बाघ से लोगों को बचाएगा एआई बेस्ड कैमरा, आने से पहले देगा चेतावनी

शोधकर्ताओं का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि 2030 तक पृथ्वी की 30 प्रतिशत भूमि और महासागरों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, चार्ल्स जे. शार्प
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भारत और नेपाल के जंगलों में बाघों की आबादी बढ़ रही है जो कि महत्वपूर्ण संरक्षण उपलब्धि है। वहीं दूसरी ओर ये शिकारी उन इलाकों में जहां पार्क के आकार सीमित हैं तथा बाघ अभयारण्यों के बाहर रहते हैं, अब ये कस्बों के करीब घूम रहे हैं। इसके कारण लोगों और बांधों के बीच संघर्ष बढ़ने की आशंका जताई गई हैं। वहीं इस समस्या से निपटने के लिए संरक्षणवादी नए तरीके खोजने में लगे हैं।

संरक्षणवादी तेजी से कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ समाधान ढूंढ रहे हैं, जो मनुष्यों की तरह तर्क करने और निर्णय लेने के लिए डिज़ाइन की गई तकनीकों का एक समूह है।

शोध के मुताबिक, दक्षिण कैरोलिना में क्लेम्सन विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों और कई गैर सरकारी संगठनों ने एआई-आधारित कैमरों का उपयोग करके इस समस्या से निजात पाने में सफल होने की बात कही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि, इससे बाघ संरक्षण में क्रांति लाने में मदद मिल सकती है।

उन्होंने दोनों दक्षिण एशियाई देशों में ग्रामीणों को बाघों से और शिकारियों से बाघों को बचाने के लिए बाड़ों के चारों ओर छोटे उपकरण लगाए।

बायोसाइंस जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, ट्रेलगार्ड नामक कैमरा प्रणाली बाघों और अन्य प्रजातियों के बीच अंतर बता सकता है और सेकंड के भीतर पार्क रेंजरों या ग्रामीणों को तस्वीरें भेज सकता है।

शोध के हवाले से शोधकर्ता, एरिक डायनरस्टीन ने बताया कि, हमें लोगों, बाघों और अन्य वन्यजीवों के साथ जीने के लिए नए तरीके खोजने होंगे।

उन्होंने कहा कि, तकनीक हमें उस लक्ष्य को बहुत सस्ते में हासिल करने का एक जबरदस्त अवसर प्रदान कर सकती है।

हाथी और अमेजन लकड़हारे

शोध में दावा किया गया है कि कैमरे भारी प्रभावी थे, उन्होंने एक गांव से सिर्फ 300 मीटर की दूरी पर एक बाघ को पकड़ लिया और एक अन्य अवसर पर शिकारियों की एक टीम की पहचान की।

शोधकर्ता कहते हैं कि उनकी तकनीक बाघ की तस्वीर को पहचानने और प्रसारित करने वाली पहली एआई कैमरा आधारित तकनीक थी, और इसने झूठी चेतावनियों को लगभग हटा दिया है।

उन्होंने कहा, यह योजना वन्यजीव निगरानी के लिए स्थापित योजनाओं वाली कई योजनाओं में से एक है।

शोध में बताया गया कि, गैबॉन में शोधकर्ता अपने कैमरे की छवियों को छांटने के लिए एआई का उपयोग कर रहे हैं और साथ ही अब हाथियों के लिए भी एक चेतावनी प्रणाली विकसित करने कोशिश कर रहे हैं।

शोध के मुताबिक, अमेजन में टीमें ऐसे उपकरणों का उपयोग कर रही हैं जो चेनसॉ, ट्रैक्टर और पेड़ों को काटे जाने से जुड़े अन्य मशीनरी की आवाज का पता लगा सकते हैं।

वाइल्डलाइफ इनसाइट्स नामक परियोजना, प्रजातियों की पहचान करने और छवियों को छानने की प्रक्रिया को अपने आप करती है, जिससे शोधकर्ताओं के कई घंटों के काम की बचत होती है।

पूर्व चेतावनी प्रणाली

शोधकर्ताओं का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि 2030 तक पृथ्वी की 30 प्रतिशत भूमि और महासागरों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए, जैसा कि पिछले साल दर्जनों सरकारों ने सहमति व्यक्त की थी, कुल मिलाकर यह संख्या 50 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।

उन क्षेत्रों की निगरानी करने की जरूरत पड़ेगी और जानवरों को संरक्षित क्षेत्रों के बीच सुरक्षित रूप से जाने की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा, हम इसी पर काम कर रहे हैं और इसका महत्वपूर्ण हिस्सा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है।

पूरे एशिया में बाघों के आवास नष्ट हो गए हैं और भारत में उनकी संख्या 2006 में अब तक के सबसे निचले स्तर 1,411 पर आ गई थी, जो लगातार बढ़कर लगभग 3,500 के वर्तमान स्तर पर पहुंच गई। 20वीं सदी के मध्य में, भारत अनुमानित 40,000 बाघों का घर हुआ करता था।

संरक्षणवादी पामर ने कहा कि, संरक्षण में एआई के व्यापक उपयोग अभी तक तय नहीं हुआ हैं। उन्होंने कहा, ज्यादातर मामलों में, एआई प्रजातियों की पहचान अभी भी शुरुआती चरण में है।

पामर ने कहा कि, वे एआई द्वारा की गई किसी भी प्रजाति की पहचान के बाहर सत्यापन की सिफारिश करते हैं। उन्होंने कहा, क्या एआई को घटनास्थल पर कैमरों में बेहतर ढंग से तैनात किया गया था या बाद में सर्वर या लैपटॉप पर देखा गया।

उन सभी अनिश्चितताओं को छोड़कर, डायनरस्टीन ट्रेलगार्ड का विस्तार किया जा रहा है, इस बार उनकी नजर में और भी बड़े जानवरों को शामिल करना है।

उन्होंने कहा, हाथी हर समय पार्कों के बाहर घूमते रहते हैं और इससे बड़े पैमाने पर संघर्ष होता है। वे फसलों को नष्ट करते हैं, गांवों में अराजकता फैलाते हैं और यहां तक कि ट्रेन दुर्घटनाओं का कारण भी बन सकते हैं, जिसमें हर साल दर्जनों मौतें होती हैं। इसे रोकने के लिए यह एक बड़ा अवसर है।

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