यही रही रफ्तार तो पर्यावरण संबंधी लंबित मामलों को निपटाने में लगेंगे 34 साल

2022 में, पर्यावरण से संबंधित 88,400 से अधिक मामलों की सुनवाई लंबित थी। वहीं पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत लंबित मामलों के निपटारे की गति सबसे धीमी है
2020 से 2022 के बीच  वन अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में 19 फीसदी का इजाफा हुआ है; फोटो: आईस्टॉक
2020 से 2022 के बीच वन अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में 19 फीसदी का इजाफा हुआ है; फोटो: आईस्टॉक
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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में, भारत में 88,400 से अधिक पर्यावरण-संबंधित मामले लंबित थे। ऐसे में अदालतों को एक वर्ष के भीतर इन लंबित मामलों के मौजूदा बैकलॉग को खत्म करने के लिए हर दिन कम से कम 242 मामलों का निपटारा करने की आवश्यकता होगी।

देखा जाए तो मामलों को निपटारे की यह दर मौजूदा रफ्तार से दोगुनी है। आंकड़ों के मुताबिक 2022 में अदालतों ने हर दिन औसतन 129 मामलों का निपटारा किया था। 

इन पर्यावरण से संबंधित मामलों में सात अधिनियमों के तहत दायर मामले शामिल हैं: वन अधिनियम, 1927, और वन संरक्षण अधिनियम, 1980; वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972; पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986; वायु और जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम; सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003; ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000; और राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010

आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि मौजूदा दर से भारतीय अदालतों को वायु और जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन से जुड़े लंबित मामलों को निपटाने के लिए आठ से 33 वर्ष लगेंगें।

वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा 2022 के लिए जारी पर्यावरण सम्बन्धी अपराधों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि अदालतों द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत लंबित मामलों को निपटारा सबसे धीमी गति से किया जा रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो मौजूदा दर से, इस अधिनियम के तहत लंबित मामलों को निपटाने में अदालतों को 34 साल से अधिक का समय लगेगा।

ऐसे में इस अधिनियम के तहत जो मामले लंबित हैं उन्हें यदि एक वर्ष में निपटाना है तो अदालतों को हर दिन कम से कम छह मामलों का निपटारा करने की आवश्यकता होगी। मामलों को निपटाने की यह रफ्तार मौजूदा दर से छह गुणा है।

साल दर साल बढ़ रहा है मामलों को निपटाने का बोझ

इसी तरह वायु और जल प्रदूषण से जुड़े लंबित मामलों को निपटाने की मौजूदा रफ्तार के लिहाज से देखें तो इसके सभी मामलों को निपटाने में अभी आठ वर्षों से ज्यादा का समय लगेगा। ऐसे में यदि एक वर्ष के भीतर इन सभी मामलों का निपटाना है तो हर दिन कम से कम दो मामलों का निपटारा करने की जरूरत होगी। जो इनके निपटारे की मौजूदा दर से दोगुनी है।

ऐसे में वायु एवं जल प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत लंबित मामलों के निपटान की जो धीमी रफ्तार है उसे स्वीकार करना और उसका समाधान बेहद महत्वपूर्ण है। गौरतलब है कि 2021 से 2022 के बीच इन दोनों ही श्रेणियों में रिपोर्ट किए गए पर्यावरणीय अपराधों या उल्लंघनों में वृद्धि हुई है।

उदाहरण के लिए, 2021 से 2022 के बीच पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत दर्ज अपराधों की संख्या में करीब 31 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

वहीं डाउन टू अर्थ द्वारा जारी हालिया विश्लेषण से पता चला है कि इसी अवधि के दौरान वायु (प्रदूषण  रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम और जल (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम के उल्लंघन के लिए दर्ज मामलों में करीब 42 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। बता दें कि यह विश्लेषण एनसीआरबी द्वारा पांच दिसंबर 2023 को जारी आंकड़ों पर आधारित है।

वहीं इंडिया एनवायरनमेंट पोर्टल द्वारा ट्रैक किए गए पर्यावरण संबंधी मामलों के विश्लेषण से पता चला है कि अदालतों, विशेषकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष लाए गए मामलों में वृद्धि हुई है। बता दें कि नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई), इंडिया एनवायरनमेंट पोर्टल का प्रबंधन करती है।

एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले तीन वर्षों (2020, 2021 और 2022) के दौरान देश में वन्यजीव संबंधी अपराधों में लगातार कमी आई है। हालांकि इसके बावजूद मामलों का निपटारा बेहद धीमी गति से हो रहा है, जिससे निर्णय में देरी और बैकलॉग हो रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो अदालतों को वन्यजीव संबंधी अपराधों के लंबित मामलों को निपटाने में 14 वर्षों से अधिक का समय लगेगा।

इसी तरह 2020 से 2022 के बीच  वन अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में 19 फीसदी का इजाफा हुआ है। गौरतलब है कि जहां 2020 में इस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों का आंकड़ा 1,921 था, जो 2022 में बढ़कर 2,287 पर पहुंच गया। आंकड़े इस बात की ओर भी  इशारा करते हैं कि देश में वन-संबंधित अपराधों में वृद्धि हो रही है। ऐसे में आंकड़ों के अनुसार प्रति दिन करीब तीन मामलों की मौजूदा दर से, इससे सम्बंधित सभी मामलों को निपटाने में अदालतों को कम से कम 17 साल लगेंगें।

एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक वन-संबंधित अपराधों के 19,700 से अधिक मामले लंबित हैं, जिन्हें एक वर्ष में निपटाने के लिए अदालतों को हर दिन कम से कम 54 मामलों का निपटारा करना होगा।

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