भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) ने कहा है कि उसके पास 20 आदमियों का स्टाफ है और इसी क्षमता के साथ उसे देश के सभी जंगलों में अतिक्रमण का सर्वेक्षण करना है तो इस काम में उसे 16 साल लग सकते हैं। एफएसआई ने यह बात गत 6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान कही।
दरअसल, गत 28 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एफएसआई को आदेश दिए थे कि वह वन भूमि में हो रहे अतिक्रमण का सर्वेक्षण करे। कोर्ट ने इससे पहले एफएसआई को सेटेलाइट सर्वे करने को कहा था।
एफएसआई ने कोर्ट में एक शपथपत्र दिया था, जिसमें महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड और ओडिशा में रद्द किए गए व्यक्तिगत वन अधिकार (आईएफआर) क्लेम के लगभग 6400 जियो-रेफरेंस पॉलिगन (बहुकोणीय क्षेत्र) के सर्वे की जानकारी थी। एफएसआई ने 2005, 2009 और 2018-19 के दौरान इन निर्माणों की सेटेलाइट इमेज का इस्तेमाल किया था।
एफएसआई के एक अधिकारी ने बताया कि हमें केवल 4 राज्यों से ही आंकड़े मिले, शेष राज्य अभी हमें जानकारी भेज रहे हैं। अब तक केवल देश में रद्द किए जा चुके कुल आईएफआर क्लेम का केवल 0.68 फीसदी ही सर्वे कर पाए हैं। उत्तराखंड में हमने लगभग 16 पॉलिगोन का सर्वे किया है और ज्यादातर लगभग 6000 पॉलिगन आंध्रप्रदेश के हैं। जिन आईएफआर क्लेम का उन्होंने अध्ययन किया है, उनमें से लगभग 57 फीसदी पॉलिगन में भूमि उपयोग परिवर्तन (सीएलयू) किया जा चुका है।
वन अधिकारों पर काम करने वाली संस्था कंपेन फॉर सर्वाइवल एंड डिग्निटी के सचिव शंकर गोपाल कृष्णन का कहना है कि सेटेलाइट इमेज से आसानी से छेड़छाड़ की जा सकती है, ऐसे में जमीनी हकीकत का अनुमान लगाना आसान नहीं होता। उन्होंने एक्ट के तहत मिले अधिकारों के लिए कुछ नहीं किया और यहां तक कि लैँड राइट्स को वेरिफाई तक नहीं कया।
अब इस मामले की सुनवाई 12 सितंबर को होगी।