अनिल अग्रवाल डायलॉग 2020: अंग्रेजों के जमाने के वन कानून से परेशान होते रहे हैं वनवासी

भारत के वन कानून जंगलों को आमदनी का जरिया मानते हुए इसपर निर्भर रहने वाले वनवासियों के साथ अपराधी जैसा व्यव्हार करती है
Photo: Kumar Sambhav Shrivastva
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सुप्रीम कोर्ट की वकील और जनजातीय मामलों के मंत्रालय की पूर्व कानूनी सलाहकार शोमोना खन्ना ने भारत के कानून और उससे जुड़े आजीविका और सह-अस्तित्व के बारे में समझाते हुए कहा कि भारत के जंगलों की स्थिति समझने के लिए हमें देश में हुए कानून में ऐतिहासिक बदलाओं को भी समझना पड़ेगा। हमारे कानून के साथ यह दिक्कत रही है कि ये कानून शुरू और अंत शब्दों को परिभाषित करने से होते हैं। जंगल की परिभाषा पहले दी गई थी कि जहां पेड़-पौधे, बांस आदि हों उसे जंगल माना जाएगा। बाद में जंगल को वर्गीकृत किया गया जिसमें संरक्षित वन शामिल हो गया।

वन के साथ आजीविका और सह अस्तित्व से संबंधित कानून के बारे में बताते हुए वह कहती हैं कि वन अधिकार कानून से पहले की स्थिति की बात करें तो वर्ष 2006 से पहले तक अंग्रेजों के कानून के मुताबिक जंगल में रहने वाले लोगों को अपनी ही जमीन पर ऐसा दिखाया गया कि वे जमीन पर कब्जा करके रह रहे हैं। ऐसी स्थिति में लोगों को वनोपज इकट्ठा करते समय अपराधियों की तरह सजा दी जाती थी। अंग्रेजों ने वनवासियों और आदिवासियों को हमेशा अपराधी जैसा माना और दुख की बात यह है कि आजादी के बाद भी यही सब चलता रहा।

ये कानून कुछ इस तरह से बनाए गए हैं कि जंगल को सरकार के लिए आमदनी का जरिया माना गया है और जिस जंगल से भारी आमदनी नहीं होती उस जंगल को लघु वनोपज की श्रेणी में डाला गया जिसमें से कई वनोपज उपयोग में लाने पर वनवासियों को सजा दी जाती रही है।

खन्ना ने कोर्ट में लंबे समय तक चले वन अधिकार के केस के बारे में बताया कि वहां वनवासियों का पक्ष नहीं रखा जा सका और जबकि वन्य जीवों के लिए काम करने वाली संस्थाओं का पक्ष सुना गया। इससे पिछले साल गरीब वनवासियों को अपराधी की तरह मानते हुए उन्हें जंगल से बेदखल करने का आदेश तक आ गया।

इंसान-बाघ के बीच संघर्ष से हर साल 50 लोगों की मौत

जंगल और मनष्य के सह अस्तित्व में आने वाली समस्याओं को लेकर भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी नई दिल्ली के मुख्य कानूनी सलाहकार अविनाश भास्कर ने कहा कि इंसान और बाघ के बीच हो रहे संघर्ष चिंता की बात है। आंकड़ों की तरफ देखें तो हर वर्ष तकरीबन 50 लोगों की मौत संघर्ष की वजह से हो जाती है, वहीं जंगली जानवर भी इस वजह से कम हो रहे हैं। पिछले पांच वर्ष में 17 बाघ और 213 तेंदुआ की मौत हो गई। वह संरक्षित वन क्षेत्र की स्थिति के बारे में बताते हुए कहते हैं कि देश में 800 छोटे-बड़े संरक्षित वन क्षेत्र हैं जो कि देश के क्षेत्रफल का मात्र पांच प्रतिशत है। हाथियों के लिए संरक्षित इलाके का क्षेत्र भी काफी कम है। वह ऐसे समय में बाघ और हाथी के लिए कॉरीडोर की वकालत करते हुए कहते हैं कि इसके लिए कोशिशें हो रही है लेकिन अभी यह काम शुरुआती अवस्था में है।

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