उत्तराखंड में वन गुर्जरों पर 'सरकारी' हमले बढ़े

एक ओर सरकार ने लॉकडाउन के बहाने वन गुर्जरों को जहां हैं, वहीं रहें के निर्देश दिए तो दूसरी ओर वन विभाग अतिक्रमण के नाम पर कार्रवाई कर रहा है
उत्तराखंड का एक वन गुर्जर परिवार। फोटो: रौबिन सिंह चौहान
उत्तराखंड का एक वन गुर्जर परिवार। फोटो: रौबिन सिंह चौहान
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रौबिन सिंह चौहान

24 मार्च की रात जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 दिन के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर रहे थे, लगभग उसी वक्त इस सबसे अनजान उत्तराखण्ड़ के पौड़ी जिले के कोटद्वार रेंज की सुखरो बीट में रहने वाले वन गुर्जर मस्तू और उनके परिजन अपने पालतू पशुओं के ग्रीष्मकालीन प्रवास की तैयारी कर रहे थे। परंपरागत रुप से हर साल मार्च-अप्रैल में वन गुर्जर अपने पशुओं को लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों के लिए रवाना होते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में बुग्याल कहते हैं। लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद, जिसमें बुग्यालों में जाना प्रतिबंधित किया गया है, ये गुर्जर नजदीकी इलाकों का रुख करते हैं, जहां उनके पशुओं को पर्याप्त मात्रा में चारा, पानी और ठंडा वातावरण मिल सके। इस बार भी मस्तू गुर्जर इसी तैयारी में लगे थे कि अचानक लॉकडाउन की घोषणा हो गई और उन्हें सुखरो बीट में ही रुकना पड़ गया।

इस बीच लॉकडाउन की घोषणा से पहले उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में रहने वाले कई गुर्जर परिवार अपने शीतकालीन डेरों (निवास स्थान) को छोड़ कर ग्रीष्मकालीन प्रवासों का रूख कर चुके थे।

बहरहाल मस्तू गुर्जर एक-एक दिन लॉकडाउन खुलने की उम्मीद में इंतजार कर रहे थे, मगर 28 अप्रैल को उत्तराखंड सरकार के एक आदेश ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

कोरोना संकट को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने 28 अप्रैल एक आदेश निकाल कर लॉकडाउन अवधि तक गुर्जरों के किसी भी तरह के मूवमेंट पर रोक लगा दी। प्रदेश के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि वन गुर्जरों के पशुओं के लिए पशुपालन विभाग चारा उपलब्ध कराएगा तथा डेरी विभाग दूध खरीदेगा, ताकि उनकी रोजी रोटी बाधित ना हो।

इस आदेश का पालन तो नहीं हुआ मगर इस बीच मस्तू गुर्जर से सिर से ‘छत’ ही छिन गई।

एक जून को वन विभाग के कर्मचारी सुखरो बीट स्थित उनके डेरे पर आए और उनका छप्पर तोड़ दिया। मस्तू का आरोप है विभाग के कारिदों ने उनकी झोपड़ी जला डाली और उन्हें परिवार और पशुओं सहित जंगल छोड़ने का फरमान सुना दिया।

इलाके के डीएफओ से पूछे जाने पर उन्होंने इन आरोपों से इंकार किया और कहा कि साल के इन दिनों में वन गुर्जर यहां से चले जाते हैं, न जाने पर वन विभाग इसे अतिक्रमण मान कर कार्रवाही करता है। जो विभाग ने किया

बहरहाल इस घटना के बाद से मस्तू गुर्जर किसी तरह तिरपाल का टेंट बना कर सुखरों बीट में ही किसी तरह जीवन गुजार रहे हैं।

वन गुर्जरों के खिलाफ वन विभाग की कार्रवाई का यह अकेला मामला नहीं है।

इस घटना के ठीक पांच दिन बाद छह जून को देहरादून जिले के अधीन ऋषिकेश रेंज में लाल तप्पड़ बीट में भी कुछ ऐसी ही घटना सामने आई। वहां रहने वाले वन गुर्जर यासीन का आरोप है कि सुबह जब वे अपने पशुओं को चराने जंगल पहुंचे तो वन विभाग के कर्मचारियों ने उनसे मारपीट की। यासीन का आरोप है कि वन विभाग के कमर्चारियों ने उनसे पहले दूध मांगा और फिर पैसों की माग की। यासीन के मना करने पर उन्होंने उनकी बुरी तरह पिटाई की।

लॉकडाउन से दो दिन पहले यासीन टिहरी जिले की नरेंद्र नगर रेंज में स्थित अपना डेरा छोड़ कर रुद्रप्रयाग जिले के लिए निकले थे, मगर बीते तीन महीने से वे ऋषिकेश रेंज की गोला तप्पड़ बीट में फंसे हुए हैं। उनके कुछ साथी जंगलों में हैं तो कुछ गांव वालों के खेतों में किराए पर रह रहे हैं। उनका कहना है कि पहले तो गांव वालों ने उनसे कोई किराया नहीं लिया लेकिन अब वो हर परिवार से एक हजार रुपये किराया मांग रहे हैं। इस दौरान वन विभाग के कमर्चारी लगातार जगह छोड़ कर जाने का दबाव भी बना रहे हैं।

इसी तरह की एक और घटना देहरादून के राजाजी नेशनल पार्क के आशारोड़ी इलाके में 16 जून को हुई जहां वन विभाग की टीम अतिक्रमण हटाने के नाम पर एक डेरे पर पहुंची। इस दौरान वन गुर्जरों और विभाग के कमर्चारियों में कहा सुनी हुई। वन विभाग की टीम अगले दिन पुलिस बल के साथ वहां पहुंची और वन गुर्जरों के साथ उनका संघर्ष हुआ। इस दौरान नूरजहां नाम की वन गुर्जर महिला को गंभीर चोटें आई। वन विभाग का दावा है कि उनके चार कमर्चारी इसमें घायल हुए। वन गुर्जरों का आरोप है कि 18 जून को एक बार फिर से पुलिस आई और नूरजहां, कुछ नाबालिग बच्चों और 80 साल के एक बुजुर्ग को उठाकर ले गई। वन गुर्जर पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुंचे तो उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) देहरादून के हस्तक्षेप के बाद आखिरकार मुकदमा दर्ज हो पाया।

ये तीन घटनाएं बताती हैं कि लॉकडाउन अवधि के दौरान वन गुर्जर किस तरह की स्थितियों का सामना करने को मजबूर हैं।

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