दिल्ली में बारिश के पानी को संजोने के लिए लगाई प्रणालियों की क्या है स्थिति? एनजीटी ने मांगी जानकारी

एनजीटी ने संबंधित अधिकारियों से दिल्ली में बारिश के पानी को संजोने के लिए लगाई प्रणालियों की स्थिति के बारे में अपडेट देने को कहा है
दिल्ली में बारिश के पानी को संजोने के लिए लगाई प्रणालियों की क्या है स्थिति? एनजीटी ने मांगी जानकारी
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 24 अप्रैल, 2024 को संबंधित अधिकारियों से दिल्ली में बारिश के पानी को संजोने के लिए लगाई प्रणालियों (आरडब्ल्यूएचएस) की स्थिति के बारे में अपडेट देने को कहा है। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने उनसे विशेष रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर जानकारी मांगी है:

  • बारिश के पानी को संजोने के लिए लगाई प्रणालियों (आरडब्ल्यूएचएस) की संख्या, उनका स्थान और जिम्मेदार अधिकारी का संपर्क का विवरण।
  • क्या आरडब्ल्यूएचएस एनजीटी समिति की सिफारिशों के अनुसार स्थापित की गई हैं।
  • बरसाती नालों के पास कितनी संरचनाएं बनाई गई?
  • भूजल के स्तर की निगरानी के लिए आरडब्ल्यूएचएस के पास स्थापित पीजोमीटर की स्थिति और संख्या।
  • ऐसे आरडब्ल्यूएचएस की संख्या जो ठीक से काम नहीं कर रहे।

अदालत ने अधिकारियों से इन बिंदुओं पर तीन सप्ताह के भीतर नई रिपोर्ट सौंपने को कहा है।

नडियाद में अब तक विकसित नहीं हुआ है सेनेटरी लैंडफिल और बायो-कंपोस्टिंग साइट

गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) ने 26 अप्रैल, 2024 को दायर अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में जानकारी दी है कि नडियाद नगरपालिका सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट साइट पर अब तक सैनिटरी लैंडफिल या बायो-कंपोस्टिंग सुविधा स्थापित नहीं हुई है। मामला गुजरात के नडियाद के कमला गांव का है।

26 अप्रैल, 2024 को निरीक्षण के दौरान पाया गया कि डंप स्थल पर नगरपालिका संबंधी ठोस कचरे को छांटा और प्रोसेस किया जा रहा था। रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि इस डंप साइट पर नडियाद नगरपालिका क्षेत्र से हर दिन करीब 85 मीट्रिक टन ठोस कचरा डंप किया जा रहा है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सुविधा ने हर दिन 1,200 मीट्रिक टन की दर से लम्बे समय से जमा कचरे को निपटाने का काम शुरू कर दिया है। वे प्रति माह 1,000 मीट्रिक टन की दर से रिफ्यूज-व्युत्पन्न ईंधन (आरडीएफ) का उत्पादन कर रहे हैं।

जांच के दौरान, यह देखा गया कि नगरपालिका में तुरंत लाया गया ठोस कचरा जलाया जा रहा था, जिससे साइट पर भारी धुआं फैला हुआ था, इसकी वजह से वायु गुणवत्ता बिगड़ रही थी।

पूरा कर लिया गया है भारी बारिश वाले क्षेत्रों में बाढ़ सीमाओं को चिह्नित करने का काम: रिपोर्ट

महाराष्ट्र के जल संसाधन विभाग ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि उन्होंने भारी बारिश वाले क्षेत्रों में बाढ़ सीमाओं को चिह्नित करने का काम पूरा कर लिया है। यह वो क्षेत्र हैं जहां बाढ़ जान माल के लिए खतरा पैदा कर सकती है। गौरतलब है कि यह कार्रवाई 27 मार्च 2015 को एनजीटी द्वारा दिए आदेश पर की गई है।

यह भी जानकारी दी गई है कि जल संसाधन विभाग ने महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की है और वहां बाढ़ सीमाओं को चिह्नित किया है। कम आबादी वाले क्षेत्रों या जंगलों से गुजरने वाले नदी के अन्य हिस्सों में जहां बाढ़ से लोगों की जान या संपत्ति पर असर पड़ने की संभावना कम है, उन्हें कम प्राथमिकता वाला माना गया है। ऐसे क्षेत्रों में वास्तविक बाढ़ की स्थिति के आधार पर, बाढ़ सीमाओं का अंकन आवश्यकतानुसार किया जा रहा है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जल संसाधन विभाग (डब्ल्यूआरडी) ने बाढ़ के कम जोखिम वाले क्षेत्रों में नदी के हिस्सों को चुनाव किया है, जहां लोगों और संपत्ति को पर खतरे की सम्भावना कम है। इन क्षेत्रों को प्राथमिकता-II के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हालांकि डब्ल्यूआरडी ने इन प्राथमिकता-II खंडों में बाढ़ लाइनों को चिह्नित करने का काम पूरा कर लिया है, जो कुल 2,544.83 किलोमीटर की दूरी में है। यह कार्य एनजीटी के 27 मार्च 2015 के आदेश के अनुसार निर्देशित कार्यों के अतिरिक्त किया गया है।

डब्ल्यूआरडी ने नदियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया है: प्राथमिकता-I, जहां बाढ़ से नुकसान होने की अधिक संभावना है, और प्राथमिकता-II, जहां जोखिम कम है। उन्होंने सबसे पहले प्राथमिकता-I क्षेत्रों में बाढ़ रेखाओं को चिह्नित करने पर ध्यान केंद्रित किया, जहां भारी वर्षा होती है और लोगों और संपत्ति को अधिक खतरा होता है। उन्होंने प्राथमिकता-I क्षेत्रों में 1,608.83 किलोमीटर को कवर करने वाले 174 नदी खंडों की पहचान की है और उन क्षेत्रों में बाढ़ लाइन सर्वेक्षण और चिह्नांकन पूरा कर लिया है।

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