बारिश की बूंदों को संजोने के लिए असोला वन्यजीव अभयारण्य में किया जा रहा है जलाशयों का निर्माण

इन जलाशयों का निर्माण मैदान गढ़ी, साहूपुर और सतबारी में किया जा रहा है, ये वे क्षेत्र हैं जहां पिछले दस वर्षों के दौरान भूजल के स्तर में तेजी से गिरावट आई है
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि असोला वन्यजीव अभ्यारण्य में जलाशयों के निर्माण का काम जारी है। यह जानकारी दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी द्वारा चार दिसंबर, 2024 को अदालत में सबमिट रिपोर्ट में सामने आई है।

यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 10 मई, 2024 को दिए आदेश पर कोर्ट में सौंपी गई है।

गौरतलब है कि 11 जून, 2024 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी), वन विभाग और दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी के अधिकारियों ने दक्षिणी दिल्ली के असोला वन्यजीव अभयारण्य में बन रहे दस जलाशयों का संयुक्त निरीक्षण किया था।

वन एवं वन्यजीव विभाग ने मैदान गढ़ी, साहूपुर और सतबारी में दस नए जलाशयों के निर्माण पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है, ये वे क्षेत्र हैं जहां पिछले दस वर्षों में भूजल तेजी से गिर रहा है।

वन विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलाशयों के निर्माण को दो चरणों में बांटा गया है। जलाशयों के चारों ओर पेड़ लगाने, ड्रेजिंग और उचित बांध बनाने जैसे काम कई इलाकों में पूरे हो चुके हैं। जल निकायों के मेड़ों पर दूब घास और झाड़ियां लगाने का काम भी कई जगहों पर पूरा हो चुका है।

अदालत असोला वन्यजीव अभयारण्य और दक्षिण वन विभाग द्वारा मानसून के दौरान आर्द्रभूमि को बहाल करके जल संरक्षण की योजना के बारे में एक मामले की सुनवाई कर रही थी। टाइम्स ऑफ इंडिया में 12 मार्च, 2024 को छपी एक खबर में कहा गया है कि अधिकारियों ने दक्षिण दिल्ली वन क्षेत्र में दस प्रमुख आर्द्रभूमि की पहचान की है।

गुना में वन भूमि पर हुआ अवैध कब्जा, अदालत ने कार्रवाई के लिए दिया एक महीने का समय

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राघौगढ़ तहसील में वन भूमि पर मौजूद बाकी अवैध अतिक्रमण को हटाने के लिए अधिकारियों को एक महीने का समय दिया है।

ट्रिब्यूनल ने इस मामले में चार दिसंबर, 2024 को कहा कि इस आदेश का पालन हुआ है, इसकी पुष्टि के लिए 15 जनवरी, 2025 तक एक हलफनामा दाखिल करना होगा। मामला मध्य प्रदेश में गुना जिले की राघौगढ़ तहसील में हुए वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के उल्लंघन से जुड़ा है।

आरोप है कि कुछ लोगों ने वन भूमि पर अवैध कब्जा कर लिया है और पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करते हुए इसका उपयोग निजी उद्देश्यों के लिए कर रहे हैं।

इस बारे में मध्य प्रदेश की ओर से पेश वकील ने अदालत को जानकारी दी है कि वहां 99 हेक्टेयर वन भूमि को अतिक्रमण मुक्त कर दिया गया है। इसके साथ ही बाकी 60 हेक्टेयर क्षेत्र को भी खाली कराने का काम जारी है। उन्होंने अधिकारियों से काम पूरा करने के लिए अदालत से एक महीने का समय मांगा है।

नर्मदापुरम में दिसंबर 2025 तक चालू हो जाना चाहिए एसटीपी, एनजीटी ने दिया निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सेंट्रल बेंच ने अधिकारियों से नर्मदापुरम में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण पूरा करने का कहा है। दो दिसंबर, 2024 को दिए इस आदेश के मुताबिक इस प्लांट को 31 दिसंबर, 2025 तक पूरा करके चालू करना होगा।

साथ ही अदालत ने की गई कार्रवाई पर 15 जनवरी, 2026 तक हलफनामा दाखिल करने को कहा है। मामला नर्मदा में छोड़े जा रहे दूषित जल और भूमि पर अवैध अतिक्रमण से जुड़ा है।

गौरतलब है कि इस मामले में मध्य प्रदेश शहरी विकास समिति के इंजीनियर-इन-चीफ ने 28 नवंबर, 2024 को एक हलफनामा दाखिल किया था। इस हलफनामे के साथ प्रगति रिपोर्ट भी शामिल थी। रिपोर्ट में विभिन्न शहरों और कस्बों में एसटीपी परियोजनाओं की प्रगति का विवरण देने वाली एक तालिका भी दर्शाई गई। इसके मुताबिक अमरकंटक, जबलपुर, भेड़ाघाट और साईखेड़ा में परियोजनाएं शत-प्रतिशत पूरी हो चुकी हैं।

प्रगति रिपोर्ट से पता चला है कि डिंडोरी में एसटीपी के निर्माण का काम 90 फीसदी पूरा हो चुका है। वहीं मंडला में 76.79 फीसदी, जबकि नरसिंहपुर में काम 85.5 फीसदी पूरा हो चुका है। हालांकि, नर्मदापुरम में अब तक केवल 25 फीसदी ही पूरा हो पाया है और ठेकेदार ने 14 जुलाई, 2022 के बाद से काम करना बंद कर दिया है।

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