धरती की करीब 17 फीसदी हिस्सा है संरक्षित, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
धरती की लगभग 16.6 फीसदी जमीन अब संरक्षित क्षेत्रों के रूप में हैं, इस बात की जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट प्रोटेक्टेड प्लेनेट रिपोर्ट 2020 में सामने आई है| वहीं यदि इस क्षेत्र के कुल क्षेत्रफल की बात करें तो यह 2.25 करोड़ वर्ग किलोमीटर में फैला है| रिपोर्ट के अनुसार यदि इस क्षेत्र में 20 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को और जोड़ दिया जाए तो हम आइची जैव विविधता लक्ष्य-11 को पूरी तरह से हासिल कर लेंगें|
पिछले दशक की शुरुवात से देखें तो इन संरक्षित क्षेत्रों में करीब 42 फीसदी की वृद्धि हुई है| यदि आकार के दृष्टिकोण से देखें तो यह 2010 के बाद से भारत के आकार का करीब सात गुना हो गया है| इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा 19 मई को जारी किया गया था|
वहीं 2010 के बाद से समुद्रों का संरक्षित क्षेत्र तीन गुना से अधिक हो गया है, इसके बावजूद वो समुद्रों का केवल 8 फीसदी हिस्सा ही है, जो अभी भी आइची जैव विविधता लक्ष्य-11 में निर्धारित 10 फीसदी के लक्ष्य से पीछे है| यह क्षेत्र अब बढ़कर लगभग 2.81 करोड़ वर्ग किलोमीटर हो चुका है|
हालांकि यदि आंकड़ों के देखें तो हमने स्थलीय इलाकों को संरक्षित क्षेत्र में बदलने के लक्ष्य को लगभग हासिल कर लिया है| साथ ही समुद्री क्षेत्रों के लिए निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के हम करीब ही हैं, पर क्या केवल इन क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करना ही काफी है| इन क्षेत्रों में से कितने क्षेत्रों में वास्तविक रूप से जैवविविधता को संरक्षित किया जा रहा है यह कहीं ज्यादा मायने रखता है| रिपोर्ट से पता चला है कि कुछ संरक्षित क्षेत्र दूसरों की तुलना में जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र को बचाने का काम कहीं बेहतर तरीके से कर रहे हैं|
सुरक्षा के नाम पर केवल बाड़ लगा देना ही काफी नहीं
यूनेप की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन के अनुसार जो लक्ष्य हासिल किया है वो प्रभावित करने वाला है| इसके लिए देश बधाई के पात्र हैं, लेकिन हमें समझना होगा कि अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है| उनके अनुसार केवल सुरक्षा के नाम पर बाड़ लगा देना ही काफी नहीं है| हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वहां संरक्षण तय मानकों के अनुसार ही हों|
उनके अनुसार यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| यह जमीन द्वारा अवशोषित किए जाने वाले कार्बन के कुल हिस्से का करीब पांचवा भाग सोख लेते हैं| हालांकि संरक्षित क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है इसके बावजूद दुनियाभर में जैवविविधता में तेजी से गिरावट आ रही है| संयुक्त राष्ट्र की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार करीब 10 लाख प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है|
हाल ही में किए एक शोध से पता चला है कि 1960 से 2019 के बीच करीब 4.3 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के भूमि उपयोग में बदलाव किया गया है| इसी का परिणाम है कि वन क्षेत्रों में 8 लाख वर्ग किलोमीटर की शुद्ध कमी आई है| यह सच में चिंता की बात है|
वहीं जर्नल फ्रंटियर्स इन फॉरेस्ट एंड ग्लोबल चेंज में प्रकाशित एक अन्य शोध के अनुसार धरती का केवल 2.8 फीसदी हिस्सा ही अनछुआ रह गया है| वहीं धरती पर केवल 3 फीसदी से भी कम हिस्से पर जानवर आज अपनी मूल और प्राकृतिक अवस्था में रह रहे हैं| अनुमान है कि जो क्षेत्र आज भी अनछुए हैं उनका केवल 11 फीसदी हिस्सा ही संरक्षित क्षेत्रों के अंदर आता है| इनमें से काफी सारे क्षेत्र ऐसे हैं जो आज भी उनके मूल निवासियों द्वारा संरक्षित हैं जो उनको बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं|
ऐसे में यह जरुरी है कि इन संरक्षित क्षेत्रों को बनाए रखने के लिए यहां रहने वाले मूल निवासियों और उनके प्रथाओं को भी संरक्षित किया जाए, क्योंकि यह लोग ही इन क्षेत्रों के सच्चे प्रहरी है| इनके विकास के बिना जैवविविधता को बनाए रख पाना संभव नहीं है|