केंद्र में गठबंधन की नई सरकार ने कामकाज शुरू कर दिया है। इस सरकार की नीतियां और उनका तय किया गया रास्ता हमारा भविष्य तय करेगा। इस नई सरकार से देश को आखिर किन वास्तविक मुद्दों पर ठोस काम की उम्मीद करनी चाहिए ? लेकिन ये उम्मीदें क्या होनी चाहिए, डाउन टू अर्थ अलग-अलग विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए लेखों की कड़ियों को प्रकाशित कर रहा है।
भारत में दुनिया की दर्ज जैव विविधता का 7-8 प्रतिशत पाया जाता है। लेकिन अगर देश इसका संरक्षण करने में, इसके स्थायी उपयोग को सुनिश्चित करने में या पीढ़ियों से संसाधनों का संरक्षण करने वाले समुदायों के लिए इसके उपयोग से होने वाले लाभों को सुरक्षित करने में असमर्थ है, तो ऐसी विविधता का क्या फायदा?
जैव विविधता के मामले में, देश में किए गए अधिकांश कार्य आंकड़ों और पारदर्शिता की कमी से ग्रस्त हैं। भारत ने 1994 में जैविक विविधता सम्मेलन (सीबीडी) को मंजूरी दी थी, और लगभग एक दशक बाद, 2002 में जैविक विविधता अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम ने एक त्रि-स्तरीय प्रणाली स्थापित की, जिसके केंद्र में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण है।
इसके अलावा हर राज्य के लिए एक जैव विविधता बोर्ड और स्थानीय निकायों के स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियां (बीएमसी) हैं। बीएमसी को अपने-अपने क्षेत्रों की जैव विविधता का दस्तावेजीकरण करने वाले पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (पीबीआर) तैयार करने का काम सौंपा गया है। समितियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संसाधनों का उपयोग टिकाऊ हो और उपयोग से प्राप्त लाभ का एक हिस्सा स्थानीय समुदायों तक पहुंचे।
2016 तक सिर्फ 9,700 बीएमसी स्थापित किए गए थे और केवल 1,388 पीबीआर तैयार किए गए थे। यह तथ्य तब सामने आया जब पुणे के वन्यजीव कार्यकर्ता चंद्र भाल सिंह ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण में मामला दर्ज कराया। 2019 में, ट्रिब्यूनल ने जैविक विविधता अधिनियम के इस प्रावधान का पूर्ण अनुपालन जनवरी 2020 तक करने का निर्देश दिया। जनवरी 2024 तक, 277,688 बीएमसी और 268,031 पीबीआर हैं। हालांकि, इन निकायों और पीबीआर की गुणवत्ता संदिग्ध है ('बेनिफिट विदहेल्ड', डाउन टू अर्थ, 16-31 मई, 2022 देखें)।
समुदायों को यह भी जानकारी नहीं है कि उन्हें जैव विविधता से कैसे लाभ हो सकता है। यहां तक कि उन मामलों में भी जहां उपयोग और लाभ साझा करने पर समझौते किए गए हैं, वहां नाम मात्र के लाभ की रिपोर्ट मिली है। इसे इरुला जनजाति की दवा कंपनियों को सांप का जहर उपलब्ध कराने के समझौते के मामले में देखा जा सकता है। संसाधनों का उपयोग किसने किया है और समुदायों को क्या लाभ प्रदान किए गए हैं, इस पर आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। कुल मिलाकर, पिछले दो दशकों में बहुत कुछ नहीं किया गया है। इसे बदलना होगा। स्थानीय समुदायों को जैव विविधता का दस्तावेजीकरण करने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए।
हाल ही में अपनाए गए कुनमिंग मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (केएमजीबीएफ), जिसे अब जैव विविधता योजना कहा जाता है, में दुनिया स्वीकार करती है कि समुदाय पर्यावरण की रक्षा करने में कुशल हैं। समुदायों के पास अपने स्थानीय जैव विविधता और उसके उपयोग के बारे में अपार ज्ञान है। लेकिन दस्तावेजीकरण में सरकारी अधिकारियों के शामिल होने पर भी इस ज्ञान की अनदेखी की गई है।
केएमजीबीएफ जैव विविधता के संरक्षण के लिए धन की आवश्यकता को भी स्वीकार करता है। हालांकि केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी 'एनविस्टैट्स - इंडिया 2023' के मुताबिक भारत में, 2018 से 2024 के बीच, पर्यावरण संरक्षण के लिए 4 केंद्र प्रायोजित योजनाओं- राष्ट्रीय हरित भारत मिशन, वन्यजीव आवासों का एकीकृत विकास, प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी प्रणालियों का संरक्षण, और राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रम के बजट में कमी आई है। ऐसे में नई सरकार को कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए, क्योंकि जैव विविधता उन तीन ट्रिगर्स में से एक हैं जिनसे ग्रह के वजूद को ही खतरा हो सकता है।
एक्शन प्वॉइंट्स
स्थानीय जैव विविधता और उसके उपयोग पर अपने विशाल ज्ञान का दस्तावेजीकरण करने के लिए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना
समुदायों के साथ किए गए उपयोग और लाभ-साझाकरण समझौतों में पारदर्शिता सुनिश्चित करना
पर्यावरण संरक्षण योजनाओं के लिए धन और बजटीय आवंटन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है
2024 के चुनाव लड़ रही राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्रों में से कुछ में जैव विविधता पर थोड़ा ध्यान दिया गया। उदाहरण के लिए, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के घोषणापत्र में 'तेजी से, समावेशी और टिकाऊ विकास; और पारिस्थितिकी तंत्रों, स्थानीय समुदायों, वनस्पतियों और जीवों की रक्षा' के लिए अपनी 'प्रतिबद्धता' को दोहराया गया है। यह घोषणापत्र पिछली नीतियों और पर्यावरण संरक्षण, वन संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण, तटीय क्षेत्र विनियमन, आर्द्रभूमि संरक्षण और आदिवासी अधिकारों के संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण घटकों से कई 'भटकाव' की ओर इशारा करता है।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) ने अपने घोषणापत्र में जैव विविधता के संरक्षण के लिए सख्त विनियमन और जैव विविधता संशोधन अधिनियम, 2023 के उन प्रावधानों को रद्द करने का वादा किया है जो जैव विविधता संसाधनों पर ज्ञान को निगमों को हस्तांतरित करने की अनुमति देते हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने पहाड़ी राज्यों के सतत विकास के संदर्भ में जैव विविधता का उल्लेख किया है। इसमें राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के साथ मिलकर जैव विविधता बनाए रखने के लिए मास्टर प्लान तैयार करने का वादा किया गया है। यह अरावली पर्वतमाला की जैव विविधता को संरक्षित करने और मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए एक हरित अरावली परियोजना शुरू करने का भी लक्ष्य रखता है।
भारत के चुनाव परिणाम सामने आ चुके हैं। नरेंद्र मोदी की अगुआई में एक बार फिर से एनडीए की सरकार बनी है। देश अपनी राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीतियों और कार्य योजनाओं को संशोधित कर रहा है, जिन्हें अक्टूबर 2024 में कन्वेंशन ऑफ बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) के 16वें पक्षकार सम्मेलन से पहले प्रस्तुत किया जाना है। इस दस्तावेज की मजबूती भारत के जैव विविधता के भविष्य का एक अच्छा संकेतक होगी।