सावधान! लम्बे समय तक चलने वाली लू से बढ़ जाता है समय से पहले प्रसव और जन्म का खतरा

भीषण गर्मी, लू और बढ़ते तापमान का असर आम लोगों के साथ-साथ गर्भ में पल रहे अजन्में पर भी पड़ रहा है, जिसकी वजह से उनके प्रीमैच्योर और समय से पहले जन्म लेने का खतरा बढ़ रहा है
इनक्यूबेटर में नवजात; फोटो: आईस्टॉक
इनक्यूबेटर में नवजात; फोटो: आईस्टॉक
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न केवल भारत बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में पड़ रही भीषण गर्मी और जानलेवा लू ने लोगों का जीवन मुश्किल बना दिया है। बढ़ती गर्मी और लू का कहर किस कदर हावी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां भारत के अलग-अलग हिस्सों में पारा 45 डिग्री से ऊपर है। वहीं कुछ जगहों पर तो यह 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है।

ऐसी ही स्थिति दिल्ली में भी देखी गई, जब दिल्ली के मुंगेशपुर, नजफगढ़ और नरेला में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया। कुछ ऐसे ही हालात पाकिस्तान के भी हैं जहां पारा 52 डिग्री तक पहुंच गया है। हालांकि देखा जाए तो यह बढ़ता तापमान और लू सभी के लिए हानिकारक है, लेकिन गर्भवती महिलाओं और उनके अजन्मों को इससे कहीं ज्यादा खतरा है।

इसकी पुष्टि अमेरिकी शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में की है। अमेरिका की नेवादा यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन में नेवादा विश्वविद्यालय के साथ-साथ, एमोरी, येल और यूटा विश्वविद्यालय के शोधकर्ता शामिल थे। इसके साथ ही नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के शोधकर्ताओं ने भी इसमें योगदान दिया है।

इस अध्ययन से पता चला है कि लम्बे समय तक पड़ रही भीषण गर्मी और लू के कारण समय से पहले प्रसव और प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ रहा है। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान के साथ-साथ जिस तरह भीषण गर्मी, लू की आवृत्ति और तीव्रता में इजाफा हो रहा है, वो गर्भवती महिलाओं और उनके अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है।

यह अध्ययन अमेरिका के 50 सबसे बड़े महानगरीय क्षेत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों पर आधारित है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1993 से 2017 के बीच जन्म लेने वाले 5.31 करोड़ बच्चों की जन्म से जुड़ी परिस्थितियों का विश्लेषण किया है।

इस विश्लेषण से पता चला है कि जब स्थानीय तापमान लगातार चार दिनों से अधिक समय तक असामान्य रूप से गर्म रहा, तो प्रीमैच्योर डिलीवरी और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में इजाफा देखा गया। 

अध्ययन में गर्म महीनों में समय से पहले जन्म लेने वाले 21,53,609 बच्चों और अर्ली टर्म बर्थ के 57,95,313 मामलों का विश्लेषण किया गया। इनमें 30 फीसदी माएं 25 वर्ष से कम आयु की थीं, वहीं 53.8 फीसदी 25 से 34 वर्ष, जबकि 16.3 फीसदी 35 वर्ष या उससे अधिक आयु की थी। इन 25 वर्षों में प्रीमैच्योर बर्थ के मामलों में दो फीसदी का इजाफा हुआ है। वहीं समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या एक फीसदी बढ़ी है।

रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ समय से पहले प्रसव और प्रीमैच्योर जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में एक फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया। रिसर्च में ये भी सामने आया है कि लू की वजह से समय से पहले जन्म के मामले 30 वर्ष या उससे कम उम्र में मां बनने वाली महिलाओं में ज्यादा पाए गए।

बता दें समय से पहले जन्म तब कहा जाता है जब गर्भस्थ शिशु का जन्म गर्भावस्था के 37 सप्ताह के पहले हो जाता है। इस दौरान या उससे पहले पैदा होने वाले बच्चे प्रीमैच्योर होते हैं। वहीं प्रेगनेंसी के 37 से 39 सप्ताह के बीच पैदा होने वाले बच्चे ‘अर्ली टर्म बर्थ’ कहलाते हैं। वहीं यदि किसी बच्चे का जन्म गर्भावस्था के 40 सप्ताह के बाद होता है, तो उसके जन्म को सामान्य माना जाता है।

समय से पहले जन्म लेने के कारण बच्चे में स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इसकी वजह से बच्चे का विकास ठीक से नहीं हो पता जो उनकी मृत्यु का कारण बन सकता है। साथ ही इसके चलते शिशुओं को जीवन भर स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। इसमें सांस, मानसिक स्वास्थ्य और और व्यवहार संबंधी समस्याएं शामिल हैं। ऐसे में इन मामलों में थोड़ी सी भी वृद्धि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।

भारतीय हैं, दुनिया में समय से पहले जन्म लेने वाले 22.5 फीसदी बच्चे

अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ शोधकर्ता हॉवर्ड चांग ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि, 'अनुमान है कि इस साल गर्मियों बेहद गर्म रह सकती हैं।' उनका यह भी कहना है कि, ‘जलवायु में आते बदलावों के चलते हमें भविष्य में और अधिक गर्मी का सामना करना पड़ सकता है।‘ उनके मुताबिक तापमान में होती यह वृद्धि शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है, क्योंकि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाले खर्च में इजाफा हो सकता है।

हालांकि देखा जाए तो यह अध्ययन अमेरिका में जन्म लेने वाले बच्चों पर किया गया है। लेकिन इसके नतीजे भारत पर भी सटीक बैठते हैं, जो पहले ही बढ़ते तापमान से जूझ रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट "बर्न टू सून: डिकेड ऑफ एक्शन ऑन प्रीटर्म बर्थ" ने भी खुलासा किया है कि भारत में 2020 के दौरान 30.2 लाख नवजातों का जन्म समय से पहले हो गया था।

वहीं समय से पहले जन्म लेने वाल बच्चों की दर की बात करें तो वो 13 फीसदी है। मतलब की भारत में हर 13वें बच्चे का जन्म समय से पहले हो जाता है। आंकड़ों की मानें तो 2020 में दुनिया में जितने भी बच्चों का जन्म समय से पहले हुआ था, उसमें से 22.5 फीसदी से ज्यादा बच्चे भारतीय थे। इस लिहाज से देखें तो भारत समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों के मामलों में अव्वल है।

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