णपाती जंगलों, अर्ध-सदाबहार जंगलों, उपोष्णकटिबंधीय देवदार के जंगलों, गुफाओं और लोगों के रहने वाले चौबीस इलाकों का सर्वेक्षण किया गया।

चमगादड़ के नमूने एकत्र करने के लिए, मिस्ट नेट एंड टू बैंक हार्प ट्रैप या धुंध जाल और एक दो-बैंक वीणा जाल का उपयोग किया गया था, जबकि कृन्तकों और श्रेव्स के लिए, कई फोल्डेबल शेरमेन ट्रैप का उपयोग किया गया था। कुछ प्रमुख गुफाओं के अंदर और बांधा जाने वाला तितली जाल का उपयोग करके तथा लोगों के रहने वाली जगहों से भी नमूने जमा किए गए थे।

दुनिया भर में चमगादड़ों पर भारी मानवीय दबाव जैसे आवासों के नष्ट होने, अतिदोहन, उत्पीड़न आदि का खतरा है और भारत में भी स्थिति औरों से अलग नहीं है।

प्रागैतिहासिक गुफा जिसे पर्यटन के अनुकूल बनाने के लिए वहां से चमगादड़ों को मारा और भगाया जा रहा है

उखरूल जिले में खांगखुई, जिसे स्थानीय रूप से खांगखुई मांगसोर कहा जाता है, यह जिला मुख्यालय उखरूल से लगभग 15 किमी दूर एक प्राकृतिक चूना पत्थर की गुफा है। मणिपुर के पुरातत्वविदों द्वारा की गई खुदाई से पता चला था कि गुफा पाषाण युग के समुदायों का घर था।

खांगखुई गुफा राज्य में एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। शोधकर्ताओं  ने कहा कि स्थानीय गाइडों द्वारा हमें बताया गया था कि 2016 और 17 तक, गुफा में राइनोलोफिड और हिप्पोसाइडरिड चमगादड़ों की बड़ी संख्या में बसेरा हुआ करता था। लेकिन अध्ययन में कहा गया है कि हाल के दिनों में गुफा को "अधिक पर्यटक-अनुकूल" बनाने के लिए गुफा से सभी को मार दिया गया या उन्हें गुफा से निकाल दिया गया है।

जापानी सेना के मणिपुर और उससे सटे नागालैंड की ओर बढ़ने के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्थानीय लोगों द्वारा गुफा का उपयोग आश्रय के रूप में भी किया गया था। संरक्षणवादियों के लिए अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि गुफा में राइनोलोफिडे और हिप्पोसाइडरिडे परिवारों से संबंधित चमगादड़ों की बड़ी आबादी है।

अध्ययन में कहा गया है कि कुछ जगहों पर चमगादड़ को उनके कथित औषधीय गुणों के लिए या प्रोटीन के  स्रोत के रूप में भी खाया जाता है।

शोधकर्ताओं ने कहा चंदेल जिले के वैलौ गांव में, लोग कभी-कभी पास की गुफा में चमगादड़ का शिकार करते हैं, हालांकि यह प्रथा पूरे राज्य में नहीं है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि सौभाग्य से, हाल के दिनों में कुछ क्षेत्रों में वन्यजीव संरक्षण के बारे में जागरूकता का स्तर बढ़ रहा है। विशेष रूप से तामेंगलोंग जिले का डैलोंग गांव है जो समुदाय के नेतृत्व वाले संरक्षण प्रयासों में सबसे आगे रहा है। डैलोंग गांव और उसके आसपास के जंगलों में समृद्ध जैव विविधता है और पीढ़ियों से लोग इन जंगलों को अपनी विरासत के रूप में संरक्षित करते रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि सभी जगह समान रूप से जागरूकता फैलाने की जरूरत है। दूर-दराज के क्षेत्रों में जानकारी फैलाना अहम है जहां वन्यजीव कानूनों को लागू करना स्वाभाविक रूप से कठिन है।

शोधकर्ताओं ने कहा यह वास्तव में एक बड़ी चुनौती है, लेकिन इसके लिए सरकार, समुदाय के नेताओं, युवा संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों को शामिल कर सकती है। यह राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए और इससे पहले कि कार्रवाई करने में बहुत देर हो जाए, उन्हें कदम उठाने चाहिए। यह अध्ययन जर्नल ऑफ थ्रेटन टैक्सा में प्रकाशित हुआ है।

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