टैंकर राज: राजस्थान में एक हजार से 2500 रुपए तक मिल रहा टैंकर, 30 साल में भू-जल दोहन 114% बढ़ा

राजस्थान में पानी की कमी के संकट के बीच पानी माफिया भी बड़ी संख्या में सक्रिय हैं
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पश्चिमी राजस्थान में ज्यादातर तालाब सार्वजनिक या पंचायतों के अधीन होने के बावजूद टैंकर मालिक तालाब से इकट्ठा किए गए पानी को बेचकर मुनाफा कमाते हैं। फोटो: माधव शर्मा
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बालोतरा जिले से करीब 40 किमी दूर बसा है खारड़ी गांव। जल जीवन मिशन के तहत गांव के हर घर में नल पहुंचाने का सरकारी दावा है जो मंत्रालय की वेबसाइट पर भी चस्पा है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। गांव के आखिरी छोर पर रहने वाले जोरसिंह (28) के कनेक्शन में पानी ही नहीं आता। क्योंकि इनके घर तक पानी पहुंचते-पहुंचते बंद हो जाता है। वे डाउन-टू-अर्थ को बताते हैं, “अगर 30 मिनट नल आते हैं तो पाइप लाइन की टेल पाइंट (आखिरी छोर) पर बसे कुछ घरों में सिर्फ 10 मिनट ही पानी पहुंचता है। इसका भी प्रेशर बहुत कम होता है। जोकि हमारी जरूरतों के लिए पूरा नहीं होता।”

बता दें कि गांव में इंदिरा गांधी नहर के जरिए पाइप लाइन बिछाई गई है। 7-8 पाइप लाइन के जरिए पानी पहुंचाने का दावा है, लेकिन इन पाइप लाइन की टेल पर बसे घरों में पानी नहीं पहुंच पाता। 

जोरसिंह जोड़ते हैं कि पानी की जरूरत पूरी करने के लिए हम लोग एक हजार रुपए में टैंकर मंगाते हैं। महीने में दो-तीन टैंकरों की जरूरत होती है। ये टैंकर पास के चिड़ियारा तालाब या आस-पास की निजी बेरी से पानी भरकर लाए जाते हैं। निजी बेरी वाले एक टैंकर के 100-200 रुपए तक वसूलते हैं। 

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आखिरी घर तक पानी नहीं पहुंचने की वजह बताते हुए सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप बिदावत आरोप लगाते हुए कहते हैं, “पाइप लाइन में गांव के प्रभावशाली लोगों ने बड़ी-बड़ी मोटर लगा ली हैं। सप्लाई के लिए जितना छेद नियमानुसार होना चाहिए, उससे बड़े छेद पाइप में किए हुए हैं। इससे पूरा पानी पहले ही खींच लिया जाता है। चूंकि पानी सप्लाई की जिम्मेदारी ठेकेदार की है इसीलिए कार्रवाई भी नहीं होती। 

आमतौर पर पूरे राजस्थान में पानी की लगभग ऐसी ही कहानियां हैं जैसी खारड़ी की है। हर जिले में पानी की समस्या और टैंकर माफियाओं की समानांतर व्यवस्था से जनता हलकान है। गर्मियों में तो यह समस्या विकराल होकर सामने आती है। पूर्वी राजस्थान के धौलपुर, करौली जिलों में डांग क्षेत्र के लोग तो पलायन कर चंबल किनारे मवेशी सहित अपने रिश्तेदारों के यहां या टेंट लगाकर रहते हैं। 

चूंकि इस बार गर्मियों के सीजन में ही आमचुनाव थे, इसीलिए पानी की कमी की खबरें उतनी प्राथमिकता से मीडिया में नहीं आ सकीं जितनी हर साल आती हैं। गर्मियों में बनाए जाने वाले कंटीजेंसी प्लान सिर्फ दिखावे के लिए ही बनाए गए। इस साल बनाए गए कंटीजेंसी प्लान के 70-80 फीसदी काम अधूरे रहे। प्रदेश में 1500 ट्यूबवेल बनाने में जलदाय विभाग ने 70 करोड़ रुपए खर्च कर दिए, लेकिन जनता फिर भी टैंकर माफियाओं से मनमानी कीमतों पर पानी खरीदने को मजबूर है। 

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जैसलमेर, बाड़मेर से लेकर धौलपुर-करौली तक टैंकरों के सहारे जनता और मवेशी

राजस्थान के लगभग हर जिले में पानी की समस्या है। जैसलमेर जिले में नाचना ब्लॉक तक ही इंदिरा गांधी नहर से पीने का मीठा पानी आता है। इसमें भी कब कितना पानी आएगा यह तय नहीं है। स्थानीय लोगों की मानें तो हर दूसरे दिन पानी आना चाहिए, लेकिन पानी की सप्लाई तीन से 15 दिनों के बीच होती है। तब मजबूरी में लोग कम से कम एक हजार रुपए में पांच हजार लीटर पानी का टैंकर डलवाते हैं। अगर गांव की दूरी पानी के स्त्रोत से 10-15 किमी है तो यह कीमत ढाई से तीन हजार रुपए तक भी हो जाती है। यह पानी नहर किनारे के किसी कुएं या पुरानी बेरी से भरकर लाया जाता है। अगर किसी तालाब में पानी बचा है तो उस पानी की सप्लाई भी टैंकर वाले करते हैं। चूंकि पश्चिमी राजस्थान में अधिकतर तालाब सार्वजनिक हैं या पंचायत के हैं। इसके बावजूद सभी लोगों के हक के पानी को टैंकर माफिया मुनाफा बटोरकर बेचते हैं। इस पानी की शुद्धता की भी कोई गारंटी नहीं है। 

लोग इन्हीं टैंकरों के भरोसे ही खुद के साथ-साथ अपनी मवेशी को भी जिंदा रखते हैं क्योंकि मवेशी के लिए भी पीने के पानी की कोई अलग से व्यवस्था नहीं है। 

जिला मुख्यालय या शहरी क्षेत्र में हालात इस बार ठीक रहे, लेकिन दूर-दराज के गांव और पाकिस्तान सीमा से लगे हुए गांव आज भी पानी के पारंपरिक स्त्रोतों पर ही निर्भर हैं। महिलाएं 2-8 किमी दूर तक से पानी भरने को मजबूर हैं। बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, पाली, बाड़मेर  सहित पश्चिमी राजस्थान में कमोबेश यही हालात हैं। हर जिले में लोग महीने में पीने के पानी के लिए 4-5 हजार रुपए औसतन खर्चा कर रहे हैं। 

जयपुर के सुमेर नगर में टैंकर से पानी सप्लाई करने वाले कैलाश माली से डाउन-टू-अर्थ ने बात की। उनके मुताबिक वे टैंकर से पानी सप्लाई करने का काम करीब एक दशक से कर रहे हैं। इसके लिए घर में लगी बोरवेल का ही इस्तेमाल करते हैं। कैलाश के पास 5-5 हजार लीटर की क्षमता के खुद के दो टैंकर हैं। अगर पानी की मांग सुमेर नगर में ही है तो 400-500 रुपए और अगर इससे बाहर है तो 700-1000 रुपए तक की कीमत ली जाती है। माली के अनुसार इस काम के लिए उन्होंने किसी भी तरह का लाइसेंस नहीं ले रखा ना ही किसी सरकारी विभाग से अनुमति ले रखी है। 

इस संबंध में हमने जयपुर में पीएचईडी विभाग के चीफ इंजीनियर (अरबन) राकेश लुहाड़िया से बात की। बकौल लुहाड़िया प्राइवेट टैंकर सप्लायर किस लीगल फ्रेमवर्क में काम करते हैं और कौन उन्हें पानी बेचने की अनुमति देता है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। चीफ इंजीनियर (ग्रामीण) केडी गुप्ता का भी यही जवाब था। 

वहीं, प्राइवेट टैंकर सप्लायर्स के द्वारा बेचे जाने वाले पानी की क्वालिटी कंट्रोल के लिए हमने पीएचईडी विभाग की चीफ केमिस्ट सीमा गु्ता से बात की। उन्होंने कहा कि विभाग समय-समय पर शिकायत मिलने पर सैंपल लेता है, लेकिन डाउन-टू-अर्थ की पड़ताल में सामने आया कि विभाग उन्हीं सप्लायर्स के यहां से ज्यादा सैंपल लेता है जिनको पानी सप्लाई के लिए सरकारी ठेके पर रखा गया है।

लेकिन यहां सवाल उठता है कि आखिर प्राइवेट टैंकर सप्लायर्स किस विभाग की निगरानी के दायरे में आते हैं? इस सवाल का जबाव खोजते हुए हम राजस्थान के ग्राउंड वाटर विभाग तक पहुंचे। वहां से मिली जानकारी के मुताबिक केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण बल्क वाटर सप्लायर्स के लिए एनओसी जारी करता है। इसके लिए प्राधिकरण ने गाइडलाइन भी जारी की हुई है। हालांकि प्राधिकरण ने राज्य सरकार को भी अपने स्तर पर गाइडलाइन बनाने की बात कही है, लेकिन राजस्थान में बल्क वाटर सप्लायर या टैंकर सप्लायर्स के लिए कोई गाइडलाइन नहीं है। इसीलिए जब तक राज्य सरकार अपनी गाइडलाइन नहीं बनाती तब तक केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण की बनाई गाइड लाइन से ही टैंकर संचालक पानी बेच सकते हैं। 

डाउन-टू-अर्थ की पड़ताल में सामने आया कि कोई भी टैंकर संचालक इन गाइडलाइन की पालना नहीं कर रहा है। अकेले जयपुर शहर में हजारों टैंकर संचालक सैंकड़ों बोरवेल से पानी खींचकर बेच रहे हैं। इनके पास ना तो किसी तरह की कोई एनओसी है और ना ही इस पानी की शुद्धता को मापने का कोई सिस्टम है। 

जबकि गाइडलाइन के अनुसार संरचनाओं में टैम्पर प्रूफ डिजिटल जल प्रवाह मीटर टेलीमेट्री के साथ लगाया जाना चाहिए। फ्लो मीटर्स को साल में एक बार किसी अधिकृत एजेंसी से कैलिब्रेट किया जाना चाहिए। पानी का उपयोग केवल पीने/घरेलू उद्देश्यों के लिए होना चाहिए। साथ ही जहां बोरवेल लगा हुआ है वह जगह कम से कम 200 स्क्वायर मीटर होनी चाहिए। इसके अलावा ग्राउंट वाटर क्वालिटी सर्टिफिकेट भी सप्लायर के पास होना जरूरी है। 

इस गाइडलाइन के उलट टैंकर संचालक इसी पानी को फैक्ट्री/कारखानों के लिए भी सप्लाई करते हैं। इनके पास जमीन भी नहीं है और पानी की शुद्‌धता मापने की व्यवस्था भी नहीं है। 

डाउन-टू-अर्थ ने प्राधिकरण के रीजनल डायरेक्टर (पश्चिम) एम.एस. राठौड़ से बात की तो उन्होंने सवालों की लिस्ट ई-मेल पर भेजने की बात कही। हमने अपने सवालों का ई-मेल उन्हें भेज दिया है। जवाब आने पर यहां जोड़ दिया जाएगा। 

जल माफिया बड़ी चुनौती

राजस्थान में पानी की कमी के संकट के बीच पानी माफिया भी बड़ी संख्या में सक्रिय हैं। इसी साल मई में चित्तौड़गढ़ जिले के गंगरार क्षेत्र के 10 गांव के लोगों ने जिला कलेक्टर को पानी के अवैध वितरण में लगे लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। ग्रामीणों का आरोप था कि पानी माफिया नगरी, बल्दरखा, दल्ला का खेड़ा, सहनवा क्षेत्र से भू-जल का दोहन कर कारखानों के लिए फ्लाईऐश के टैंकरों में एक बार में 60 हजार लीटर से ज्यादा पानी ले जा रहे हैं। अत्यधिक दोहन से क्षेत्र में कई सड़के धंसने लगी हैं। इसीलिए पानी माफियाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए।

इस क्षेत्र में कारखानों के लिए 30 किमी दूर से खानों में भरे पानी को ले जानी की इज़ाजत है, लेकिन नियम विरुद्ध माफिया भू-जल का दोहन कर रहे हैं। 

प्रदेश में कारखानों के लिए पानी के इंतजाम के लिए कोई अलग से व्यवस्था नहीं है। बल्कि इन्हें भी वहीं से पानी मिलता है जो पेयजल का भी स्त्रोत हैं। वहीं, प्रदेश में सरकार की ओर से इन माफियाओं के लिए कोई निगरानी व्यवस्था नहीं है। साथ ही टैंकर से पानी सप्लाई करने के लिए ना तो टैंकर चालक कोई लाइसेंस लेते हैं और ना ही पानी की शुद्धता की कोई गारंटी देते हैं। 

शहरों में बिल्डर्स भी भू-जल के भरोसे

राजधानी जयपुर सहित राजस्थान के लगभग सभी बड़े शहरों में फ्लैट कल्चर अब आम बात है। जयपुर, अजमेर जैसे शहर बीसलपुर बांध के पानी के भरोसे हैं, लेकिन ये फ्लैट्स शहर की बाहरी क्षेत्र में बन रहे हैं, जहां अभी तक पानी की सरकारी सप्लाई नहीं पहुंची है। इसीलिए बोरवेल ही चार-पांच मंजिला इमारतों में पीने के पानी का एकमात्र सहारा है।बड़ी संख्या में बन रहे फ्लैट्स की वजह से पिछले दो दशक में भू-जल का अत्यधिक दोहन शहरी क्षेत्रों में हुआ है। बावजूद इसके सरकार इस ओर खास ध्यान नहीं दे रही है। 

भू-जल के 299 में से सिर्फ 38 ब्लॉक ही सुरक्षित

राजस्थान में अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल की स्थिति काफी चिंताजनक हालत में पहुंच गई है। प्रदेश के 299 ब्लॉक में से सिर्फ 30 यानी 12% ही सुरक्षित बचे हैं। इनमें से 88% ब्लॉक क्रिटिकल, सेमी क्रिटिकल और अत्यधिक दोहित हैं। पिछले तीन दशक में भू-जल का दोहन 114% तक बढ़ा है। साल 2023 में राजस्थान में भू-जल का 149 फीसदी दोहन किया है। यह आंकड़ा 1984 में 35% था। साल 1995 में 58%, 2004 में 125%, 2013 में 139%, 2020 में 150% और 2023 में 149% पानी का दोहन राजस्थान में किया गया है। 

भू-जल कम होने की बड़ी वजहों में बारिश के पानी का संरक्षण नहीं होना और दूसरा पानी सप्लाई की एक समानांतर अवैध व्यवस्था खड़ी होना है। 

राजस्थान के पास देश का मात्र एक प्रतिशत पानी है 

राजस्थान देश के 10% भू-भाग पर फैला हुआ है, लेकिन पानी की उपलब्धता पूरे देश का महज एक प्रतिशत ही है। 2019 में आई सेंट्रल वाटर कमीशन की ‘रीअसिस्मेंट ऑफ एवरेज एनुअल पर कैपिटा वाटर एवेलिविलिटी फॉर ईयर 2021 एंड 2031’ के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1486 क्यूबिक मीटर और 1367  क्यूबिक मीटर आंकी गई है। जबकि 1700 क्यूबिक मीटर से कम उपलब्धता को जल संकट और एक हजार घन मीटर से कम जल उपलब्धता को कमी की स्थिति माना गया है। राजस्थान इन दोनों ही स्थिति में काफी पीछे है। 2009 में बनी व्यास कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में साल में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता सिर्फ 800 क्यूबिक मीटर ही है। 

हर घर जल का सपना अभी दूर की कौड़ी

वैसे तो पानी राज्य का विषय है, लेकिन केन्द्र सरकार ने 15 अगस्त 2019 को हर घर जल पहुंचाने के उद्देश्य से जल जीवन मिशन योजना की शुरूआत की। इसका मकसद था कि साल 2024 तक देश के प्रत्येक घर में पीने के लिए नल से जल पहुंचाया जाए। हालांकि राजस्थान में इस योजना की गति को देखते हुए इस साल तक सौ फीसदी घरों में नल से पानी पहुंचाना असंभव है। सरकारी डेटा के मुताबिक राजस्थान में अभी तक सिर्फ 50.61 फीसदी घरों में ही नल कनेक्शन हुए हैं। अगर जिलों की बात की जाए तो जैसलमेर में एक जुलाई तक सिर्फ 34.75%, बाड़मेर में 13.50%, बीकानेर 53.80%,  बालोतरा 57.95%, जोधपुर 54.46%, जालोर 49.11%, उदयपुर 29.76%, जयपुर 58.70%, अजमेर 57.89% घरों में ही टैप वाटर कनेक्शन हो पाए हैं।  

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